जानिए European Union से ब्रिटेन के निकलने का अर्थ, युवा इस फैसले से मायूस

ब्रिटेन का समाज मुक्त व्यापार के फायदों व देश की आर्थिक प्रगति से ज्यादा अप्रवासन की उन चुनौतियों से आशंकित है जो पूर्वी यूरोप व गृह युद्ध से जूझ रहे अफ्रीकी देशों से आ रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 10 Feb 2020 09:58 AM (IST) Updated:Mon, 10 Feb 2020 10:57 AM (IST)
जानिए European Union से ब्रिटेन के निकलने का अर्थ, युवा इस फैसले से मायूस
जानिए European Union से ब्रिटेन के निकलने का अर्थ, युवा इस फैसले से मायूस

[डॉ. ब्रह्मदीप अलूने]। लंदन के वाइट हॉल पैलेस में संप्रभु ब्रिटेन और वैश्विक ब्रिटेन की गूंज साफ सुनी जा सकती है। ईयू यानी यूरोपीय यूनियन से अलग होने का जश्न युवाओं में भले ही नहीं देखा जा रहा हो, लेकिन वहां का परंपरावादी और पुरातन समाज खुश है। विश्व के बड़े इकहरे बाजार यूरोपियन यूनियन का आर्थिक द्वार रहे ब्रिटेन का समाज मुक्त व्यापार के फायदों व देश की आर्थिक प्रगति से ज्यादा अप्रवासन की उन चुनौतियों से ज्यादा आशंकित है जो पूर्वी यूरोप और गृह युद्ध से जूझ रहे अरब व अफ्रीकी देशों से आ रही है।

बोरिस जॉनसन घोर परंपरावादी माने जाते हैं 

यहां के निवासियों को लगता है कि यूरोपीय यूनियन में ज्यादा समय तक बने रहने से न केवल उनका सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य बदल जाएगा, बल्कि स्थानीय नागरिकों के सामने रोजगार और सुरक्षा का संकट भी गहरा सकता है। अंतिम चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को जबरदस्त बहुमत मिला था और ब्रिटेन का सीनियर सिटीजन इस बात के लिए कृत संकल्पित दिखाई दे रहा था कि यूरोपीय यूनियन से अलग होकर ही ब्रिटिश पहचान और गौरव बना रह सकता है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन घोर परंपरावादी माने जाते हैं और वे उदारवाद के नाम पर अप्रवासन और यूरोपीय यूनियन के मुक्त आवाजाही के नियमों के सख्त खिलाफ रहे हैं। यूरोपीय यूनियन से अलग होने को ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने अपने देश की जनता के लिए वास्तविक राष्ट्रीय पुनर्जागरण और बदलाव बताया है।

परंपरावादी समाज के लिए मुक्त बाजार व्यवस्था

दरअसल यूरोपीय यूनियन में बने रहने को लेकर ब्रिटिश समाज में मतभेद साफ तौर पर देखे जा रहे थे। युवाओं के लिए मुक्त बाजार व्यवस्था और मुक्त आवाजाही अनुकूल मानी जा रही थी, वहीं ब्रिटेन के परंपरावादी समाज के लिए मुक्त बाजार व्यवस्था तो स्वीकार्य थी, लेकिन मुक्त आवाजाही से बढ़ने वाली अप्रवासन की समस्या में अपने देश के भविष्य के लिए इसमें संकट नजर आया। यूरोपियन यूनियन का सबसे बड़ा देश जर्मनी है और उसका मुस्लिम शरणार्थियों के प्रति उदार रवैया ब्रिटेन के परंपरावादी समाज के राष्ट्रवाद के विरोध में नजर आया।

यूरोपीय यूनियन के लिए भले ही अर्थव्यवस्था बड़ा मुद्दा हो, लेकिन ब्रिटेन के लिए अप्रवासन को बड़ी समस्या और चुनौती मान लिया गया है। वर्ष 2011 में ब्रिटेन में जनगणना करने वाले विभाग ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स ने जब ब्रिटेन की जनसंख्या के आंकड़े जारी किए तो उसकी भी यहां के परंपरावादी समाज में कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई थी। इसके अनुसार ब्रिटेन की जनसंख्या को 6.32 करोड़ बताया गया था जिसमें ब्रिटेन के स्थानीय निवासियों का अनुपात वर्ष 2001 की जनगणना के 87 फीसद के मुकाबले घटकर 80 फीसद बताया गया था। आंकड़ों के अनुसार ब्रिटेन के मुख्य प्रांतों इंग्लैंड और वेल्स में हर आठवां व्यक्ति विदेश में जन्मा व्यक्ति है। ब्रिटेन के जनसंख्या अनुपात में पिछले 10 वर्षों में आए बदलाव के लिए मुख्य कारण अप्रवासियों का ब्रिटेन आना बताया गया।

