हिंसक शिक्षक

जम्मू के किश्तवाड़ जिले के चिरहाड़ हाई स्कूल के हेडमास्टर द्वारा विद्यार्थियों की बेरहमी से की गई पिटा

By Edited By: Publish:Wed, 01 Oct 2014 05:10 AM (IST) Updated:Wed, 01 Oct 2014 05:10 AM (IST)
हिंसक शिक्षक

जम्मू के किश्तवाड़ जिले के चिरहाड़ हाई स्कूल के हेडमास्टर द्वारा विद्यार्थियों की बेरहमी से की गई पिटाई निंदनीय है। विद्यार्थियों का कसूर बस इतना था कि स्कूल में फेयरवेल पार्टी के बाद वहां पर गंदगी फैली हुई थी। इस घटना के बाद विद्यार्थियों के अभिभावकों में रोष उत्पन्न होना स्वभाविक था। अभिभावकों ने काफी देर तक किश्तवाड़-छात्रु मार्ग जाम कर प्रदर्शन किया और हेडमास्टर के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन मिलने के बाद ही वे शांत हुए। इस तरह की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले आरएसपुरा के गवर्नमेंट ग‌र्ल्स हाई स्कूल दबलैड़ में भी शिक्षक ने पिटाई करते हुए छात्रा की टांग तोड़ दी थी जबकि बनौटा गांव के सरकारी प्राइमरी स्कूल में चौथी कक्षा के छात्र की पिटाई के दौरान उसके सिर में गंभीर चोट आई थी। इन घटनाओं से शिक्षकों की बढ़ती बौखलाहट और पढ़ाने के प्रति कम होती रुचि दिखती है। डंडे के बलबूते छात्रों को पढ़ाना और उन्हें अनुशासन सिखाना उनसे नाइंसाफी है। इससे उनमें हमेशा के लिए एक खौफ पैदा हो जाएगा। इस खौफ के कारण बच्चे स्कूल जाने से कतराने लगते हैं। उनके व्यक्तित्व में भी बदलाव आ जाता है और उनका मनोबल भी गिर जाता है। गुरु-शिष्य परंपरा में अब काफी अंतर आ गया है और गुरु समाज के प्रति अपने नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। पहले गुरु अपने शिष्य को न सिर्फ किताबी ज्ञान देते थे बल्कि उन्हें आध्यात्मिक एवं संस्कारिक ज्ञान देकर अपना दायित्व भी निभाते थे। माता-पिता के बाद गुरु ही छात्रों के जीवन का मार्गदर्शन करता है और शिष्य के लिए गुरु का रुतबा सबसे ऊंचा होता है, लेकिन आए दिन मारपीट व छेड़छाड़ की घटनाएं इस रिश्ते को दागदार कर रही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि शिक्षकों के प्रति हर अभिभावक का विश्वास जुड़ा होता है। अगर शिक्षा के इस मंदिर में ऐसी घटनाएं होंगी तो नि:संदेह अभिभावकों का विश्वास टूटेगा। पहले ही सरकारी स्कूलों के गिरते परिणामों के कारण अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना बेहतर समझते हैं और इस प्रकार की घटना से इन स्कूलों की छवि और धूमिल होगी। विगत दिवस जो घटना घटित हुई, उसे टाला जा सकता था और विद्यार्थियों को प्यार से भी समझाया जा सकता था। शिक्षकों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों व समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें।

[स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर]

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