उत्तर प्रदेश डायरी : राजभवन के खुले द्वार तो दौड़ पड़ा लोकतंत्र

लिखा जाएगा कि दो सौ वर्ष पुराना यह भवन 14 और 15 अगस्त को आम लोगों के लिए खोल दिया गया। यह बिल्कुल नई बात थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 20 Aug 2018 10:05 AM (IST) Updated:Mon, 20 Aug 2018 10:05 AM (IST)
उत्तर प्रदेश डायरी : राजभवन के खुले द्वार तो दौड़ पड़ा लोकतंत्र
उत्तर प्रदेश डायरी : राजभवन के खुले द्वार तो दौड़ पड़ा लोकतंत्र

[आशुतोष शुक्ल]। अपनी विशिष्टता के गर्व से तनी ऊंची ऊंची दीवारें झुकीं तो लोकतंत्र की सुगंध से कुलीनों का वह प्रासाद गमक उठा। आभिजात्य दंभ कहीं दुबक जाने को विवश हुआ और 48 एकड़ में फैले उस सुदीर्घ परिसर को अब तक बाहर से ही देखने को बाध्य रहे साधारण जन यहां वहां दौड़ पड़े। न कोई ठिठका और न कोई ठहरा। उनकी अगवानी को भवन स्वामी भी उनके बीच था।

यूं तो पिछले सप्ताह की केवल एक ही घटना याद की जाएगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान पर देश-दुनिया दुखी थी, लेकिन उत्तर प्रदेश तो जैसे विकल ही हो उठा। अटल इसी प्रदेश में पढ़े, पहला चुनाव लड़ा, पत्रकार बने और इसी प्रदेश से चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री भी बने। भावी इतिहास का एक पूरा अध्याय अटल जी को जाएगा, लेकिन इन्हीं तारीखों में कहीं एक फुटनोट यूपी राजभवन के अचानक चरित्र परिवर्तन पर भी लिखा होगा। लिखा जाएगा कि दो सौ वर्ष पुराना यह भवन 14 और 15 अगस्त को आम लोगों के लिए खोल दिया गया। यह बिल्कुल नई बात थी।

राजभवन पहले भी खुलता था, लेकिन वार्षिक पुष्प और शाक भाजी प्रदर्शनी के लिए। तब भी लोग एक सीमा से आगे नहीं जा पाते थे। लॉन में लगी प्रदर्शनी को देखा और वापस। इस बार राजभवन को स्वतंत्रता दिवस पर खोला गया। दोनों दिन शाम सात से नौ बजे तक साधारण जन को राजभवन में प्रवेश मिला और लोगों ने भवन के आगे तक जाकर वहां की साज सज्जा और लाइटिंग का आनंद उठाया। बिना पूर्व सूचना खोले गए राजभवन में पहले दिन करीब सवा चार सौ लोग पहुंचे, लेकिन अगले दिन 2,200 लोग।

अठारहवीं सदी के अंत में सादात अली खां अवध के नवाब हुए। उन्हें यूरोपीय स्थापत्य कला पसंद थी तो उन्होंने फ्रांसीसी मूल के मेजर जनरल क्लाड मार्टिन से एक विशाल इमारत बनवाई। नवाब की पत्नी क्षय रोग पीड़ित थीं, पर यहां आकर उन्हें आराम मिला। इससे कोठी का नाम पड़ा हयात बख्श। बाद में अंग्रेजों ने इसमें कई बदलाव किए और आजादी से पहले यह संयुक्त प्रांत के गवर्नर का निवास बन गया। तभी से यह राजभवन हो गया। कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के समय यहां भरपूर दीवाली मनाई जाती थी। विष्णुकांत शास्त्री ने कमरों का सुंदर नाम परिवर्तन किया।

बैंक्वेट हॉल को उन्होंने अन्नपूर्णा नाम दिया और वीआइपी कक्ष (ब्लू रूम) को नीलकुसुम। पुलिस अधिकारी रहे टीवी राजेस्वर राव के कार्यकाल में राजभवन फिर आम पहुंच से दूर हो गया। उन्होंने इसकी चहारदीवारी तक ऊंची करा दी। प्रथम राज्यपाल सरोजनी नायडू के आदेश पर 15 अगस्त, 1947 को आम लोग यहां बेरोकटोक घूमे थे। शर्त यह थी कि उन्हें भारतीय परिधान पहनने होंगे। अब राज्यपाल राम नाईक ने इसे आम लोगों के लिए खोला। सत्ता की समाज से यह निकटता स्वागत योग्य है।

अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियां सहेजने के लिए राज्य सरकार बड़े स्तर पर काम करने जा रही है। अटल कलश यात्र तो निकाली ही जाएगी, लेकिन कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर उनके नाम पर बड़ी योजना घोषित करने की तैयारी भी चल रही है। माना जा रहा है कि इसी हफ्ते यह घोषणा हो सकती है। प्रदेश सरकार उनके नाम पर लखनऊ में एक नया चिकित्सा विश्वविद्यालय बनाने जा रही है। अटल के पहले संसदीय क्षेत्र रहे बलरामपुर में भी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय का एक सेटेलाइट सेंटर उनके नाम पर स्थापित करने की भी तैयारी की जा रही है। यह क्रम लगातार चलता रहेगा।

बीते हफ्ते समाजवादी पार्टी ने भी अपने लोकसभा चुनाव अभियान की तैयारी शुरू कर दी। पार्टी सितंबर के पहले हफ्ते में कन्नौज से एक साइकिल रैली निकालने जा रही है। बहुजन समाज पार्टी तो हमेशा तैयार ही रहती है और अब बारी कांग्रेस की है। हालांकि यह सवाल हल होना बाकी है कि कांग्रेस अकेले लड़ेगी या सपा-बसपा के साथ मिलकर।

[संपादक, उत्तर प्रदेश] 

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