किसानों का बदलता रूझान

किसानों का कृषि में जैविक खाद का इस्तेमाल लोगों के स्वास्थ्य के साथ उपजाऊ जमीन की उर्वरक शक्ति को बनाए रखने के लिए फायदेमंद है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 18 Dec 2017 06:19 AM (IST) Updated:Mon, 18 Dec 2017 06:19 AM (IST)
किसानों का बदलता रूझान
किसानों का बदलता रूझान

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प्रदेश के किसानों का रुख जैविक खाद के प्रति बदला है, जोकि भूमि और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है इसलिए कृषकों को जागरूक करने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने चाहिए
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राज्य में किसानों का कृषि में जैविक खाद का इस्तेमाल लोगों के स्वास्थ्य के साथ उपजाऊ जमीन की
उर्वरक शक्ति को बनाए रखने के लिए फायदेमंद है। किसानों का रूझान अब जैविक खाद की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि उन्हें अब जैविक खेती से उगाई गई फसल व सब्जियों के अच्छे दाम भी मिल रहे हैं। रसायनिक खाद जमीन की उर्वरक शक्ति को क्षीण कर रही है। इस कारण कुछ सालों के बाद सोना उगलने वाली भूमि बंजर बन जाती है। रसायनिक खेती सेहत के लिए हानिकारक है, क्योंकि इससे कैंसर, तपेदिक और मानसिक रोगों में इजाफा हो रहा है। जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्र आरएसपुरा के सुचेतगढ़ इलाके में किसानों ने जैविक खेती का जो बीड़ा उठाया है, वह किसानों में बदलती सोच का परिचायक है। विश्व प्रसिद्ध बासमती चावल के लिए मशहूर इस क्षेत्र में किसानों ने रसायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया है, यह एक शुरूआत है। धीरे-धीरे राज्य के किसान जैविक खेती को फायदेमंद समझ रहे हैं। इस शुरूआत में सरकार की पहल भी सराहनीय है। सरकार ने शहर के डेयरी फार्म में मवेशियों के गोबर से कैंचुए की खाद तैयार करने की योजना पर अमल करना शुरू कर दिया है। इससे पहले यह कचरा तवी नदी में फेंका जा रहा था, जिससे नदी प्रदूषित हो रही थी। नगर निगम ने यह योजना मवेशियों के बाड़ों और गोशालों में शुरू की है, जिससे कि ग्रामीण अंचल में बर्मी कंपोस्ट की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके। शहरों में जैविक खाद से तैयार की गई दालों, सब्जियों की मांग कुछ सालों में बढ़ी है। किसान भी फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए रसायनिक खाद का ज्यादा इस्तेमाल कर रहा है। बिडंबना यह है कि जम्मू-कश्मीर में हर साल कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। देश के अन्य राज्यों की तरह जैविक खाद से तैयार खाद्य पदार्थों की मांग इसलिए भी बढ़ी है कि लोग भी अब अपने स्वास्थ्य के प्रति काफी जागरूक हुए हैं। रसायनिक खाद हर फसल के बाद डालनी पड़ती है, जबकि जैविक खाद साल में सिर्फ एक बार ही डालनी पड़ेगी। इससे किसानों को फायदा है। इतना ही नहीं किसान भी कीटनाशक के बदले नीम के पत्तों के रस को पानी में घोल कर छिड़काव कर रहे हैं, जिससे फसलों पर कीट का असर कम हो रहा है। नगर निगम डेयरियों, कैटल पांड, गोशालाओं से गोबर एकत्र कर रहा है। शहरों के अलावा अब गांवों में बर्मी कंपोस्ट यूनिट स्थापित की जा रही हैं। बर्मी कंपोज तैयार करना कोई मुश्किल बात नहीं है। नगर निगम और कृषि विभाग को चाहिए की वे किसानों को जैविक खाद के प्रति जागरूक करें। इससे लोगों को बेहतर जिंदगी जीने का मौका मिलेगा।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]

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