अपनी शुद्धि का जो काम गंगा स्वयं करती है उसे शुद्ध करने के लिए 20,000 करोड़ खर्च करने की क्या जरूरत?

केंद्र सरकार ने लगभग 20,000 करोड़ खर्च कर गंगा में गिरने वाले नालों का शुद्धिकरण करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का बीड़ा उठाया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 11 Feb 2019 11:47 PM (IST) Updated:Tue, 12 Feb 2019 08:52 PM (IST)
अपनी शुद्धि का जो काम गंगा स्वयं करती है उसे शुद्ध करने के लिए 20,000 करोड़ खर्च करने की क्या जरूरत?
अपनी शुद्धि का जो काम गंगा स्वयं करती है उसे शुद्ध करने के लिए 20,000 करोड़ खर्च करने की क्या जरूरत?

[ डॉ. भरत झुनझुनवाला ]: माना जा रहा है कि केंद्र सरकार गंगा की छह सहायक नदियों भागीरथी, मंदाकिनी, पिंडर, नंदिकिनी, धौलीगंगा और अलकनंदा पर नई जल विद्युत परियोजनाएं नहीं बनाएगी। केंद्र सरकार को इस निर्णय के लिए साधुवाद, लेकिन इन्हीं नदियों पर निर्माणाधीन चार जल विद्युत परियोजनाओं का विषय अभी भी लटका हुआ है। कुछ समय पूर्व आइआइटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ सानंद स्वामी ने इन परियोजनाओं को बंद करने की मांग के न पूरा होने के कारण अपना शरीर उपवास के बाद त्याग दिया था। वर्तमान में उन्ही मांगों की पूर्ति के लिए केरल के 26 वर्षीय युवा ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद उपवास करते हुए तपस्या में रत हैं। निर्माणाधीन परियोजनाओं का पहला विषय गंगा की निर्मलता का है।

केंद्र सरकार ने लगभग 20,000 करोड़ खर्च कर गंगा में गिरने वाले नालों का शुद्धिकरण करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का बीड़ा उठाया है। यह कदम सही दिशा में है, परंतु आधा-अधूरा है, क्योंकि इससे हम गंगा की अपने को स्वयं शुद्ध करने की क्षमता को नष्ट कर रहे हैं। नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नागपुर ने बताया है कि गंगा की गाद में विशेष प्रकार के कलिफाज नाम के लाभप्रद कीटाणु होते हैं। ये कलिफाज हानिप्रद कालीफार्म नामक कीटाणु को नष्ट करते हैं।

अमूमन एक प्रकार का कलिफाज एक ही प्रकार के कालीफार्म को नष्ट करता है, लेकिन गंगा के विलक्षण कलिफाज कई प्रकार के कालीफार्म को एक साथ समाप्त कर देते हैं। इनसे गंगा की स्वयं को शुद्ध करने की क्षमता बनती है। ये कलिफाज गाद में रहते हैं। निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं से इस गाद का बनना बाधित होता है। गंगा के पानी को परियोजनाओं द्वारा टनल या झील में डाला जाता है। पानी और पत्थर की रगड़ समाप्त हो जाती है और इस गाद का बनना बंद हो जाता है जिससे इन कलिफाज का नष्ट होना निश्चित है। गंगा की निर्मलता हासिल करने के दो उपाय हैं। एक यह कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएं दूसरा यह कि निर्माणाधीन परियोजनाओं को निरस्त किया जाए, गंगा की गाद को बहने दें और गंगा की स्वयं को साफ रखने की क्षमता को बनाए रखें। जो काम गंगा स्वयं करती है उसे करने के लिए 20,000 करोड़ खर्च करने की क्या जरूरत है?

दूसरा विषय बहती गंगा यानी अविरल गंगा के सौंदर्य का है। उत्तराखंड सरकार का मानना है कि टिहरी जैसी झीलों का भी अपना सौंदर्य होता है। यह सही भी है। टिहरी झील में जल क्रीड़ा को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन प्रश्न है कि अविरल धारा का सौंदर्य अधिक मनोरम है या झील का? भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि देश के नागरिकों को गंगा के अविरल प्रवाह से मिले सुख की कीमत 23,255 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है। मैं नहीं समझता कि टिहरी झील से इस प्रकार का लाभ देश को हो सकेगा। गंगा के बहते रहने से जो जनता को लाभ मिलता है हमें उसका संज्ञान लेना चाहिए।

विश्व स्तर पर नदियों के मुक्त प्रवाह के सौंदर्य को पुनस्र्थापित किया जा रहा है। अमेरिका के वाशिंगटन राज्य में अल्वा नदी पर एक जल विद्युत परियोजना थी। वहां के लोगों ने मांग उठाई कि वे अल्वा नदी का मुक्त बहाव पुनस्र्थापित करना चाहते हैं जिससे वे उसमें नाव चला सकें और मछली मार सकें। वाशिंगटन की सरकार ने सर्वे कराया और पाया कि राज्य के लोग नदी के मुक्त बहाव को बहाल करने के लिए अधिक राशि देने को तैयार थे। जबकि अल्वा डैम से बन रही बिजली इसकी तुलना में बहुत कम थी। इस आधार पर अल्वा डैम को हटा दिया गया और आज अल्वा नदी मुक्त प्रवाह से बह रही है।

