निशाने पर नौकरशाह

उत्तराखंड में अफसरशाही का रवैया फिर से चर्चाओं में है। ये भी कह सकते हैं कि इसने ‘बीमारी’ का सा रूप ले लिया है। तह में जाकर इसका निदान तलाशा जाना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 28 Apr 2018 02:55 PM (IST) Updated:Sat, 28 Apr 2018 02:55 PM (IST)
निशाने पर नौकरशाह
निशाने पर नौकरशाह

उत्तराखंड में विधायकों की नाराजगी एक बार फिर से सामने आई है। इत्तिफाक है कि इस बार भी सत्ताधारी दल के विधायकों ने मोर्चा खोला है और निशाने पर है नौकरशाही। इनमें वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हैं। राज्य में सत्ता संभाल रही प्रचंड बहुमत वाली भाजपा के दस से बारह विधायकों ने दो रोज पहले मुख्यमंत्री दरबार में दस्तक देकर अपनी शिकायत दर्ज कराई। बोले, कि अधिकारियों का उनके प्रति रवैया ठीक नहीं है। आरोप यहां तक लगाया कि उनके लिए तय प्रोटोकाल तक का मखौल उड़ाया जा रहा है। हालांकि, मुख्यमंत्री ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से बात बिगड़ने से बचा ली। विधायकों को भरोसा दिलाया कि उनकी सभी शिकायतों का उचित तरीके से समाधान किया जाएगा। उसके बाद नाराज विधायकों ने भी मामले को तूल देने से परहेज किया। सत्ताधारी दल के भीतर से उठी यह चिंगारी भले ही फिलवक्त आपसी समझ के चलते बुझ गई, लेकिन तमाम सवाल हवा में अब भी तैर रहे हैं। विधायकों का यह रूप पहली बार सामने नहीं आया। राज्य गठन के बाद से गुजरे अट्ठारह सालों में कई ऐसे मौके आ चुके हैं।

सरकार भाजपा की रही हो या फिर कांग्रेस की, नौकरशाही की निरंकुशता को लेकर शिकायतें हमेशा बनी रहीं। दिलचस्प यह कि अफसरों के व्यवहार से विपक्ष की तुलना में सत्ता पक्ष ज्यादा आहत दिखा। वयोवृद्ध एनडी तिवारी के कार्यकाल वाली कांग्रेस सरकार में तो आधे से ज्यादा मंत्रियों ने नौकरशाही के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया था। शिकायतें यहां तक आईं कि अफसरों ने उनके मंत्रलयों की फाइलों का अनुमोदन तक नहीं लिया। इसके बाद बीसी खंडूरी और रमेश पोखरियाल निशंक के नेतृत्व वाली सरकारों में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिला। तब इसकी सबसे बड़ी वजह राजनीतिक अस्थिरता माना गया था। चूंकि अब तो ऐसे हालात नहीं हैं, सत्तासीन भाजपा के पास प्रचंड बहुमत है। राज्य में किसी तरह की राजनीतिक उथल-पुथल भी नहीं है। यह चिंता ही नहीं, एक प्रकार से शोध का विषय है कि आखिर ऐसा क्यों। खामी किस स्तर पर है, क्या इसे कोई हवा दे रहा है या फिर अफसरशाही का यह शगल बन गया है। खैर, जो भी है उसे अच्छा नहीं कहा जा सकता। सत्ता प्रतिष्ठान चला रही शख्सियतों को इस प्रवृत्ति पर सख्ती से अंकुश लगाने का प्रयास करना होगा। अन्यथा नित नई समस्याएं खड़ी होती जाएंगी।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]

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