आत्मनिर्भर बनने की राह: पैकेज से एमएसएमई की गरीबी, बेकारी और पलायन का होगा समाधान

पैकेज से देश भर में आर्थिक गतिविधियां रफ्तार पकड़ेंगी बल्कि गरीबी बेकारी असमानता और महानगरों की ओर पलायन जैसी समस्याएं भी दूर होंगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 15 May 2020 11:39 PM (IST) Updated:Sat, 16 May 2020 12:19 AM (IST)
आत्मनिर्भर बनने की राह: पैकेज से एमएसएमई की गरीबी, बेकारी और पलायन का होगा समाधान
आत्मनिर्भर बनने की राह: पैकेज से एमएसएमई की गरीबी, बेकारी और पलायन का होगा समाधान

[ रमेश कुमार दुबे ]: विकसित देशों के पिछले दो सदी के इतिहास को देखें तो शहर प्रवास और व्यापार विकास के कारगर हथियार रहे हैं। विश्व बैंक ने भी इसी नुस्खे को गरीबी उन्मूलन का सशक्त हथियार माना है। इसीलिए तीसरी दुनिया के देशों ने इस नुस्खे को अपनाने में देर नहीं की, लेकिन लॉकडाउन के दौरान पैदा हुई विकट हालात देखें तो विकसित देशों का यह फॉर्मूला भारत में फेल नजर आता है। पोटली में अपनी गृहस्थी समेटे लाखों लोग पैदल, साइकिल, रिक्शा, ट्रक, रेल आदि से अपने-अपने गांवों की ओर कूच कर रहे हैं। देखा जाए तो यूरोपीय देशों की भांति भारत में प्रवास बेहतर संभावनाओं की खोज में न होकर मजबूरी में हुआ है।

करोड़ों कामगारों का स्तर जीविकोपार्जन से आगे नहीं बढ़ पाया और लॉकडाउन में पांव उखड़ गए

यह मजबूरी खेती के घाटे का सौदा बनने और देश भर में फैले करोड़ों लघु और कुटीर उद्यमों के तहस-नहस होने से पैदा हुई। वैसे तो यह प्रक्रिया आजादी के बाद से ही शुरू हो चुकी थी, लेकिन 1991 में आई नई आर्थिक नीतियों ने इसमें पंख लगा दिए। इस दौरान देश भर में फैले करोड़ों उद्यमियों को वैसी सुविधाएं नहीं मिलीं कि वे अपने उत्पादों को दुनिया भर के बाजारों में बेच पाते। दूसरी ओर उदारीकरण, भूमंडलीकरण के दौर में मुक्त व्यापार नीतियों के तहत विदेशी सामान धड़ल्ले से देश के बाजारों में डंप किए जाने लगे। नतीजा यह हुआ कि गांवों-कस्बों से महानगरों की ओर पलायन बढ़ा, लेकिन इन कामगारों को विकसित देशों की भांति सामाजिक सुरक्षाएं हासिल नहीं हुईं। यही कारण है कि करोड़ों कामगारों का स्तर जीविकोपार्जन से आगे नहीं बढ़ पाया और लॉकडाउन की घोषणा होते ही उनके पांव उखड़ने लगे।

12 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला एमएसएमई को बड़े उद्योगों की भांति सुविधाएं नहीं मिली

भले ही सरकार ने लघु एवं कुटीर उद्यमों को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई मंत्रालय के तहत एकीकृत किया हो, लेकिन इस क्षेत्र को बड़े उद्योगों की भांति सुविधाएं नहीं मिल पाईं। एमएसएमई क्षेत्र विविधताओं से भरा हुआ है। यह क्षेत्र जमीनी ग्रामोद्योग से शुरू होकर ऑटो कल-पुर्जे के उत्पाद, माइक्रोप्रोसेसर, इलेक्ट्रॉनिक और चिकित्सा उपकरणों तक फैला हुआ है। विनिर्माण क्षेत्र में इस क्षेत्र की करीब 40 फीसद हिस्सेदारी है और सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में यह 8 फीसद योगदान करता है। यह क्षेत्र 12 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। इन बहुआयामी लाभों के बावजूद एमएसएमई क्षेत्र अनगिनत समस्याओं से जूझता रहा जिसमें मुख्य है पूंजी की कमी।

मोदी सरकार ने एमएसएमई के लिए कई  जटिल प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया 

