अतिक्रमण का नासूर

उत्तराखंड में नासूर बन चुके अतिक्रमण की ओर से जिम्मेदार विभाग अक्सर मुंह फेरते ही नजर आए हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 26 Apr 2017 01:32 AM (IST) Updated:Wed, 26 Apr 2017 01:32 AM (IST)
अतिक्रमण का नासूर
अतिक्रमण का नासूर

उत्तराखंड में नासूर बन चुके अतिक्रमण की ओर से जिम्मेदार विभाग अक्सर मुंह फेरते ही नजर आए हैं। अब शहर विकास मंत्रालय ने इस दिशा में पहल कर आगाज अच्छा किया है, लेकिन अंजाम की प्रतीक्षा है।
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नई सरकार ने राजधानी देहरादून को अतिक्रमण से मुक्त करने की पहल की है। पहले चरण में घंटाघर से आइएसबीटी तक जाने वाले मार्ग का कायाकल्प किया जाना है। इसके बाद राजपुर और हरिद्वार रोड की बारी है। सरकार की यह कवायद स्वागत योग्य है। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने सक्रियता दिखाते हुए विभिन्न विभागों के साथ बैठक कर एक सप्ताह में कार्ययोजना प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। यदि मंत्री इस कवायद पर नजर बनाए रखें तो इसमें कोई दो राय नहीं कि दून की सूरत संवरने लगेगी। दरअसल, इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि पिछले लंबे समय से शहरी विकास विभाग निष्क्रिय सा नजर आ रहा था। यही वजह है कि देहरादून ही नहीं, उत्तराखंड के प्रमुख शहर और कस्बे पूरी तरह अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। बात चाहे नैनीताल की हो या मसूरी की, पौड़ी हो या पिथौरागढ़ अथवा हरिद्वार और हल्द्वानी। रुद्रपुर से लेकर रुद्रप्रयाग तक तस्वीर एक जैसी है। ऐसा नहीं है कि जिम्मेदार एजेंसियां हालात की गंभीरता से परिचित नही हैं, लेकिन निकाय हों या प्राधिकरण अथवा प्रशासन अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर अक्सर दबाव में दिखायी देते हैं। समय-समय पर चलाए जाने वाले अभियानों की हकीकत तस्दीक करती है कि ये सिर्फ खानापूरी के लिए हैं। दरअसल, इसके मूल में है राजनीतिक हस्तक्षेप। वोटों की फसल के लिए इससे उर्वरक भूमि दूसरी कौन सी होगी। नदी के तट हों या सड़क के किनारे, यहां तक कि फुटपॉथ भी अतिक्रमण के मुंह में समा गए। जब-जब कार्रवाई होती है तो सबसे पहले नेताजी के समर्थक ही एजेंसियों पर दबाव बनाना शुरू कर देते हैं। ऐसे में नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहता है। उत्तराखंड एक पर्यटन प्रदेश है, जहां देश-विदेश से लाखों सैलानी और तीर्थयात्री पहुंचते हैं। लेकिन प्रवेश द्वार हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून जैसे शहरों की तस्वीर देख कैसी छवि लेकर वे लौटते हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। अब पहली बार सत्ता में एक प्रचंड बहुमत वाली सरकार है। जाहिर से सरकार से जन अपेक्षाएं भी उसी अनुपात में हैं। सरकार यदि दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाए तो अतिक्रमण के भस्मासुर को खत्म किया जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि देहरादून से हो रहा यह आगाज प्रदेश में अंजाम तक पहुंचेगा। 'स्वच्छ दून, सुंदर दून' ही नहीं, बल्कि 'स्वच्छ और सुंदर उत्तराखंड' का नारा सार्थक हो सके।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]

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