चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप का खतरा, अन्य देशों में चुनावों को प्रभावित करने के बाद भारत पर बाहरी संस्थाओं की नजर

इसी तरह सरकार की फैक्ट्स चेक यूनिट्स को प्रभावकारी उपकरणों या साधनों और व्यापक क्षमता से लैस करके उन्हें सशक्त बनाना अत्यंत आवश्यक है तभी चुनाव आयोग दृढ़ता के साथ इस दिशा में ठोस कदम उठा सकता है। वास्तव में यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अपने भविष्य को अक्षुण्ण रखने के लिए हर हाल में जीतना ही होगा।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya Publish:Sat, 20 Apr 2024 12:30 AM (IST) Updated:Sat, 20 Apr 2024 12:30 AM (IST)
चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप का खतरा, अन्य देशों में चुनावों को प्रभावित करने के बाद भारत पर बाहरी संस्थाओं की नजर
चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप का खतरा (File Photo)

शशि शेखर वेम्पति। पिछले कुछ हफ्तों में लोकसभा चुनाव से जुड़े विषय फाइनेंशियल टाइम्स, ब्लूमबर्ग, अल-जजीरा, यूके गार्जियन और इकोनमिस्ट जैसे वैश्विक मीडिया संस्थान की कवरेज के केंद्र-बिंदु बन गए हैं। इन मीडिया संस्थानों की कवरेज और लेखों के स्वर एवं भाव लगभग एक जैसे हैं और इनकी वजह से भारतीय लोकतंत्र के कमजोर होने से लेकर उसके भविष्य पर गंभीर प्रभाव पड़ने की भविष्यवाणियां की जा रही हैं।

विशेष रूप से चिंता की बात यह है कि वैश्विक मीडिया संस्थानों की कवरेज ने भारत में राजनीतिक मतभेदों को और बढ़ाने की कोशिश की है। उत्तर-दक्षिण विभाजन की कल्पना से लेकर न्यायपालिका और निर्वाचन आयोग जैसे स्वायत्त संवैधानिक निकायों की विश्वसनीयता को कम करने तक, ऐसी विदेशी कवरेज ने पहले वोट डाले जाने के पूर्व ही चुनावी नतीजों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करने के प्रयास किए हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि भारत परिष्कृत विदेशी हस्तक्षेप अभियानों का लक्ष्य बन गया है, जो इंटरनेट की व्यापक पहुंच और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की ताकत का लाभ उठा रहे हैं। इसमें भारत अकेला नहीं है। ऐसे कई विदेशी अभियानों ने दुनिया भर में चुनावी प्रक्रियाओं की पवित्रता को खतरे में डाल दिया है। उदाहरण के तौर पर कनाडा और आस्ट्रेलिया ने ऐसे अभियानों का सामना किया है, जिनके बारे में चीनी प्रभाव वाले फंडिंग अभियानों और प्रचार-प्रसार से जुड़े लगभग सिद्ध हो चुके मामले मौजूद हैं।

माइक्रोसाफ्ट ने डीपफेक और एआइ के दुर्भावनापूर्ण उपयोग के माध्यम से चीन की ओर से भारतीय चुनावों को लेकर खतरों के प्रति आगाह भी किया है। कनाडा में प्रवासी भारतीयों और राजनीतिक हस्तियों को प्रभावित करने के गुप्त प्रयासों की रिपोर्टों ने चिंता पैदा की है। इसी तरह, आस्ट्रेलिया अपनी राजनीतिक संप्रभुता पर विदेशी हस्तक्षेप के प्रभाव से जूझ रहा है, जिसके कारण महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव किए गए हैं तथा जासूसी और विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ कानूनों को मजबूत बनाया गया है।

विभिन्न प्रमाणों से यह स्पष्ट हुआ है कि परोक्ष तरीके से भेजी जाने वाली चीनी फंडिंग ने भारतीय मीडिया प्रतिष्ठानों में अपना रास्ता बना लिया है, जो सूक्ष्मता से धारणाओं को बदलने के साथ ही जनता की राय को प्रभावित कर रहा है। न्यूजक्लिक को विदेशी फंडिंग और चीन से जुड़े व्यवसायियों के साथ उसके संबंध का हालिया मामला इसका उदाहरण है।

