समय की मांग है वर्क फ्रॉम होम, सड़कों पर जाम और तरह-तरह के प्रदूषणों से भी मुक्ति
COVID-19 कोरोना संक्रमण के इस दौर में देश के नागरिकों ने एकजुटता का परिचय दिया है। साथ ही कार्यालयों की कार्य संस्कृति में ‘वर्क फ्रॉम होम’ के रूप में एक नए आयाम का विस्तार हुआ है
डॉ. विशेष गुप्ता। COVID-19: आज भारत समेत दुनिया के अधिकांश देश कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में हैं। सभी शैक्षिक, आर्थिक, धार्मिक और व्यावसायिक संस्थान बंद हैं। देश-दुनिया में इस समय एक भय का माहौल है। सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों में कार्यरत लोगों को घर पर ही रहने, बाहरी लोगों से दूरी बनाए रखने और ‘वर्क फ्रॉम होम’ यानी घर से काम करने के लिए कहा गया है। केंद्र एवं प्रदेश की सरकारों ने स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोजमर्रा की चीजों से जुड़े लोगों को अपनी लगातार सेवा देने तथा स्वयं को सुरक्षित रखने के दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं।
वर्क फ्रॉम होम से जुड़ा उच्च शिक्षित वर्ग : देश भर में जारी लॉकडाउन का असर तो दिख रहा है, परंतु लोगों के घरों पर ठहरने, वर्क फ्रॉम होम के साथ-साथ शारीरिक दूरी बनाने के कई स्तरीय परिणाम भी सामने आ रहे हैं। इस वर्क फ्रॉम होम से जुड़ा देश में पहला वह वर्ग है जो उच्च शिक्षित है, डिजिटल तकनीक में माहिर है और बड़ी कंपनियों में काम करता है।
देश का यह वह वर्ग है जिसके पास शुरू से ही समय का अभाव रहा है। यहां तक कि ये लोग परिवार के साथ साथ खुद के लिए भी समय नहीं निकाल पाते थे। आज ये लोग वीडियो कांफ्रेंसिंग, चैटिंग, सोशल मीडिया एवं अन्य तकनीकी उपायों के जरिये कार्यालय संबंधी व्यापक कामकाज को घर से अंजाम दे रहे हैं।
वर्क फ्रॉम होम से जुड़ा उच्च बाबू वर्ग : वर्क फ्रॉम होम से जुड़ा दूसरा वह बाबू वर्ग है जिसके कार्यालय की जिंदगी डिजिटल तकनीक के मुकाबले फाइलों में अधिक कैद रही है। निश्चय ही इस वर्ग के लोग ऑफिस के कार्यों से पूरी तरह आजाद हैं। इनके लिए लॉकडाउन पूर्ण अवकाश का अहसास करा रहा है। वर्क फ्रॉम होम कार्य संस्कृति के भीतरी पक्ष को जानने से ज्ञात हुआ है कि इस लॉकडाउन ने सभी वर्गों के लोगों को इस समय अपने परिवार, बच्चों एवं वरिष्ठजनों से सघन संवाद करने और उन सभी के साथ यह समय व्यतीत करने का अवसर दिया है। परिवार में जो हंसी-खुशी पहले शुष्क हो गई थी, परिवार के इस संवाद ने उसे पुनर्जीवित करने का काम किया है।
वर्क फ्रॉम होम से प्रदूषणों से मुक्ति : इससे यह तथ्य भी उभरकर सामने आया है कि नि:संदेह इस लॉकडाउन और शारीरिक दूरी से परिवार की थमी हुई जिंदगी को दोबारा शुरू करने का मौका मिला है। वर्तमान लॉकडाउन के अन्य कई सकारात्मक असर भी हमारे सामने दिखाई दे रहे हैं। मसलन अधिकांश लोगों के अपने-अपने घरों में ही रहने के कारण सड़कों पर यातायात का कम होना, वाहनों का न्यूनतम प्रयोग तथा सड़क जाम से निजात इत्यादि के साथ में अनेक प्रकार के प्रदूषणों से मुक्ति भी इसके सकारात्मक परिणाम कहे जा सकते हैं।
रास्तों का जाम से छुटकारा : फ्लेक्सजॉब नामक संस्था ने वर्क फ्रॉम होम से संबंधित एक हजार लोगों पर अध्ययन करने पर पाया कि घर से काम करने वाले लोग अपने काम में 65 फीसद अधिक उत्पादित रहे हैं। इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कार्यालय का काम करते-करते उनके कार्यालय के काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच में तमाम तरह के खांचे बन गए थे जिनसे भी कुछ हद तक उन्हें छुटकारा मिला है। घर से कार्यालय जाने का तनाव, रास्तों का जाम एवं ऑफिस पहुंचने में लेटलतीफी जैसे झंझटों से छुटकारा भी इससे मिला है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के साथ में परिवार का वात्सल्य, समय पर भोजन एवं सामाजिक सीख के प्रबंध भी इससे उपलब्ध हो रहे हैं।
