2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को हमें अपना सपना बनाना होगा

भारत 2025 तक टीबी मुक्त हो सके यह प्रधानमंत्री मोदी का सपना है। इसको पूरा करने के लिए हम सभी को इस सपने को अपना बनाना होगा। टीबी को नियंत्रित करने के लिए पिछले लगभग 60 वर्षो से प्रयास हो रहे हैं फिर भी यह गंभीर समस्या बनी हुई है।

By TaniskEdited By: Publish:Wed, 24 Mar 2021 10:39 AM (IST) Updated:Wed, 24 Mar 2021 10:39 AM (IST)
2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को हमें अपना सपना बनाना होगा
टीबी के खिलाफ कुछ कामयाबी जरूर मिली है, लेकिन अभी और प्रयासों की दरकार है। फाइल

[डॉ. सूर्यकांत]। टीबी (तपेदिक, क्षय रोग, राज रोग) एक जीवाणु जनित रोग है, जो मनुष्यों के शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। इसमें फेफड़े की टीबी मुख्य है। टीबी रोग को भारत में वैदिक काल से ही क्षय रोग तथा यक्ष्मा के रूप में जाना जाता रहा है। रॉबर्ट कॉक ने 24 मार्च, 1882 को टीबी के जीवाणु की खोज की थी। वह खोज टीबी को समझने और इलाज में मील का पत्थर साबित हुई। अत: हर वर्ष 24 मार्च को ‘विश्व टीबी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1943 से पहले जब टीबी की कोई दवाएं नहीं थीं तो इसका इलाज मुख्यत: अच्छा भोजन, अच्छी चिकित्सकीय देखभाल और शुद्ध हवा द्वारा होता था, जिसे सेनेटोरियम इलाज के नाम से जाना जाता था। अच्छा भोजन और शुद्ध हवा का वर्णन आयुर्वेद में भी मिलता है। टीबी की पहली दवा स्ट्रेप्टोमाइसिन की खोज वैक्समैन नामक वैज्ञानिक ने वर्ष 1943 में की थी।

टीबी दुनिया की दस मुख्य बीमारियों में से एक है। इसकी बढ़ती संख्या देखकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1993 में इसे वैश्विक आपातकाल घोषित किया था। 2019 में विश्व में करीब एक करोड़ लोगों को टीबी हुई थी, जिनमें से 56 लाख पुरुष, 32 लाख महिलाएं और 12 लाख बच्चे थे। टीबी सभी देशों में और किसी भी आयु वर्ग के लोगों में हो सकती है। भारत विश्व में टीबी रोग से सबसे अधिक प्रभावित देश है। विश्व में प्रतिवर्ष 14 लाख मौतें टीबी से होती हैं, इनमें से एक चौथाई से अधिक मौतें अकेले भारत में होती हैं। विश्व में टीबी का हर चौथा मरीज भारतीय है। हमारे देश में लगभग 1000 लोगों की मृत्यु प्रतिदिन टीबी के कारण हो जाती है। इसीलिए टीबी अत्यधिक खतरनाक एवं जानलेवा बीमारी मानी जाती है।

भारत में टीबी को नियंत्रित करने के लिए पिछले लगभग 60 वर्षो से लगातार प्रयास किए जा रहे

भारत में टीबी को नियंत्रित करने के लिए पिछले लगभग 60 वर्षो से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी यह एक गंभीर समस्या बनी हुई है। वर्ष 1962 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की थी। 30 वर्ष बाद इस कार्यक्रम की समीक्षा में यह पाया गया कि इससे अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। अत: 1993 में पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) प्रारंभ किया गया। 30 दिसंबर, 2019 को इस कार्यक्रम का नाम राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम कर दिया गया। इसकी भयावहता को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से टीबी को 2025 तक समाप्त करने की घोषणा की है। देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या टीबी के जीवाणुओं से प्रभावित है, लेकिन देश में टीबी रोगियों की संख्या 27 लाख ही है। क्योंकि जिनकी इम्युनिटी एवं पोषण अच्छा होता है, उनको संक्रमण के बाद भी टीबी रोग नहीं होता है। अत: पोषण और इम्युनिटी टीबी को रोकने में मददगार साबित होती हैं। इसीलिए टीबी पोषण भत्ता योजना प्रारंभ की गई है, जिसमें टीबी के प्रत्येक रोगी को नि:शुल्क जांच एवं उपचार के साथ 500 रुपये प्रतिमाह पोषण भत्ता के रूप में दिए जाते हैं।

भयानक रोग से मुक्ति के लिए चौतरफा प्रयास किए जाने की जरूरत

इस भयानक रोग से मुक्ति के लिए चौतरफा प्रयास किए जाने की जरूरत है। अभिनेता अमिताभ बच्चन टीबी उन्मूलन प्रोग्राम के राष्ट्रीय ब्रांड अंबेसडर हैं। इसी प्रकार अन्य हस्तियों को भी इस प्रोग्राम से जोड़ा जाना चाहिए, जो देश, प्रदेश और जिला स्तर पर अपना योगदान दे सकें। नेतागण, विधायक, सांसद, ग्राम प्रधान एवं प्रशासनिक अधिकारियों को समाज के सभी लोगों में टीबी को लेकर जागरूकता फैलनी चाहिए। टीबी के नए रोगियों की खोज और बचाव पर सर्वाधिक ध्यान देने की जरूरत है। सरकारी और गैरसरकारी आयोजनों में टीबी से बचाव के कार्यक्रम होने चाहिए। पोलियो की तरह ही एक व्यापक जन आंदोलन की जरूरत है।

टीबी एक सामाजिक बीमारी भी है

भारत टीबी मुक्त हो सके, इसके लिए कुछ सुझाव इस प्रकार हैं। एमबीबीएस की पढ़ाई में टीबी की बीमारी को उचित प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि टीबी सिर्फ एक चिकित्सकीय बीमारी ही नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक बीमारी भी है। कुशल एवं निपुण डॉक्टरों को ही टीबी के मरीजों का इलाज करने की छूट होनी चाहिए। सरकारी और निजी चिकित्सकों को टीबी के इलाज के बारे में उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। टीबी की दवाओं को लिखने का अधिकार सिर्फ प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सकों को ही होना चाहिए। केवल चिन्हित एवं प्रामाणित मेडिकल स्टोर्स पर ही टीबी की दवाएं उपलब्ध होनी चाहिए। डायग्नोस्टिक टूल का सही और उचित उपयोग होना चाहिए। जैसे कि टीबी के निदान के लिए अभी सीरोलॉजी टेस्ट प्रतिबंधित है, फिर भी अभी बड़ी मात्र में ऐसी जांचें की जा रही हैं। जिस तरह कोविड-19 के विरुद्ध भारत ने युद्ध स्तर पर कार्य किया और एक वर्ष से भी कम समय में वैक्सीन विकसित की, उसी तरह टीबी के लिए भी प्रभावी वैक्सीन एवं अन्य दवाएं विकसित हों इसका प्रयास होना चाहिए। टीबी नोटिफिकेशन को कड़ाई से लागू करना चाहिए जिससे देश में टीबी रोगियों की सही संख्या का आकलन हो सके।

(लेखक- केजीएमयू लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।)

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