विश्वसनीय शिक्षा का संकट

स्वच्छ, कदाचारमुक्त व नकलविहीन परीक्षा के लिए उठाए कदम स्वागत योग्य हैं लेकिन ध्यान रखना होगा कि ये महज रस्मअदायगी ही बनकर न रह जाएं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 13 Mar 2017 02:12 AM (IST) Updated:Mon, 13 Mar 2017 02:16 AM (IST)
विश्वसनीय शिक्षा का संकट
विश्वसनीय शिक्षा का संकट

-----स्वच्छ, कदाचारमुक्त व नकलविहीन परीक्षा के लिए उठाए कदम स्वागत योग्य हैं लेकिन ध्यान रखना होगा कि ये महज रस्मअदायगी ही बनकर न रह जाएं।-----हर साल की तरह इस बार भी यूपी बोर्ड परीक्षाओं को नकलविहीन कराने के लिए सारी कसरत की जा रही है। प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा ने परीक्षा के दौरान केंद्रों पर प्रबंधकों के प्रवेश पर कड़ाई से रोक लगा दी है। कहा गया है कि जिस विषय की परीक्षा हो, उस दिन उस विषय के शिक्षक की ड्यूटी भी नहीं लगेगी। परीक्षा नकलविहीन कराने के लिए जिला प्रशासन, पुलिस विभाग एवं शिक्षा महकमे के अफसरों को मिलकर काम करने की सलाह दी है। चेतावनी भी दी है कि नकल में लिप्त कक्ष निरीक्षक, केंद्र व्यवस्थापक तथा कर्मचारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी। परीक्षा कार्य में लगे अधिकारियों को कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियां भी दी गई हैं। निश्चित रूप से स्वच्छ, कदाचारमुक्त व नकलविहीन परीक्षा के लिए ये कदम स्वागत योग्य हैं लेकिन, ध्यान रखना होगा कि इस तरह की घोषणा या चेतावनी महज रस्मअदायगी बनकर न रह जाएं। क्योंकि लगभग हर परीक्षा सत्र के आसपास इस तरह के आदेश-निर्देश के बावजूद न तो नकल रुकती है और न ही नकल कराने में लिप्त माफिया, केंद्र प्रबंधकों, स्कूल प्रबंधकों पर कोई कठोर कार्रवाई हो पाती है। यहां तक कि कार्रवाई के नाम पर कुछ विद्यालय ब्लैकलिस्टेड कर दिए जाते हैं लेकिन, अगले साल वे केंद्र फिर से बहाल हो जाते हैं। कहने को नकलविहीन परीक्षा के लिए अच्छी खासी टास्कफोर्स तैनात की जाती है, केंद्राधीक्षक, वीक्षक, केंद्रों में तैनात पुलिसकर्मी और प्रशासनिक अफसर से लेकर और न जाने क्या-क्या तैयारी होती है, नकल फिर भी नहीं रुकती और शिक्षा माफिया अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं। दरअसल मौजूदा व्यवस्था में नकल को रोका भी नहीं जा सकता। क्योंकि इसकी शुरुआत तो स्कूलों को मान्यता देने से ही शुरू हो जाती है। कई बार दो कमरों में ही संचालित विद्यालयों को मान्यता मिल जाती है तो तमाम स्कूल केवल कागजों पर ही संचालित होते रहते हैं। फिर भी ऐसे कथित विद्यालयों को परीक्षा केंद्र बना दिया जाता है। कुछ विद्यालयों में नकल पकड़ी भी जाती है लेकिन, अगला साल आते-आते उन विद्यालयों पर से यह कलंक धुल भी जाता है। प्रदेश में पठन-पाठन, परीक्षा, परिणाम आदि को गुणवत्तापूर्ण और विश्वसनीय बनाए रखने के लिए सुधार की दिशा में कठोर कदम उठाए जाने जरूरी हैं, अन्यथा गिरती विश्वसनीयता से प्रदेश के युवाओं की शिक्षा के सम्मान को बनाए रखना मुश्किल होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]

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