संस्कृति संरक्षण

वनस्पति से बनने और तैयार होने वाले मंडी कलम के रंगों ने एक नई पहल के कारण फिर अपनी चमक दिखाने के आसार दिखाए हैं। आज जिसे पहाड़ी या कांगड़ा चित्रकला कहा जाता है उसका उद्गम ही गुलेर से हुआ।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 03 Mar 2016 01:58 AM (IST) Updated:Thu, 03 Mar 2016 02:00 AM (IST)
संस्कृति संरक्षण

वनस्पति से बनने और तैयार होने वाले मंडी कलम के रंगों ने एक नई पहल के कारण फिर अपनी चमक दिखाने के आसार दिखाए हैं। प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी माने जाते मंडी में जिलाधीश की एक पहल के कारण पहाड़ी यानी मंडयाली बोली को अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के आमंत्रण पत्र में स्थान मिला तो साथ ही मंडी कलम का एक चित्र भी उस पर सुशोभित है। कांगड़ा कलम के लिए प्रयास हुए जो गुलेर से चली थी। चंबा ने भी अपना काफी कुछ बचा कर रखा हुआ है लेकिन मंडी कलम को भी संजीवनी मिलती है तो यह अच्छी बात होगी। वास्तव में जो समाज अपनी जड़ों को भूल जाए वह बहुत देर तक हरा नहीं रह सकता। बीते वर्ष शीतकालीन प्रवास के तीसरे चरण में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने हरिपुर गुलेर में यह कहा था कि गुलेर चित्रकला शैली को संरक्षित किया जाएगा। उन्होंने कहा था कि किसी के पास पुरानी धरोहर के रूप में कुछ वस्तुएं हों तो उनके लिए क्षेत्र में एक छोटा संग्रहालय बनाने पर भी विचार हो सकता है। आज जिसे पहाड़ी या कांगड़ा चित्रकला कहा जाता है उसका उद्गम ही गुलेर से हुआ। 18वीं शताब्दी के मध्य में कांगड़ा के राजपूत शासकों ने इसे संरक्षण दिया। लेकिन त्रासदी यह है कि हर बेशकीमती चीज पहले पहल अपने मूल या उद्गम से ही लापता होती है। उसके चिह्न तक नहीं बचते। यही हुआ है गुलेर शैली के साथ। ऐसा मंडी कलम के साथ भी हुआ होगा लेकिन अगर इस प्रयास से मंडी कलम कुछ अंगड़ाई लेती है तो यह बड़ी बात होगी। इस बहाने बातू और गाहिया नरोत्तम जैसे कलाकारों के काम पर से भी धूल साफ होगी। प्रदेश और समाज को अपने नायकों को सम्मान देना चाहिए। नादौन में यशपाल संस्कृति सदन है जो लेखकों के लिए राहत की बात है लेकिन गुलेर में भी गुलेरी सदन हो तो एक साहित्यिक धरोहर का मान बढ़ेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि मंडी कलम के रास्ते खुलें तो कोई सदन वहां भी बने और नई पौध इस क्षेत्र में अपने शौक को रोजगार के पंख भी दे सके। कांगड़ा के ही डाडासीबा या गुरनवाड़ में भी ऐसा कुछ हो जहां अब भी पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की महक है। प्रदेश के हर कोने में कुछ न कुछ ऐसी याद है जिसे और साफ किया जाए तो संस्कृति भी संरक्षित होगी और एक अच्छा अतीत एक बहुत अच्छे भविष्य के लिए रास्ता बनाएगा।

[स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश]

chat bot
आपका साथी