देश के विकास में बिजली का बहुत महत्व है। बिजली की मांग सुबह और शाम के समय अधिक होती है। जल विद्युत परियोजनाओं से बिजली को तत्काल बनाया अथवा बंद किया जा सकता है। सुबह और शाम ज्यादा बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए जल विद्युत को उत्तम माना जाता है, लेकिन इसके सस्ते विकल्प उपलब्ध हैं। आज नई जल विद्युत परियोजना से उत्पन्न बिजली का मूल्य लगभग 7 से 11 रुपये प्रति यूनिट पड़ता है। इसकी तुलना में सौर ऊर्जा का मूल्य 3 से 4 रुपये प्रति यूनिट पड़ता है। दिन में बनी इस सौर ऊर्जा को सुबह और शाम की बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है। बड़ी बैट्रियां बनाई जा सकती हैं। पानी को दिन में नीचे से ऊपर पंप करके सुबह और शाम उसे छोड़कर दोबारा बिजली बनाई जा सकती है। दिन में बनी सौर ऊर्जा को सुबह और शाम की पीकिंग पावर बनाने का खर्च मात्र 50 पैसे प्रति यूनिट पड़ता है। अत: सौर ऊर्जा से बनी पीकिंग पावर का मूल्य चार से पांच रुपये पड़ता है जो कि जल विद्युत से बहुत कम है।

उत्तराखंड के आर्थिक विकास का भी प्रश्न है। जल विद्युत परियोजनाओं से राज्य को 12 प्रतिशत मुफ्त बिजली मिलती है। यहां प्रश्न है कि गंगा के किन गुणों का हम उपयोग करना चाहते हैं। बिजली बनाने में हम गंगा के ऊपर से नीचे गिरने के भौतिक गुण का उपयोग करते हैं, लेकिन गंगा का इससे ऊपर मनोवैज्ञानिक गुण भी है। एक अध्ययन में मैंने पाया कि गंगा में डुबकी लगाने वाले मानते हैं कि गंगा के आशीर्वाद से उनका स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। गंगा के इस मनोवैज्ञानिक गुण का उपयोग करके भी उत्तराखंड का विकास किया जा सकता है।

गंगा के बहाव को मुक्त छोड़ दिया जाए और उसके किनारे यूनिवर्सिटी, अस्पताल और सॉफ्टवेयर पार्क स्थापित किए जाएं तो छात्रों एवं मरीजों को अधिक लाभ होगा। बड़ी संख्या में रोजगार के उत्तम अवसर भी सृजित होंगे। बताते चलें कि जल विद्युत परियोजनाओं के बनने के बाद इनमें मात्र 100 कर्मचारियों की ही जरूरत होती है। इस तरह अंत में रोजगार का हनन ही होता है।

निर्माणाधीन परियोजनाओं के पास सभी कानूनी स्वीकृतियां हैं। अत: इन्हें सरकार मनचाहे तरीके से बंद नहीं कर सकती है, लेकिन जिस प्रकार इंदिरा गांधी ने बैंकों और कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया था, उसी प्रकार इन जल विद्युत परियोजनाओं का केंद्र सरकार राष्ट्रीयकरण कर सकती है। केंद्र सरकार द्वारा 50,000 करोड़ रुपये के खर्च से ऑल वेदर रोड यानी हर मौसम में टिकने वाली सड़क बनाई जा रही है जिससे लोग गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ के दिव्य मंदिरों का प्रसाद आसानी से प्राप्त कर सकें। वर्तमान में इन चार निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं पर लगभग 5,000 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं।

देश की जनता तक इन दिव्य मंदिरों के प्रसाद को पहुंचाने का सरल एवं सस्ता उपाय है कि इन परियोजनाओं को 5,000 करोड़ रुपये देकर हटा दिया जाए। तब तीर्थयात्रियों को इन दिव्य मंदिरों का प्रसाद प्राप्त करने के लिए 50,000 करोड़ की ऑल वेदर रोड से यात्रा नहीं करनी होगी और इन मंदिरों के प्रसाद को गंगा स्वयं मैदान तक पंहुचा देगी। गंगा के मुक्त बहाव के इन लाभों को हासिल करने के साथ-साथ केंद्र सरकार को उत्तराखंड को गंगा बोनस देना चाहिए जिससे जल विद्युत परियोजनाओं के न बनाने से राज्य को किसी प्रकार की हानि न हो।

( लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलूर के पूर्व प्रोफेसर हैं )

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