लोकतंत्र से छल, चुनावी समर में सौ करोड़ रुपये की सामग्री प्रतिदिन जब्त होना चिंताजनक

यह ठीक है कि बंगाल को छोड़कर चुनावों में बाहुबल पर एक बड़ी हद तक लगाम लगी है लेकिन यह चिंताजनक है कि धनबल की भूमिका इतनी अधिक बढ़ गई है कि अब पैसे और शराब आदि बांटकर चुनाव जीतने की कोशिश की जाने लगी है। कुछ प्रत्याशी इस कोशिश में कामयाब भी होने लगे हैं। यह लोकतंत्र के साथ किया जाने वाला एक बड़ा छल है।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya Publish:Mon, 15 Apr 2024 11:55 PM (IST) Updated:Mon, 15 Apr 2024 11:55 PM (IST)
लोकतंत्र से छल, चुनावी समर में सौ करोड़ रुपये की सामग्री प्रतिदिन जब्त होना चिंताजनक
लोकतंत्र से छल, चुनावी समर में सौ करोड़ रुपये की सामग्री प्रतिदिन जब्त होना चिंताजनक (File Photo)

चुनाव आयोग की ओर से दी गई यह जानकारी चकित करने वाली है कि वह हर दिन शराब, ड्रग्स, आभूषण और अन्य सामग्री के साथ बड़े पैमाने पर नकदी भी जब्त कर रहा है। नकदी समेत जो सामग्री जब्त की जा रही है, उसका कुल मूल्य करीब सौ करोड़ रुपये प्रतिदिन है। अब तक 4,650 करोड़ रुपये की नकदी और सामग्री जब्त की जा चुकी है।

यह आंकड़ा पिछले लोकसभा चुनाव के समय बरामद की गई धन और सामग्री से अधिक है। यह इसलिए खतरे की घंटी है, क्योंकि अभी तो मतदान का पहला चरण भी नहीं हुआ है। इसका मतलब है कि इस बार प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने यानी उनके वोट खरीदने के लिए कहीं अधिक पैसा खपाने के साथ शराब, ड्रग्स आदि बांटने की कोशिश कर रहे हैं।

कोई भी समझ सकता है कि मतदाताओं के बीच बांटी जाने वाली बहुत सी नकदी और सामग्री चुनाव आयोग की पकड़ में नहीं आ पाती होगी। भले ही चुनाव आयोग ने विभिन्न एजेंसियों को सतर्क कर रखा हो, लेकिन उनके लिए यह संभव नहीं कि हर वाहन और व्यक्ति की तलाशी लेने के साथ गांव-गांव निगरानी कर सकें।

चूंकि राजनीतिक दल इससे परिचित हैं कि आचार संहिता लागू होते ही चुनाव आयोग चुनावों में अनुचित साधनों के इस्तेमाल को रोकने के लिए सक्रिय हो जाता है, इसलिए वे चुनाव की घोषणा होने के पहले ही लोगों के बीच पैसे और तरह-तरह की सामग्री बांटने लगते हैं। वहां तो यह काम शुरू ही हो जाता है, जहां चुनावों की घोषणा के पहले ही प्रत्याशी तय हो जाते हैं।

वैसे तो देश के हर हिस्से में मतदाताओं के बीच वितरित की जाने वाली सामग्री के साथ नकदी जब्त की जा रही है, लेकिन इस पर हैरानी नहीं कि इसकी मात्रा तमिलनाडु और दक्षिण के अन्य राज्यों में अधिक है। चुनावों में किस्म-किस्म की सामग्री और धन बांटने का रिवाज तमिलनाडु से ही शुरू हुआ था। पहले राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों में यह वादा करते थे कि यदि वे सत्ता में आए तो अमुक-अमुक वस्तुएं या सुविधाएं मुफ्त प्रदान करेंगे, लेकिन अब वे ऐसा वादा करने के साथ-साथ गुपचुप रूप से भी लोगों के बीच शराब, ड्रग्स के साथ पैसे बांटने लगे हैं।

यह ठीक है कि बंगाल को छोड़कर चुनावों में बाहुबल पर एक बड़ी हद तक लगाम लगी है, लेकिन यह चिंताजनक है कि धनबल की भूमिका इतनी अधिक बढ़ गई है कि अब पैसे और शराब आदि बांटकर चुनाव जीतने की कोशिश की जाने लगी है। कुछ प्रत्याशी इस कोशिश में कामयाब भी होने लगे हैं। यह लोकतंत्र के साथ किया जाने वाला एक बड़ा छल है। समस्या यह है कि जहां औसत मतदाता और विशेष रूप से गरीब तबका प्रलोभन का शिकार बनने के लिए तैयार रहता है, वहीं राजनीतिक दल चुनाव सुधारों को लेकर गंभीर नहीं।

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