फिर वही सतही राजनीति

संस्कृति संवर्द्धन के विकल्प नहीं होते। संस्कृति भारतीय राष्ट्रभाव का प्राण है और अयोध्या नरेश श्रीराम इस संस्कृति के कर्म, मर्म, शील और आदर्श के मंगल भवन अमंगलहारी मर्यादा पुरुषोत्तम महानायक। भारत का मन अयोध्या में रमता है। अयोध्या अंतरराष्ट्रीय आकर्षण है। राजीव गांधी ने अपने एक चुनाव अभियान की शुरुआत इसी क्षेत्र से की थी। राहुल गांधी भी हाल ही में अयोध्या गए थे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 21 Oct 2016 01:34 AM (IST) Updated:Fri, 21 Oct 2016 02:10 AM (IST)
फिर वही सतही राजनीति

संस्कृति संवर्द्धन के विकल्प नहीं होते। संस्कृति भारतीय राष्ट्रभाव का प्राण है और अयोध्या नरेश श्रीराम इस संस्कृति के कर्म, मर्म, शील और आदर्श के मंगल भवन अमंगलहारी मर्यादा पुरुषोत्तम महानायक। भारत का मन अयोध्या में रमता है। अयोध्या अंतरराष्ट्रीय आकर्षण है। राजीव गांधी ने अपने एक चुनाव अभियान की शुरुआत इसी क्षेत्र से की थी। राहुल गांधी भी हाल ही में अयोध्या गए थे। क्या उनके दौरे और हनुमान दर्शन को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से नहीं जोड़ा जा सकता? इसी यूपी के एक चुनाव में सपा बसपा मिलकर लड़े थे। तब ‘मिले मुलायम-काशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ का नारा लगाया गया था। तब सपा-बसपा ही ‘जय श्रीराम’ को राजनीतिक नारा बनाने में संलग्न थीं। श्रीराम के नाम में कमाल है। बसपा संस्थापक काशीराम के नाम के अंत में राम है तो समाजवादी धारा के योद्धा डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम में भी। उन्होंने ही अंतरराष्ट्रीय रामायण मेला की शुरुआत की थी, लेकिन अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अयोध्या में रामायण संग्रहालय की 154 करोड़ की योजना बनाई और संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने उनके प्रतिनिधि के रूप में अयोध्या यात्रा की, योजना का स्थान देखा कि ‘बाबरी राजनीति’ में विलाप शुरू हो गया। अयोध्या फिर से विवाद में है।
अयोध्या और श्रीराम का सांस्कृतिक प्रभाव पंख फैलाकर उड़ा है। सो यूपी की अखिलेश सरकार भी अयोध्या पर मुलायम है। राज्य सरकार ने भी अयोध्या की ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने के लिए 22 करोड़ की लागत से एक थीम पार्क की घोषणा की है। संस्कृति मंत्री डॉ. शर्मा ने ठीक कहा है कि उनकी भावना शुद्ध है तो सभी अच्छी योजनाओं का स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि कारसेवकों पर हुए गोलीकांड को लेकर रामभक्तों के मन में सपा के प्रति नाराजगी है। बहरहाल दोनों सरकारों पर अयोध्या मसले का राजनीतिक लाभ उठाने के आरोप हैं। कांग्रेस और बसपा इसे चुनावी स्टंट मानते हैं। वामदलों की प्रतिक्रिया भी तीखी है। आरोप हैं कि चुनाव निकट देखकर ही ऐसी घोषणाएं हो रही हैं। सच ऐसा नहीं है। केंद्र सरकार में यह कसरत पीछे जून माह के पहले से ही चल रही थी। ‘रामायण परिपथ’ पर बनी राष्ट्रीय समिति की बैठक बीते 14 जून को हुई थी। डॉ. महेश शर्मा के साथ केंद्र व यूपी सरकार के अधिकारी भी बैठक में थे। केंद्र सरकार की रामायण परिपथ योजना में चित्रकूट, सीतामढ़ी, दरभंगा, जगदलपुर व रामेश्वरम् भी सम्मिलित किए गए हैं।
डॉ. महेश शर्मा की अयोध्या यात्रा योजना को अमली जामा पहनाने से ही जुड़ी हुई है। रोने धोने वाले दलों की आपत्ति घोषणा के समय को लेकर है। आरोप है कि विधानसभा चुनावों के ठीक पहले ऐसी घोषणा करके राजनीतिक लाभ उठाने की साजिश की जा रही है। मोदी सरकार रामायण परिपथ के साथ ही बौद्ध परिपथ, श्रीकृष्ण परिपथ, पूर्वोत्तर परिपथ जैसी 12 सांस्कृतिक योजनाओं पर काम कर रही है। लेकिन अयोध्या को लेकर राजनीति में उबाल है। डॉ. शर्मा का आरोप सही है कि भाजपा विरोधी दल अयोध्या व श्रीराम का राजनीतिकरण कर रहे हैं। सारी योजनाएं पहले से ही विचार