इसका कारण है कि राष्ट्रीयकरण के बावजूद बैंकों का ढांचा गरीबों के प्रतिकूल ही बना रहा। छोटे उद्यमी देश के किसी भी मंत्री-विधायक से तो मिल सकते हैं, लेकिन बैंकों के आला अधिकारियों से मिलना उनके लिए टेढ़ी खीर ही रहता है। बैंक उन्हें अनुत्पादक मानते हैं। इस कमी को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री ने मुद्रा बैंक की स्थापना की। इसके तहत छोटे उद्यमियों को 50 हजार से लेकर 10 लाख रुपये तक का ऋण मुहैया कराया जा रहा है। इसके लाभार्थियों में छोटा-मोटा कारोबार करने वाले शामिल हैं, जैसे मैकेनिक, ब्यूटी पार्लर, दर्जी, फल व्यापारी आदि। मोदी सरकार ने एमएसएमई क्षेत्र को 59 मिनट अर्थात एक घंटे से भी कम समय में एक करोड़ रुपये तक का ऋण मुहैया कराने वाला पोर्टल भी लांच किया। इसके अलावा कई जटिल प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया। 

जीएसटी और नोटबंदी की मार से एमएसएमई को बचाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गईं

जीएसटी और नोटबंदी की मार से एमएसएमई को बचाने के लिए मोदी सरकार ने नवंबर 2018 में एक दर्जन योजनाएं शुरू की थीं। सरकार ने न सिर्फ एमएसएमई से खरीद की सीमा बढ़ाई, बल्कि गवर्नमेंट ई-मार्केट अर्थात जैम योजना से सीधे सरकार को बेचने को छूट भी दी। इससे एमएसएमई उत्पादों का सरकारी खरीद तक पहुंचना आसान हो गया। आगे चलकर सरकार ने जैम को ई-कॉमर्स कंपनियों से भी जोड़ा। इन उपायों के बाद भी एमएसएमई के लिए पूंजी और नई तकनीक की समस्या बनी रही। चूंकि अब तकनीक पूंजीगहन हो चुकी है इसलिए पूरा दारोमदार पूंजी पर आकर टिक गया।

आर्थिक पैकेज के पहले चरण में सबसे अधिक राहत एमएसएमई को दी गई

इसी को देखते हुए 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के पहले चरण में सबसे अधिक राहत एमएसएमई को दी गई है। इस पैकेज के जरिये एमएसएमई की वे तमाम मांगे मान ली गईं जिन्हें एक अर्से से उठाया जा रहा था। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव। अब एक करोड़ निवेश या 10 करोड़ टर्नओवर वाले उद्यमों को सूक्ष्म उद्योग, 10 करोड़ निवेश या 50 करोड़ टर्नओवर वाले उद्यमों को लघु उद्योग और 20 करोड़ निवेश या 100 करोड़ टर्नओवर वाले उद्यमों को मध्यम उद्योग का दर्जा दिया गया है।

एमएसएमई क्षेत्र के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के फंड का प्रावधान

सरकार ने एमएसएमई क्षेत्र के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के फंड का भी प्रावधान किया है। एमएसएमई के कर्ज में सबसे बड़ी बाधा गारंटर की होती है, जिसे दूर करते हुए सरकार ने इन इकाइयों को बिना गारंटी लोन की व्यवस्था की है। इस लोन की समय सीमा चार वर्ष होगी। संकटग्रस्त इकाइयों के लिए 20,000 करोड़ रुपये की नकदी की व्यवस्था करने के साथ-साथ फंड्स ऑफ फंड में 50,000 करोड़ रुपये का इक्विटी निवेश किया गया है।

घरेलू खरीद को बढ़ावा देने के लिए 200 करोड़ तक का टेंडर ग्लोबल नहीं होगा

घरेलू खरीद को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने फैसला किया है कि 200 करोड़ रुपये तक का टेंडर ग्लोबल नहीं होगा। इसके अलावा एमएसएमई को ई-मार्केट से जोड़ा जाएगा, ताकि वे लोकल से ग्लोबल बन सकें। सरकार ने एमएसएमई का सरकारी कंपनियों में बकाये का भुगतान 45 दिन में करने का प्रावधान भी कर दिया है।

सरकारी पैकेज एमएसएमई के लिए संजीवनी बनना चाहिए

जिस दौर में बिजली, सड़क, ब्रांडबैंड, ई-कॉमर्स जैसी शहरी सुविधाएं देश के लाखों गांवों-कस्बों तक पहुंच चुकी हों उस दौर में सरकारी पैकेज एमएसएमई के लिए संजीवनी बनना चाहिए। इससे न सिर्फ देश भर में आर्थिक गतिविधियां रफ्तार पकड़ेंगी, बल्कि गरीबी, बेकारी, असमानता और महानगरों की ओर पलायन जैसी समस्याएं भी दूर होंगी।

( लेखक आर्थिक मामलों के जानकार एवं केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं )

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