प्रकृति की पर्याय है नारी शक्ति, विडंबना देखिए स्त्री का शोषण और प्रकृति का दोहन बदस्तूर जारी

स्त्री और प्रकृति के बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। फिर भी विडंबना देखिए कि स्त्री का शोषण और प्रकृति का दोहन बदस्तूर जारी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 08 Sep 2020 09:56 AM (IST) Updated:Tue, 08 Sep 2020 09:56 AM (IST)
प्रकृति की पर्याय है नारी शक्ति, विडंबना देखिए स्त्री का शोषण और प्रकृति का दोहन बदस्तूर जारी
प्रकृति की पर्याय है नारी शक्ति, विडंबना देखिए स्त्री का शोषण और प्रकृति का दोहन बदस्तूर जारी

सरिता राठौर। स्त्री और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं। स्त्री के बिना प्रकृति और प्रकृति के बिना स्त्री अधूरी है। तभी तो हम लोग स्त्री के विभिन्न अंगों की तुलना प्रकृति से करते हैं। जैसे गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ, काले बदरा जैसी जुल्फें, झील सी आंखें, लेकिन विडंबना देखिए कि इन दोनों के साथ छेड़खानी हो रही है, जबकि हम सभी जानते हैं कि स्त्री और प्रकृति से छेड़खानी समाज और देश पर भारी पड़ती है। दोनों को इसका भारी मूल्य चुकाना पड़ता है। स्त्री को अपमानित, तिरस्कृत करने से समाज में तमाम तरह की विकृतियां आ रही हैं, तो वहीं प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से बाढ़, सूखा, सुनामी जैसी विनाशकारी स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं।

महिलाएं विषम मौसमी परिस्थितियों में भी कृषि कार्यो में संलग्न पाई जाती हैं। अमूमन उन्हें न तो सर्दी-जुकाम होता है, न ही बुखार। पशुओं से तो उनका रिश्ता अपने बच्चों सा होता है। कितने भी हिंसक पशु हों, उन्हें नियंत्रण में रखना वे बखूबी जानती हैं। प्रसव की असहनीय वेदना को सहने की शक्ति उसे प्रकृति ने ही दी है। पुष्प वाटिका में माता सीता की सुंदरता अप्रतिम थी, तभी तो श्रीराम उन पर आसक्त हुए थे। राजसुख में पली-बढ़ीं उन्हीं सीता ने वनवास का समय भी सहज रूप से बिताया।

अप्रतिम सौंदर्य की स्वामिनी शकुंतला भी स्वयं को पुष्पों से सजाकर रखती थीं, जिसे देखकर राजकुमार दुष्यंत उन पर मोहित हो गए थे। स्त्री रिश्ते की हर कसौटी पर खरी उतरती है। जिस प्रकार अनेक कष्टों को सहन कर स्त्री का अस्तित्व बरकरार है, उसी तरह हर तरह के थपेड़ों को सहकर प्रकृति भी अपना सौंदर्य बिखेरती रहती है। चिपको आंदोलन हम सभी को याद है, जिसमें महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर उनकी रक्षा की थी। यह सब इसलिए संभव हुआ, क्योंकि स्त्री प्रकृति के अधिक करीब है।वास्तव में स्त्री और प्रकृति में असीम संभावना और समानता है। स्त्री प्रकृति का ही पर्यायवाची रूप है।

जब हम प्रकृति की गोद में बैठते हैं, तो हमें स्त्री के विभिन्न आयामों यथा मां, बहन, पत्नी, पुत्री, प्रेमिका के रूप का भान होता है। ममता और सौंदर्य की छांव हमें दोनों से मिलती है। दुख में दोनों हमें समान रूप से संबल प्रदान करती हैं। दोनों के बिना संसार और अध्यात्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसे में हम कह सकते हैं कि स्त्री और प्रकृति के बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। फिर भी विडंबना देखिए कि स्त्री का शोषण और प्रकृति का दोहन बदस्तूर जारी हैं। वैसे तो दोनों के संरक्षण के लिए तरह-तरह के तमाम कानून बने हैं, फिर भी समाज में दोनों के प्रति उपेक्षा का भाव बरकरार है। देखा जाए तो यही भाव आज हमारी कई समस्याओं की वजह है। हमें अपनी इस सोच को बदलना होगा तभी हम आदर्श समाज की स्थापना कर पाएंगे।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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