इससे भी अधिक घातक तरीके से, इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मों को फर्जी वीडियो एवं डीपफेक कंटेंट को प्रसारित करने का हथियार बनाया गया है, जिससे सच्चाई एवं मनगढ़ंत कहानियों के बीच की रेखाएं धुंधली हो गई हैं और प्रधानमंत्री मोदी तक ऐसे डीपफेक का शिकार हो गए हैं। वाट्सएप जैसे व्यक्तिगत मैसेजिंग एप्लिकेशन के जरिये गलत जानकारियों के अत्यधिक प्रसार ने चुनावी प्रक्रिया में भरोसे को कम करते हुए मतदाताओं को गुमराह करने वाली रणनीति का पता लगाना कठिन बना दिया है।

भारतीय राजनीति पर ऐसी हरकतों के परिणाम दूरगामी होंगे। सूचना इकोसिस्टम में हेरफेर करने के अलावा विदेशी शक्तियां घरेलू तत्वों की पक्षपातपूर्ण राजनीतिक बयानबाजी का सहारा लेकर भारत में सामाजिक भेद को बढ़ा रही हैं। हताश राजनीतिक दल और नेता इस ‘घातक’ रणनीति का सहारा ले रहे हैं। उन्हें इस बात का जरा भी भान नहीं है कि भारतीय लोकतंत्र के बारे में उनकी अनावश्यक और अतिरंजित घोषणाओं का विदेशी शक्तियों द्वारा भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने के उद्देश्य से दोहन किया जा रहा है।

यह लोकतंत्र के मूल सार और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के नतीजे में विश्वास को खतरे में डाल रहा है। भारत की चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सीमा पार बैठे एजेंटों की ओर से प्रौद्योगिकी के दुर्भावनापूर्ण उपयोग के जरिये उत्पन्न होने वाले अभूतपूर्व खतरों को देखते हुए, यह तत्काल निर्णय लेने और कार्रवाई करने का समय है। सूचनाओं के प्रसार में व्याप्त कमजोरियों को दूर करने और चुनावी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए सुरक्षात्मक उपाय किए जाने की जरूरत है। भारत निर्वाचन आयोग को अन्य सरकारी और गैर-सरकारी हितधारकों के साथ मिलकर इन कमजोरियों को दूर करने के लिए निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए।

भारत निर्वाचन आयोग की अहम भूमिका के तहत फोकस अन्य बातों के बजाय मुख्यत: आदर्श आचार संहिता को लागू करने पर केंद्रित रहा है, जबकि इस प्रकिया में हो रहे विदेशी हस्तक्षेप पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। दरअसल, चुनाव प्रकिया में हो रहे विदेशी हस्तक्षेप और इसके साथ ही गलत सूचनाओं से उत्पन्न खतरों से निपटने के लिए भारत निर्वाचन आयोग को अपने अभियानों से परे जाकर मतदाताओं को जागरूक करने की जरूरत है, ताकि फर्जी खबरों, दुर्भावनापूर्ण वीडियो और डीपफेक मीडिया की सक्रिय रूप से पहचान की जा सके और उन्हें तत्काल हटाया जा सके।

इसी तरह सरकार की फैक्ट्स चेक यूनिट्स को प्रभावकारी उपकरणों या साधनों और व्यापक क्षमता से लैस करके उन्हें सशक्त बनाना अत्यंत आवश्यक है, तभी चुनाव आयोग दृढ़ता के साथ इस दिशा में ठोस कदम उठा सकता है। वास्तव में, यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे भारत को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अपने भविष्य को अक्षुण्ण रखने के लिए हर हाल में जीतना ही होगा। यह हमारे लोकतंत्र के मजबूत आधार की रक्षा के लिए सतर्कता बरतने, एकता सुनिश्चित करने और सक्रिय उपायों का आह्वान करने का सही समय है। अब इस मोर्चे पर ठोस कदम उठाने की दिशा में आगे बढ़ना आवश्यक हो गया है।

(लेखक प्रसार भारती के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं)

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