कानून के शासन की रक्षा तभी होगी जब कानून के रक्षक और कानून के सहायक एक-दूसरे के बनेंगे सहयोगी

कानून के शासन की रक्षा तभी हो सकती है जब कानून के रक्षक और कानून के सहायक एक-दूसरे के सहयोगी बनेंगे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 07 Nov 2019 01:33 AM (IST) Updated:Thu, 07 Nov 2019 01:33 AM (IST)
कानून के शासन की रक्षा तभी होगी जब कानून के रक्षक और कानून के सहायक एक-दूसरे के बनेंगे सहयोगी
कानून के शासन की रक्षा तभी होगी जब कानून के रक्षक और कानून के सहायक एक-दूसरे के बनेंगे सहयोगी

[ विक्रम सिंह ]: दिल्ली के तीस हजारी न्यायालय परिसर में पुलिस और वकीलों के बीच हुई झड़प ने सारे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। आम जनता के लिए यह समझना कठिन है कि इस झगड़े में कौन सही है और कौन गलत, क्योंकि उभय पक्षों द्वारा एक-दूसरे पर आरोप लगाए जा रहे हैैं और आरोपों का जवाब प्रत्यारोपों के जरिये दिया जा रहा है। यदि तीस हजारी अदालत परिसर में हुई घटना की समीक्षा करें तो पता चलता है कि एक अधिवक्ता ने न्यायालय परिसर में बंदीघर के समक्ष अनधिकृत क्षेत्र में अपना वाहन खड़ा कर दिया। इसे लेकर पहले तो पुलिस कर्मियों और वकीलों में नोकझोंक हुई, फिर वह उग्र विवाद में बदल गई।

पुलिस का वकीलों पर आरोप

कहा जा रहा है कि विवाद बढ़ने पर वकीलों ने अदालत परिसर में मौजूद पुलिस कर्मियों पर हमला कर दिया। वकीलों की मानें तो पुलिस कर्मियों ने उनके एक साथी को लॉकअप में बंद कर दिया था, लेकिन उन पर आरोप है कि उन्होंने लॉकअप तोड़ने का प्रयास तो किया ही, पुलिस कर्मियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा, सर्विस रिवाल्वर छीनने की कोशिश की, वाहनों में आगजनी की, महिला पुलिस कर्मियों एवं अधिकारियों के साथ अभद्र व्यवहार किया।

वकीलों का पुलिस पर आरोप

पुलिस कर्मियों पर भी आरोप है कि उनके द्वारा वकीलों के साथ अभद्र व्यवहार के साथ-साथ मारपीट और छीनाझपटी तो की ही गई, अवांछित बल प्रयोग भी किया गया। एक पुलिस कर्मी की ओर से गोली चलाने की बात भी सामने आई है। पुलिस का कहना है कि गोली आत्मरक्षा में चलाई गई। वकील-पुलिस के बीच हुए हिंसक टकराव के कुछ वीडियो फुटेज सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर उपलब्ध हैैं। इन वीडियो से यह इंगित होता है कि हिंसा पूरी तरह से बेलगाम थी और दोनों ही पक्षों की ओर से हिंसक व्यवहार किया गया। ये वीडियो यह भी संकेत करते हैैं कि पीड़ित कौन है और हमलावर कौन?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने लिया संज्ञान

बीते शनिवार को घटी इस घटना का दिल्ली उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया और रविवार को त्वरित कार्रवाई करते हुए व्यवस्था दी कि घटना की जांच एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित समिति करेगी। इस समिति को छह सप्ताह में अपनी आख्या प्रस्तुत करने को कहा गया। उच्च न्यायालय ने घायल अधिवक्ताओं को राहत राशि देने और उनके बयान दर्ज कर प्रथम सूचना रपट दर्ज करने के भी आदेश दिए। इन आदेशों से मामला शांत नहीं हुआ।

वकील हड़ताल पर, दिल्ली पुलिस के कर्मी और उनके परिजन धरने पर बैठे

सोमवार को दिल्ली और साथ ही देश के अन्य शहरों में वकील हड़ताल पर रहे। इस दौरान दिल्ली की कड़कड़डूमा और साकेत अदालत परिसरों में वकीलों की ओर से उग्रता दिखाई गई। इस उग्रता का शिकार पुलिसकर्मी भी बने। इसके अगले दिन बड़ी संख्या में दिल्ली पुलिस के कर्मी और उनके परिजन पुलिस मुख्यालय के समक्ष आ जुटे। उनका धरना देर शाम तक चला। जब यह लग रहा था कि पुलिस कर्मी आसानी से धरना खत्म नहीं करने वाले तब उन्होंने पुलिस आयुक्त के व्यक्तिगत आग्रह पर धरना खत्म कर दिया। यदि दोनों पक्ष के अनुभवी लोगों ने समय रहते कार्रवाई की होती तो उक्त अप्रिय प्रसंगों से बचा जा सकता था। तीस हजारी न्यायालय अत्यंत संवेदनशील स्थल है।

