संबंधों पर सही संदेश

विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जिस

By Edited By: Publish:Mon, 01 Jun 2015 06:08 AM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2015 06:06 AM (IST)
संबंधों पर सही संदेश

विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जिस तरह करीब-करीब सभी मुद्दों पर अपनी बात प्रभावशाली ढंग से रखी उससे स्वत: स्पष्ट हो जाता है कि इस एक मोर्चे पर यह सरकार उम्मीद से अधिक सफल रही है। इसका जितना श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है उतना ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी, जिन्होंने अपने काम पर कहीं अधिक गंभीरता से ध्यान दिया। शायद यही कारण है कि वह मोदी सरकार की सबसे कार्यकुशल और दक्ष मंत्री के रूप में जानी जा रही हैं। विदेश नीति से संबंधित मुद्दों पर सवाल-जवाब के दौरान पाकिस्तान से संबंधों का सवाल सामने आना ही था। यह अच्छा हुआ कि सुषमा स्वराज ने यह स्पष्ट कर दिया कि संबंध सुधारने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर ही है, क्योंकि वही है जिसकी गतिविधियों से वैसा माहौल तैयार नहीं हो पा रहा है जिसमें दोनों देश द्विपक्षीय मसलों पर गंभीरता से चर्चा कर सकें। दुर्भाग्य से इसकी उम्मीद भी कम ही है कि पाकिस्तान संबंधों को सुधारने और भरोसे का माहौल बनाने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा। एक के बाद एक गतिविधियां यही संकेत कर रही हैं कि पाकिस्तान अपनी भारत विरोधी गतिविधियों का परित्याग करने के लिए तैयार नहीं। यह तब है जब मोदी सरकार ने पहले दिन ही यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण संबंधों का पक्षधर है और इसके लिए एक कदम आगे बढ़कर पहल करने के लिए भी तत्पर है। भारत की इस तत्परता के जवाब में पाकिस्तान ने कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया और यही कारण है कि दोनों देशों के संबंधों में कहीं कोई सुधार आता नहीं दिख रहा है।

पाकिस्तान के संदर्भ में भारत की एक बड़ी चिंता जम्मू-कश्मीर में अनावश्यक दखलंदाजी है। भारत की ओर से आगाह किए जाने के बावजूद पाकिस्तान न तो सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए ईमानदारी से कोई कोशिश कर रहा है और न ही उन तत्वों पर लगाम लगाने के लिए जो भारत के लिए खतरा बने हुए हैं। अब तो ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ चाहकर भी ऐसे कदम नहीं उठा पा रहे हैं जिससे भारत उन पर भरोसा कर सके। इसकी पुष्टि अब और अधिक प्रामाणिक ढंग से हो रही है कि पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी ने नवाज शरीफ पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है। भले ही वह चुनी हुई सरकार का प्रतिनिधित्व करते हों, लेकिन शासन की वास्तविक शक्ति उनके हाथों में नहीं। पिछले कुछ समय से यह भी दिख रहा है कि अमेरिका समेत कई राष्ट्र पाकिस्तानी सेना के प्रमुख को कुछ वैसी ही अहमियत दे रहे हैं जैसी कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को मिलनी चाहिए। निश्चित रूप से यह भारत के लिए चिंता का विषय है, लेकिन जो भी देश पाकिस्तानी सेना के प्रमुख को अहमियत देने में लगे हुए हैं वे पाकिस्तान के हितों की भी अनदेखी कर रहे हैं और दक्षिण एशिया के हितों की भी। भारत सरकार को उन देशों को इसके लिए आगाह करना होगा जो पाकिस्तान पर प्रभाव डाल सकने में समर्थ हैं और जो वहां की निर्वाचित सरकार के बजाय वहां के सेना प्रमुख को महत्व देने में लगे हुए हैं। चूंकि मौजूदा माहौल में भारत के संदर्भ में पाकिस्तान के नजरिये में बदलाव की कोई उम्मीद नहीं इसलिए उचित यही होगा कि मोदी सरकार पाकिस्तान के रुख-रवैये के प्रति सतर्क रहे।

[मुख्य संपादकीय]

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