किसान आंदोलन पर कनाडा के पीएम ने कूटनीतिक सीमा लांघकर भारत के आंतरिक मामलों में किया अनुचित हस्तक्षेप

सरकार इसके लिए हरसंभव कदम उठाए कि दिल्ली में जो किसान आंदोलन जारी है उसका स्वार्थी तत्व अपने हितों में बेजा इस्तेमाल न कर सकें। अच्छी नीतियों पर भी लोगों में अफवाह फैलाकर भ्रम पैदा करने की कोशिश की जा रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 01 Dec 2020 11:22 PM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 12:11 AM (IST)
किसान आंदोलन पर कनाडा के पीएम ने कूटनीतिक सीमा लांघकर भारत के आंतरिक मामलों में किया अनुचित हस्तक्षेप
अफवाह फैलाकर भ्रम पैदा करने की कोशिश की जा रही है।

नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसान संगठनों के आंदोलन को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने जिस तरह अपनी कूटनीतिक सीमाओं से आगे जाकर टिप्पणियां कीं वह भारत के आंतरिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप ही नहीं, बल्कि एक आर्थिक-राजनीतिक विषय को संकीर्ण धार्मिक नजरिये से देखने की कुचेष्टा भी है। दुर्भाग्य से इस तरह की कुचेष्टा कनाडा की मौजूदा सरकार पहले भी कर चुकी है। इसके चलते वह भारत के रूखे रवैये से भी दो चार हो चुकी है, लेकिन ऐसा लगता है कि स्थानीय राजनीतिक समीकरणों को अपने हिसाब से बनाने के फेर में उसे भारत से संबंधों की परवाह नहीं है।

कनाडा सरकार के रवैये की जैसी आलोचना की गई उसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार है। उचित यह होगा कि इस मामले में देश के अन्य राजनीतिक दल भी कनाडा सरकार को कठघरे में खड़ा करें, क्योंकि वह देश के आंतरिक मामलोें में जानबूझकर हस्तक्षेप करती दिखती रही है। इस मामले में सबसे अधिक सक्रियता दिखाने की जरूरत पंजाब सरकार को है, क्योंकि उसने ही वस्तुत: किसानों को उकसाकर उन्हें दिल्ली कूच कराया है।

आने वाले दिनों में कनाडा की तरह अन्य देशों से भी इस तथाकथित किसान आंदोलन को समर्थन दिया जा सकता है। समर्थन देने का यह काम देश के कुछ अनाम-गुमनाम और हमेशा अशांति के पक्ष में मौके की ताक में रहने वाले संगठन भी कर सकते हैं। किसान आंदोलन जिस तरह का मोड़ लेता चला जा रहा है उसमें अब किसानों के हित का मसला मुश्किल से ही नजर आता है। यह आंदोलन अब कुछ दलों और संगठनों के लिए राजनीतिक फायदा उठाने का जरिया बन गया है। उचित यह होगा कि सरकार इसके लिए हरसंभव कदम उठाए कि दिल्ली में जो किसान आंदोलन जारी है उसका स्वार्थी तत्व अपने हितों में बेजा इस्तेमाल न कर सकें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत दिवस जिस तरह यह चिंता व्यक्त की है कि देश में इन दिनों एक घातक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है कि अच्छी नीतियों पर भी लोगों में अफवाह फैलाकर भ्रम पैदा करने की कोशिश की जा रही है उस पर हर किसी को ध्यान देना चाहिए।

यह उचित नहीं कि किसानों के कुछ संगठन ऐसी ही अफवाहों पर भरोसा कर खुद अपना अहित करने का काम कर रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि वे इस पर विचार करें कि जो व्यवस्था उन्हें खतरे में नजर आ रही है उसने उन्हें अब तक क्या दिया है? अर्थशास्त्री और कृषि विशेषज्ञ मुक्त बाजार वाली जिस व्यवस्था को किसानों के लिए आवश्यक मान रहे हैं उसके विरोध का मतलब है सुधार के अवसर खुद ही बंद करना।

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