देखने में आया है कि पहले वर्क फ्रॉम होम की परंपरा केवल कुछ मल्टीनेशनल कंपनियों तक सीमित थी। उसके बाद यह संस्कृति उन कार्यालयों तक विस्तारित हुई जिन कार्यालयों में फाइलों की ऑनलाइन व्यवस्था कर दी गई थी। भारत सरकार के साथ राज्य सरकारों के आधे कार्यालयों में अभी पूरी तरह फाइलों का डिजिटलीकरण नहीं होने से सभी कार्मिकों को अभी वर्क फ्रॉम होम की सुविधा नहीं है। यही वजह है कि देश में लॉकडाउन के बाद वर्क फ्रॉम होम से देश की कार्यालयी व्यवस्था को अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है।
सभी कार्यालयों को ऑनलाइन करने की जरूरत : हां, इतना जरूर है कि यह कार्य संस्कृति देश के कार्यालयी तंत्र को ऐसी विषम परिस्थितियों में संचालन करने के लिए सरकारों के लिए एक मॉडल जरूर है। लेकिन इसके लिए सरकारों को पहले अपने सभी कार्यालयों को बिना देर किए ऑनलाइन करने की जरूरत होगी। इसके साथ-साथ इससे जुड़े अपने सभी कार्मिकों को भी इस तंत्र के संचालन के लिए प्रशिक्षित करते हुए डिजिटल यंत्रों से लैस करना होगा। इस कोरोना वायरस की महामारी को देखते हुए आज जैसे हालात हैं, भविष्य में अब ऐसे संक्रमण नहीं होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती। इसलिए ऐसे लॉकडाउन के कालखंड में भी देश का अंदरूनी तंत्र ठीक से काम करता रहे, इस बारे में समय रहते सरकारों को सोचने की आवश्यकता है। सभी लोगों के लिए वर्क फ्रॉम होम एक ऐसी व्यवस्था रहेगी जिससे सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर काम भी नहीं रुकेगा और सड़कों पर जाम और तरह-तरह के प्रदूषणों से भी मुक्ति मिलेगी।
अनेक प्रकार के तनावों से छुटकारा मिलेगा : तमाम वैज्ञानिक शोधों के अनुसार आज मानवता का भविष्य भी दांव पर लगा है। इसलिए भविष्य में भी संक्रमण की ऐसी समस्याओं के आने की आशंकाओं को नकारा नहीं जा सकता है। ऐसे संक्रमण काल में सरकारों के साथ-साथ बच्चों एवं महिलाओं से लेकर बुजुर्गों तक सभी संघर्ष करने को मजबूर होते हैं। आर्थिक संसाधनों को भी भारी नुकसान पहुंचता है। असल में देखा जाय तो यह सब क्षति देश की ही होती है। इसलिए सरकारों को वर्क फ्रॉम होम जैसे मॉडल को और अधिक विकसित करते हुए सभी लोगों तक इसकी पहुंच बनानी होगी। उससे ऐसे संकट आने पर मानवता का बचाव भी होगा और कार्मिकों के रास्तों की तमाम दुश्वारियां भी कम होंगी। साथ ही उन्हें अनेक प्रकार के तनावों से छुटकारा मिलेगा और देश की कार्यालयी व्यवस्था भी निर्बाध गति से चलती रहेगी। इसलिए सरकारों को इस संकट के समय में इस दिशा में समय रहते सोच विकसित करने की आवश्यकता है।
कोरोना संक्रमण के इस भयावह दौर में एक अच्छी बात यह है कि देश के नागरिकों ने एकजुटता का परिचय दिया है। साथ ही कार्यालयों की कार्य संस्कृति में ‘वर्क फ्रॉम होम’ यानी घर से काम करने के रूप में एक नए आयाम का विस्तार हुआ है। सरकारों के सामने काम का यह एक नया मॉडल और लोगों के लिए शारीरिक दूरी बनाए रखने का एक नया संदर्भ भी है। इसके कई फायदे सामने आए हैं जिन पर इस संकट के गुजर जाने के बाद निश्चित रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए।
[अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग]।