चीन को संदेश देने का समय: मोदी-चिनफिंग वार्ता से मैत्री भाव बढे़गा और रिश्तों में सुधार आएगा

भारत चीन के साथ सीमाओं का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है और इस मामले में चिनफिंग ज्यादा अड़ियल रुख न अपनाएं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 10 Oct 2019 02:10 AM (IST) Updated:Thu, 10 Oct 2019 02:10 AM (IST)
चीन को संदेश देने का समय: मोदी-चिनफिंग वार्ता से मैत्री भाव बढे़गा और रिश्तों में सुधार आएगा
चीन को संदेश देने का समय: मोदी-चिनफिंग वार्ता से मैत्री भाव बढे़गा और रिश्तों में सुधार आएगा

[ विवेक काटजू ]: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दूसरी अनौपचारिक वार्ता के लिए चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग भारत आ रहे हैं। दोनों नेता 11-12 अक्टूबर को तमिलनाडु के मामल्लापुरम में मिलेंगे। दोनों के बीच ऐसी पहली वार्ता गत वर्ष अप्रैल में चीन के वुहान में हुई थी। इन बैठकों का मकसद यही है कि दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहुत सहज माहौल में स्पष्टता के साथ विचारों का आदान-प्रदान हो। यह उम्मीद जताई गई कि इससे मैत्री भाव बढे़गा और द्विपक्षीय रिश्तों की राह सुगम होगी।

देशों की नीतियां हमेशा राष्ट्रीय हितों से निर्धारित होती हैं

नेताओं के बीच मित्रता भाव रिश्ते बेहतर बनाने में मददगार होता है, लेकिन इसकी एक सीमा है, क्योंकि देशों की नीतियां हमेशा राष्ट्रीय हितों एवं राष्ट्रीय आकांक्षाओं से निर्धारित होती हैं। यह बात भारत-चीन संबंधों पर भी लागू होती है। महज 40 वर्षों से भी कम अवधि में चीन एक वैश्विक शक्ति बन गया है। वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। सैन्य मोर्चे पर बड़ी ताकत बनने के बाद वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी तेजी से तरक्की कर रहा है। उसकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ती जा रही हैं और वह आक्रामक रूप से अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। पूर्वी, दक्षिण-पूर्वी और दक्षिण एशिया में उसका दखल खास तौर पर बढ़ा है। चीन अपना वर्चस्व भारत सहित तमाम महत्वपूर्ण एशियाई देशों की कीमत पर बढ़ा रहा है।

राजीव गांधी के चीन दौरे के बाद से सभी सरकारों ने चीन के साथ मेलजोल बढ़ाया

वर्ष 1988 में राजीव गांधी के चीन दौरे के बाद से सभी भारतीय सरकारों ने चीन के साथ कई क्षेत्रों में मेलजोल बढ़ाने की हरसंभव कोशिश की। हालांकि दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दों पर टकराव को देखते हुए इनमें एहतियात भी बरती गई। यह रणनीति एकदम सही रही, लेकिन इससे भारत-चीन के मतभेद दूर नहीं हुए। चीन ने भारतीय हितों को लेकर अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाई। चीन के रवैये से यही जाहिर होता रहा कि वह भारतीय हितों की अनदेखी करता है। हाल में जम्मू-कश्मीर में मोदी सरकार के संवैधानिक कदम पर उसकी प्रतिक्रिया से फिर इसकी पुष्टि हुई।

कश्मीर को लेकर चीन कभी इस ओर, कभी उस ओर

भारत द्वारा यह समझाने के बावजूद चीन ने विरोध दर्ज कराया कि अनुच्छेद 370 हटाने से पाक के साथ नियंत्रण रेखा या चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। चीन ने जम्मू-कश्मीर में बदले घटनाक्रम को लेकर दुनिया भर में भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले पाकिस्तान से ही सहानुभूति जताई। पाकिस्तान की मनुहार पर चीन इस मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अनौपचारिक बैठक में भी ले गया जहां उसने भारत विरोधी रुख अपनाया। बैठक के बाद बयान जारी करने की उसकी मंशा पर अन्य सदस्यों ने पानी फेर दिया। इसके बाद चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में जम्मू-कश्मीर का उल्लेख करते हुए कहा कि यह मसला संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र, सुरक्षा परिषद प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के अनुरूप सुलझाया जाना चाहिए।

चीन का रवैया पाकिस्तान के लिए मददगार रहा

चीन का रवैया पाकिस्तान के लिए मददगार रहा, क्योंकि सुरक्षा परिषद में जम्मू-कश्मीर के मसले पर चर्चा कब की इतिहास के पन्नों में दफन हो चुकी थी। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि चीन और पाकिस्तान की साठगांठ 1962 से चली आ रही है। इसी दुरभिसंधि के दम पर पाकिस्तान भारत को लगातार आंखें दिखाता रहा। उसके तेवर अब और ज्यादा तीखे हो रहे हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के चलते उसे नया संबल मिला है। भारत ने इसका उचित ही विरोध किया है कि यह भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन करने वाली परियोजना है। चीन ने कभी भी पाकिस्तान पर आतंकवाद को खत्म करने के लिए दबाव नहीं डाला। जैशे मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने की मुहिम को उसने तभी समर्थन दिया जब अमेरिका ने उसे सुरक्षा परिषद में बेनकाब करने की धमकी दी।