अगर मैैं होता तो वही करता जो पुलिस कर्मियों ने किया

यदि पुलिस कर्मियों ने वहां किसी अधिवक्ता को अनुचित तरीके से वाहन खड़ा करने से रोका तो इसमें कुछ भी गलत नहीं। अदालत परिसर में पुलिस अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए ही तैनात की जाती है। अगर उन पुलिस कर्मियों की जगह मैैं होता तो वही करता जो उन्होंने किया। यदि पुलिस पर हमला होता है तो उसे समुचित बल प्रयोग करने का अधिकार है।

धरना-प्रदर्शन अनुशासित बल को शोभा नहीं देता

अगर प्रतिष्ठित अधिवक्ता जैसे आर्यमन सुंदरम, प्रशांत भूषण, महेश जेठमलानी, सोली सोराबजी आदि यह कह रहे हैैं कि तीस हजारी की घटना में वकीलों की गलती लगती है तो इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इसी के साथ इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि दिल्ली पुलिस कर्मी सड़कों पर उतर आए। वे शायद इसलिए सड़क पर उतरे, क्योंकि उनके मन में यह भाव घर कर गया कि पिटे भी वही और निलंबन का शिकार भी वही बने। वे संभवत: इससे भी आहत थे कि पुलिस अधिकारियों की ओर से उनकी कुशलक्षेम नहीं पूछी गई। जो भी हो, परिस्थितियां कुछ भी हों, धरना-प्रदर्शन एवं आंदोलनात्मक कार्रवाई किसी भी अनुशासित बल को शोभा नहीं देता। ऐसा आचरण एक तरह की अनुशासनहीनता है। वकीलों को भी यह समझना होगा कि हर समस्या का समाधान हड़ताल नहीं है।

रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों की सलाह आग में घी डालने वाली

यह उचित नहीं कि जब देश के कई वरिष्ठ अधिवक्ता नीर-क्षीर विवेक से अपनी बात कह रहे हैैं तब कुछ सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी दिल्ली पुलिस को न झुकने और अपने रुख पर डटे रहने की सलाह दे रहे हैैं। कुछ रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों की ऐसी सलाह एक तरह से आग में घी डालने वाली है। समझना कठिन है कि उनकी ओर से दिल्ली पुलिस को आंदोलन के लिए उकसाने का काम क्यों किया गया?

अधिकारियों और पुलिस कर्मियों के बीच संवाद होता तो सड़क पर नहीं उतरते

नि:संदेह दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों का रवैया त्रुटिहीन नहीं कहा जा सकता। उन्हें अपने पुलिस कर्मियों को भरोसे में लेकर यह विश्वास दिलाना चाहिए था कि उनके साथ नाइंसाफी नहीं होने दी जाएगी और हर हाल में उनके मान-मर्यादा की रक्षा की जाएगी। शायद ऐसा नहीं हुआ और इसीलिए पुलिस कर्मी आंदोलित हो उठे। उचित तो यह होता कि वकीलों और पुलिस के बीच मारपीट के बाद पुलिस अधिकारियों की ओर से सारी स्थिति स्पष्ट की जाती और पुलिस कर्मियों के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जाते। अगर पुलिस अधिकारियों और पुलिस कर्मियों के बीच संवाद होता रहता तो कदाचित पुलिस के सड़क पर उतरने की नौबत नहीं आती।

वकील-पुलिस के बीच बैर भाव बढ़ाने वाला टकराव समाधान नहीं ला सकता

वकील-पुलिस के बीच तनातनी का निदान खुद को सही और दूसरे को गलत ठहराने से नहीं होने वाला। दोनों का और साथ ही देश का काम एक-दूसरे के सहयोग के बगैर नहीं चल सकता। जब दोनों को मिलकर ही काम करना है तब बैर भाव बढ़ाने वाला टकराव कोई समाधान नहीं हो सकता।

पुलिस अधिकारी अधिवक्ताओं से समन्वय स्थापित करें

बेहतर हो कि दोनों पक्ष जांच रपट की प्रतीक्षा करें और समाज को यह संदेश दें कि दोनों मिलकर काम करने को तैयार हैैं। पुलिस अधिकारियों को चाहिए कि वे अधिवक्ताओं से समन्वय स्थापित करें। ऐसी किसी पहल में अधिवक्ताओं का सहयोग आवश्यक है। एक-दूसरे को झुकाने और अपनी बात मनवाने वाला रवैया न्यायसंगत नहीं।

पुलिस अधिकारियों और अधिवक्ता संगठनों के बीच नियमित बैठकें होनी चाहिए

एक समय पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और अधिवक्ता संगठनों के बीच नियमित बैठकें होती थीं। इन बैठकों में पारस्परिक समस्याओं का निस्तारण होता था। इस परंपरा को नए सिरे से स्थापित और पुष्ट किया जाना चाहिए। इससे भी जरूरी यह है कि दोनों पक्ष अपने अहं को तिलांजलि दें और इस पर गौर करें कि उनके बीच टकराव से दोनों की ही प्रतिष्ठा पर आंच आ रही है। कानून के शासन की रक्षा तभी हो सकती है जब कानून के रक्षक और कानून के सहायक एक-दूसरे के सहयोगी बनेंगे।

( लेखक उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक रहे हैैं )

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