मुद्दों की कसौटी
ऐसे उम्मीदवारों से शहर के विकास के प्रति समर्पण या कुछ कर गुजरने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
पंजाब में तीन नगर निगमों जालंधर, पटियाला व अमृतसर के चुनाव रविवार को हैं। करीब पंद्रह दिन की सियासी गहमागहमी के पश्चात इन शहरों के लोग आगामी पांच वर्षो के लिए अपने प्रतिनिधि चुनेंगे। इस आशा में कि ये प्रतिनिधि उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे, समस्याएं दूर करेंगे, वार्ड का विकास करेंगे, शहर की सूरत संवारने में अपनी ऊर्जा लगाएंगे। हर वार्ड, इलाके, शहर के अपने मुद्दे होते हैं और जागरूक व पढ़े-लिखे मतदाता इन मुद्दों की कसौटी पर ही उम्मीदवारों व दलों को तोलते हैं। इसलिए यह अपेक्षा रहती है कि वोट मांगने वाले भी उन मुद्दों की चर्चा करेंगे, उनसे संबंधित वादे करेंगे, उनपर अपना नजरिया रखेंगे। लेकिन हैरानी की बात है कि इस बार तीनों ही नगर निगमों के चुनाव में मुद्दे गौण हो गए।
होना तो यह चाहिए कि जिस तरह विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में हर दल अपना घोषणापत्र या विजन डाक्यूमेंट मतदाताओं के समक्ष प्रस्तुत करता है, उसी तरह स्थानीय निकाय चुनावों में भी किया जाए लेकिन ऐसा होता नहीं है। इस बार भी नहीं हुआ। इसे क्या समझा जाए? क्या यही कि उम्मीदवार व सियासी दल इन चुनावों में मुद्दों को बहुत हल्के में लेते हैं? अगर ऐसा है तो यह बेहद चिंता का विषय है। इससे तो यही लगता है कि वार्डो का प्रतिनिधि बनने वाले ज्यादातर उम्मीदवार कोई संकल्प लेकर चुनावी रण में नहीं आते। ऐसे उम्मीदवारों से शहर के विकास के प्रति समर्पण या कुछ कर गुजरने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। इस बार के चुनाव में यह कमी बहुत खली है कि तीनों शहरों में सड़कों, सीवरेज, पार्को, सार्वजनिक शौचालयों जैसे मुद्दों को लेकर कोई शोर नहीं मचा।
आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चलता रहा और जनता से जुड़े मसले दबे ही रहे। यह सही चलन नहीं है। चुनाव में उतरने वाले उम्मीदवारों व दलों से अब भी यही अपेक्षा है कि वे शहरों की नब्ज पहचानें और जनता में यह विश्वास उत्पन्न करें कि वे उनके उत्थान के लिए कोई दूरदृष्टि, नजरिया, सोच व संकल्प रखते हैं। जनता को भी इसी कसौटी पर उन्हें तोलकर ही वोट देना चाहिए।जिस तरह विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में हर दल अपना घोषणापत्र या विजन डाक्यूमेंट प्रस्तुत करता है, उसी तरह स्थानीय निकाय चुनावों में भी किया जाए।
[पंजाब संपादकीय]