रहने लायक शीर्ष 20 बेहतर शहरों में देश की राजधानी दिल्ली का नाम नहीं

देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर भारत के शहर कुछ ज्यादा ही उपेक्षित हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 13 Aug 2018 10:26 PM (IST) Updated:Tue, 14 Aug 2018 05:00 AM (IST)
रहने लायक शीर्ष 20 बेहतर शहरों में देश की राजधानी दिल्ली का नाम नहीं
रहने लायक शीर्ष 20 बेहतर शहरों में देश की राजधानी दिल्ली का नाम नहीं

रहने के लिहाज से बेहतर शहरों की सूची में शीर्ष दस में चंड़ीगढ़, रायपुर, इंदौर और भोपाल को छोड़कर उत्तर भारत का अन्य कोई शहर स्थान नहीं हासिल कर सका तो इसका यही मतलब है कि देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर भारत के शहर कुछ ज्यादा ही उपेक्षित हैं। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि शीर्ष 20 बेहतर शहरों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान आदि का कोई शहर अपनी जगह नहीं बना सका। यह भी अपने आप में एक विडंबना ही है कि देश की राजधानी दिल्ली 111 शहरों की सूची में 65 वें स्थान पर दिख रही है।

रहने लायक बेहतर शहरों की सूची यानी जीवन सुगमता सूचकांक सीधे तौर पर भले ही राज्य सरकारों की पोल खोल रहा हो, लेकिन यह कहीं न कहीं शहरी ढांचे को सुधारने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। अगर भाजपा शासित मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ अपने शहरों की बेहतर तरीके से देखभाल कर सकते हैं तो अन्य भाजपा शासित राज्य ऐसा क्यों नहीं कर सकते? यह सही समय है कि मोदी सरकार शहरीकरण के मामले में सुस्ती दिखा रहे भाजपा शासित राज्यों की लगाम कसे।

यह निराशाजनक है कि हरियाणा और राजस्थान के साथ उत्तर प्रदेश के शहर जीवन सुगमता सूचकांक के शीर्ष क्रम में कहीं नहीं दिख रहे हैं। चिंताजनक केवल यह नहीं कि आबादी के लिहाज से इन राज्यों के महानगर सरीखे शहर अपने बुनियादी ढांचे को दुरुस्त रखने में नाकाम हैं, बल्कि यह भी है कि उत्तर प्रदेश में नोएडा जैसा नया बना शहर भी साफ-सुथरी और सुगम रिहाइश में पिछड़ रहा है। यह नौकरशाही के नाकारापन का ही नतीजा है। रही-सही कसर बेजा राजनीतिक हस्तक्षेप ने पूरी कर दी है। यह राजनीतिक हस्तक्षेप शहरी ढांचे को बेहतर बनाने के बजाय उसे बर्बाद करने का ही काम कर रहा है।

यह किसी से छिपा नहीं कि संकीर्ण राजनीतिक और कभी-कभी प्रसाशनिक हितों की पूर्ति करने के लिए ऐसी नीतियों पर यह जानते हुए भी अमल होता है कि वे शहरीकरण के मानकों के विपरीत हैं। इसकी एक झलक इससे मिलती है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने शहरों को जीवन सुगमता सूचकांक का हिस्सा बनाने से ही इन्कार कर दिया। आखिर इसे जनविरोधी राजनीति के अलावा और क्या कहा जा सकता है?

शहरी मामलों के मंत्रालय के लिए केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि उसने शासन, सामाजिक संस्थाओं और आर्थिक एवं बुनियादी ढांचे के आधार पर रहने के लिहाज से बेहतर शहरों की सूची जारी कर दी। अब उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य सरकारें शहरों को संवारने में गंभीरता का परिचय दें। यह इसलिए आवश्यक है कि एक तो आज के युग में शहर आर्थिक विकास के इंजन हैं और दूसरे आने वाले समय में गांवों से शहरों की ओर पलायन और अधिक बढ़ने वाला है।

यदि शहरों का ढांचा सुधरा नहीं तो वे बढ़ती आबादी के बोझ का सामना करने में नाकाम होने के साथ ही अर्थव्यवस्था की सेहत पर भी बुरा असर डालेंगे। हमारे नीति-नियंता यह समझें तो बेहतर कि शहरों की अनदेखी उन्हें रहने के लिहाज से खतरनाक भी बना सकती है।

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