प्रक्रिया में हैं। कांग्रेस और बसपा के विलाप का कोई औचित्य नहीं है। चुनाव के ठीक पहले योजनाओं की घोषणा संप्रग सरकार का एजेंडा रहा है। संप्रग सरकार ने चुनाव के पहले मुस्लिम आरक्षण की घोषणा की थी। संप्रग प्रथम सरकार ने किसान कर्ज माफी की घोषणा चुनाव के पहले ही की थी। मायावती ने राज्य विभाजन का प्रस्ताव भी चुनाव के पहले ही किया था। दरअसल अयोध्या बाबरी राजनीति का स्थाई सिर दर्द है। अयोध्या के नाम के साथ ही श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का मुद्दा अपने आप उठ जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को राष्ट्रभाव की अभिव्यक्ति बताया था। दिव्य अयोध्या और भव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर करोड़ों भरतजनों का सपना है।
वोट राजनीति अयोध्या और श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुद्दे से डरती है। मूलभूत प्रश्न है कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर और अयोध्या की दिव्यता की बातें कब की जाएं? चुनाव के पहले करो तो शोर मचता है कि धर्म के आधार पर वोट साधे जा रहे हैं? चुनाव न हों, तब करो तो शोर मचता है कि देश का माहौल खराब किया जा रहा है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के नेता विनय कटियार ने मंदिर पर जोर दिया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन सुनवाई का पता नहीं। एएसआइ मंदिर के सबूत दे चुकी है। भारतीय दलतंत्र इस मसले पर संवाद क्यों नहीं करता? केंद्र पहल करे तो उस पर सांप्रदायिक मुद्दा जगाने का आरोप लगेगा। बाबरी राजनीति प्रधानमंत्री के रामलीला आयोजन में हिस्सा लेने पर भी प्रतिक्रिया में आई थी। आरोप थे कि उन्होंने ‘जय श्रीराम’ का नारा क्यों लगाया? सभी सांस्कृतिक आयोजनों में समयानुकूल उद्घोष ही होते हैं। बौद्ध आयोजनों में बुद्ध का, जैन समागम में महाबीर का जयघोष स्वाभाविक है। लेकिन दुर्भाग्य है कि रामलीला में श्रीराम का जयघोष करना सांप्रदायिक है। संकीर्ण राजनीति ने पूरी अयोध्या को ही विवादित बनाया है। सर्वोच्च न्यायालय में 2.77 एकड़ का भूमि का मसला ही विचाराधीन है। अयोध्या नगरी का विकास विवादित नहीं है। केंद्र ने श्रीराम व अयोध्या की अंतरराष्ट्रीय छवि को और बढ़ाने की योजना बनाई है। श्रीराम और अयोध्या की कथाएं पहले से ही अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय है। केंद्र ने अयोध्या चित्रकूट आदि को अंतरराष्ट्रीय आकर्षण का सांस्कृतिक केंद्र बनाने की दिशा में सही कदम उठाया है। केंद्र की इस महत्वाकांक्षी योजना का स्वागत किया जाना चाहिए था, लेकिन सांप्रदायिक राजनीति को सांस्कृतिक संवर्द्धन की योजनाओं में भी सतही राजनीति ही दिखाई पड़ रही है।
आखिरकार अयोध्या या श्रीराम की चर्चा करने पर पाबंदी क्यों है? अयोध्या के विकास की योजनाएं बनाने का काम राजनीतिक ही क्यों माना जा रहा है? मोदी सरकार की सांस्कृतिक नीति सुस्पष्ट है। भारत अति प्राचीन सांस्कृतिक राष्ट्र है। प्रधानमंत्री रविदास मंदिर गए थे। उन्होंने डॉ. अंबेडकर की स्मृति को सहेजने के लिए ढेर सारे उपक्रम किए हैं। सत्ता दलों को अच्छे काम का पुरस्कार मिलता है और गलत काम के लिए तिरस्कार भी। किसी दल को लगता है कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर से वोट मिलता है तो उसे भी इसी काम में आगे आना चाहिए। सपा, बसपा, कांग्रेस आदि किसी भी दल पर श्रीराम का उद्घोष करने की कोई पाबंदी नहीं है। वे भी आगे आएं। भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन के लिए संविधान के नीति निदेशक तत्वों का पालन करें। संविधान की मूल प्रति पर भी श्रीराम का चित्र था। हम भरतजन अयोध्या और श्रीराम की चर्चा से बच नहीं सकते।
[ लेखक हृदयनारायण दीक्षित, उप्र में भाजपा के विधान परिषद दल के प्रमुख रहे हैं ]

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