चिनफिंग के भारत दौरे से पहले इमरान और बाजवा का चीन का दौरा

चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे से ठीक पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने चीन का दौरा किया। यह दौरा इसी मंशा से किया गया कि भारत-चीन संबंधों में सुधार चीन-पाकिस्तान संबंधों की कीमत पर नहीं हो। यह भी महत्वपूर्ण है कि इमरान खान ने कश्मीर के संदर्भ में दक्षिण एशिया में शांति एवं सुरक्षा पर चर्चा का प्रस्ताव रखा। भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। उसे चीन को बताना होगा कि अपने हितों की रक्षा के लिए जो जरूरी कदम होंगे, उन्हें उठाने से वह हिचकेगा नहीं। अरुणाचल में हिम विजय सैन्य अभ्यास से यही संदेश गया।

चीन ने पाक समेत सभी दक्षिण एशियाई देशों में सक्रियता बढ़ाई

पाकिस्तान के साथ-साथ चीन ने सभी दक्षिण एशियाई देशों में अपनी सक्रियता बढ़ाई है। इसके लिए वह अपने विशाल वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल कर रहा है। भारत की सुरक्षा के लिए इनके गहरे निहितार्थ हैं। भारत आर्थिक मोर्चे पर चीन की बराबरी तो नहीं कर सकता, लेकिन वह अपने पड़ोसियों के समक्ष यह पेशकश तो कर ही सकता है कि वे भी भारत की तरक्की के साथ प्रगति करें। इसके लिए आदर्श परस्पर भाव विकसित करना होगा। इस जुड़ाव से पड़ोसी देश भी चीन के साथ करार करते हुए भारत के सुरक्षा हितों को लेकर सचेत रहेंगे। मोदी सरकार यह रणनीति अपना तो रही है, पर अब इसे एक औपचारिक सिद्धांत के रूप में तब्दील करना होगा।

चीन हिंद महासागर के साथ ही हिंद प्रशांत क्षेत्र में भी सक्रियता बढ़ा रहा

चीन हिंद महासागर के साथ ही हिंद प्रशांत क्षेत्र में भी सक्रियता बढ़ा रहा है। यहां अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए भारत को सतर्क रणनीति अपनानी होगी। उसे अन्य देशों के साथ मिलकर मजबूत नेटवर्क बनाने होंगे। ये नेटवर्क इस क्षेत्र में सामरिक कड़ियों को सशक्त बनाएंगे।

मामल्लापुरम में मोदी-चिनफिंग के बीच व्यापार एवं निवेश पर चर्चा होनी चाहिए

इसमें संदेह नहीं कि मामल्लापुरम में दोनों नेताओं के बीच व्यापार एवं निवेश पर गहन चर्चा होगी। चीन को अपनी अर्थव्यवस्था में भारत के लिए दवा जैसे उन क्षेत्रों में दरवाजे खोलने की प्रतिबद्धता दिखानी होगी जिनमें भारत मजबूत है। वह तरीका विशुद्ध औपनिवेशिक है जिसमें चीनी फैक्ट्रियां भारतीय कच्चे माल का उपभोग करती हैं और भारत चीनी उत्पादों का आयात करता है। यह सिलसिला कायम नहीं रखा जा सकता। भारत को 5-जी जैसी शक्तिशाली संवेदनशील तकनीक में चीनी कंपनियों को प्रवेश देने से पहले सावधानी से पड़ताल करनी चाहिए।

चीन को तीन जरूरी संदेश अवश्य समझने होंगे

चीन को तीन जरूरी संदेश अवश्य समझने चाहिए। एक यह कि भारत उसके साथ संघर्ष नहीं चाहता, लेकिन अपने हितों की रक्षा से पीछे नहीं हटेगा। डोकलाम गतिरोध इसका सटीक उदाहरण है। दूसरा यह कि भारत व्यापार एवं निवेश सहित तमाम क्षेत्रों में चीन के साथ सहयोग करना चाहता है, लेकिन यह एकतरफा नहीं हो सकता और चीन को भारत की चिंताओं पर गौर करना होगा। तीसरा यह कि भारत उसके साथ सीमाओं का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है और इस मामले में वह ज्यादा अड़ियल रुख न अपनाए। इसमें संदेह नहीं कि शी चिनफिंग के साथ वार्ता के दौरान ऐसे तमाम बिंदुओं पर मोदी मंथन जरूर करेंगे।

( लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं )

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