अन्य देशों के नागरिक ब्रिटेन में आकर रोजगार तलाशने लगे

यूरोपीय यूनियन के देश आर्थिक समझौते के साथ सांस्कृतिक एकता भी चाहते रहे हैं, लेकिन तुर्की के प्रभाव से मुस्लिम अप्रवासन बढ़ने को बड़ा संकट माना गया। इसके साथ ही अरब से अफ्रीका के गृह युद्ध से पनपे संकट में शरणार्थियों के लिए जर्मनी ने उदारता से अपने द्वार खोले। जर्मनी भी यूरोपीय यूनियन का सबसे बड़ा और प्रभावी देश माना जाता है, अत: इसका प्रभाव अन्य देशों पर पड़ा और ब्रिटेन के समाज को अप्रवासन उनके देश के लिए सांस्कृतिक संकट महसूस हुआ। यही नहीं, मुक्त आवाजाही के कारण यूरोप के अन्य देशों के नागरिक ब्रिटेन में आकर रोजगार तलाशने लगे और स्थानीय लोगों में प्रवासियों के प्रति असंतोष उत्पन्न हुआ।

यूरोपीय यूनियन के दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश ब्रिटेन को इसके प्रशासनिक संचालन में भी बड़ी आर्थिक भूमिका निभानी होती थी जिससे इस देश के लोगों को लगने लगा था कि उन पर ब्रिटिश सरकार का नहीं, बल्कि यूरोपीय यूनियन का नियंत्रण हो गया है। ईयू के मुक्त व्यापार के साथ मुक्त आवाजाही, पर्यावरण, खाद्य सामग्री व अन्य नियमों के पालन को भी यहां का समाज अपनी स्वतंत्रता के विरुद्ध मानने लगा था।

इसका असर जनमत संग्रह में देखने को मिला। वर्ष 2016 में ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह में लोगों से यह सवाल किया गया कि आप यूरोपीय संघ के सदस्य बने रहना चाहते हैं या यूरोपीय संघ से बाहर निकलना चाहते हैं। जवाब में 52 प्रतिशत लोगों ने यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के पक्ष में मतदान किया था, जबकि उसमें बने रहने के पक्ष में मतदान करने वाले अपेक्षाकृत कम थे और 48 प्रतिशत लोगों ने यूरोपीय संघ के पक्ष में वोट दिया था। ये नतीजे अप्रत्याशित थे। इस जनादेश को कंजर्वेटिव पार्टी के लिए लोकप्रिय माना गया और इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए बोरिस जॉनसन कृत संकल्पित नजर आए। अब ब्रिटेन ने अपने आर्थिक रास्ते खुद तलाशने के लिए भारत जैसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों से मुक्त व्यापार की और कदम बढ़ा दिए है।

ग्रेट-रेडी टू ट्रेड अभियान ईयू से अलग होते ही ब्रिटेन ने शुरू कर दिया है। इसमें 13 देशों के 18 शहरों पर फोकस किया गया है। ये देश ईयू से बाहर के हैं और इन्हें भविष्य में ब्रिटेन के बड़े सहयोगी देशों के तौर पर बताया जा रहा है। भारत ब्रिटेन की व्यापारिक साझीदारी में ऊपर है और मुंबई उसका केंद्र होगा। बहरहाल यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन का अलग होना, यूरोप के राजनीतिक और आर्थिक भविष्य के लिए चुनौतीपूर्ण बन सकता है। साथ ही लोकतंत्र के प्रति ज्यादा उदारता दिखाने वाले ब्रिटिश समाज का अभी राष्ट्रवाद के रूप में उभरने वाला परंपरावादी रुख वैश्विक असर डाल सकता है।

[सहायक निदेशक, उच्च शिक्षा, मध्य प्रदेश शासन]

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