घातक लापरवाही: लॉकडाउन में ढील देने का यह अर्थ नहीं कि सतर्कता का कर दिया जाए परित्याग

इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि भारत में अभी कोरोना मरीजों की संख्या के ग्राफ में गिरावट आती नहीं दिख रही है जबकि कई अन्य देशों में ऐसा देखने को मिल रहा है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Thu, 30 Jul 2020 11:20 PM (IST) Updated:Fri, 31 Jul 2020 12:36 AM (IST)
घातक लापरवाही: लॉकडाउन में ढील देने का यह अर्थ नहीं कि सतर्कता का कर दिया जाए परित्याग
घातक लापरवाही: लॉकडाउन में ढील देने का यह अर्थ नहीं कि सतर्कता का कर दिया जाए परित्याग

लॉकडाउन को शिथिल करने के नए निर्देश यदि कुछ बता रहे हैं तो यही कि कोरोना वायरस के संक्रमण और उससे उपजी महामारी कोविड-19 का खतरा अभी टला नहीं है। खतरा बरकरार रहने के संकेत कोरोना के नए मरीजों की संख्या से भी मिल रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से प्रतिदिन करीब 50 हजार नए कोरोना मरीज सामने आ रहे हैं। यह हर लिहाज से एक बड़ी संख्या है। इस पर लगाम लगानी ही होगी।

यह राहत की बात अवश्य है कि करीब दस लाख लोग कोरोना को मात दे चुके हैं और संक्रमण की चपेट में आए लोगों की मृत्यु दर भी कम है, लेकिन इतना तो है ही कि जब तक इस महामारी पर लगाम नहीं लगती तब तक स्थितियां सामान्य नहीं हो सकतीं। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि भारत में अभी कोरोना मरीजों की संख्या के ग्राफ में गिरावट आती नहीं दिख रही है, जबकि कई अन्य देशों में ऐसा देखने को मिल रहा है।

यह अच्छा है कि केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी टेस्टिंग बढ़ाने पर जोर दे रही हैं। वास्तव में यही वह उपाय है जिस पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन इसी के साथ यह भी तो आवश्यक है कि लोग एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाए रखने को लेकर सतर्क रहें और मास्क का इस्तेमाल सही ढंग से करें।

हालांकि शारीरिक दूरी के नियम के पालन और मास्क के उपयोग की महत्ता से सभी परिचित हैं, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि बहुत लोग लापरवाही का परिचय दे रहे हैं। यह लापरवाही अक्षम्य है, क्योंकि लोग एक तरह से जानबूझकर खुद के साथ दूसरों के लिए भी समस्या पैदा कर रहे हैं। घातक लापरवाही का सिलसिला कायम रहने का सीधा मतलब है महामारी पर लगाम लगाने की कोशिशों पर पानी फेरना।

नि:संदेह हालात तेजी से बदल सकते हैं, यदि हर कोई मास्क के इस्तेमाल और शारीरिक दूरी को लेकर सतर्क हो जाए। इसकी जरूरत इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि इतने बड़े देश में सामूहिक स्तर पर रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होने में लंबा समय लगेगा और तब तक कहीं अधिक नुकसान हो चुका होगा।

शायद इसीलिए यह कहा जाने लगा है कि सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता कोई बहुत कारगर विकल्प नहीं है।एक ऐसे समय जब सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारगर साबित होने को लेकर सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता और वैक्सीन बनने में भी देरी हो रही है तब फिर सावधानी बरतने और टेस्टिंग बढ़ाने के अलावा और कोई उपाय नहीं। बेहतर हो लोग यह समझें कि लॉकडाउन में ढील देने का यह अर्थ नहीं कि सतर्कता का परित्याग कर दिया जाए।

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