Ayodhya Ram Mandir News: सनातन संस्कृति की विराट चेतना का प्राकट्य

Ayodhya Ram Mandir News आइए ऐसे राम के नाम का एक दीया प्रकाशित करते हैं और देश में रामराज्य की स्थापना की ओर कदम बढ़ाते हैं। रायपुर के चंदखुरी स्थित माता कौशल्या का मंदिर।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 05 Aug 2020 02:40 PM (IST) Updated:Wed, 05 Aug 2020 02:40 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir News: सनातन संस्कृति की विराट चेतना का प्राकट्य
Ayodhya Ram Mandir News: सनातन संस्कृति की विराट चेतना का प्राकट्य

छत्तीसगढ, मनोज झा। Ayodhya Ram Mandir News आस्तिकता और नास्तिकता के द्वंद्व के भी हर आयाम में विराजमान हैं राम। मानने वालों के लिए वह भगवान हैं, न मानने वालों के लिए एक काल्पनिक पौराणिक पात्र तो तर्क और मीमांसावादियों के लिए एक विचार हैं राम। सनातन संस्कृति के मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम की वैचारिक सत्ता पर गौर करें तो वहां भी एक विराट स्वरूप का दिग्दर्शन होता है। कुछ वैसा ही, जैसा पौराणिक कथाओं में र्विणत है।

सबसे बड़ी बात कि राम का कोई विरोधी ही नहीं है। दलों, संस्थाओं या संगठनों का विरोध तो हो सकता है और आज भी है। इसी प्रकार कुछ लोग उन्हें भगवान का दर्जा नहीं भी दे सकते हैं, लेकिन राम के व्यक्तित्व और गुणों का विरोधी तो शायद ही कोई मिलेगा। राम सभी के हैं और सभी के लिए हैं। कोई उनमें भगवत्ता ढूंढता है तो कोई आदर्श राजा, कोई पुत्र तो कोई सखा, कोई योद्धा तो कोई उद्धारक।

मर्यादा की अनंतिम सीमा पर अनंत काल से स्थित एक प्रतिमान का नाम है राम। कुछ यही कारण है कि रामलला के मंदिर का भूमिपूजन आज भले ही अयोध्यापुरी में हो रहा हो, लेकिन उसके हर्ष और गर्व का पारावार भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण कर हर तरफ हो रहा है। छत्तीसगढ़ तो खैर राम का ननिहाल ही है, माता कौशल्या का मायका है, अयोध्या नरेश दशरथ की ससुराल है और भगवान के चौदह वर्ष के वनवास का साक्षी स्थल है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राम ने वनवास के चौदह में से करीब 10 वर्ष वर्तमान छत्तीसगढ़ की धरती पर बिताए थे। वनवास के दौरान चित्रकूट से आगे बढ़ते ही राम दंडकारण्य वन में प्रवेश करते ही छत्तीसगढ़ के हो जाते हैं। प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर वनवास के दौरान की तमाम लीलाओं के साक्ष्य भी मौजूद हैं। उत्तर में कोरिया स्थित सीतामढ़ी, रायगढ़ का राम-झरना, जांजगीर का शिबरीनारायण और लक्ष्मणेश्वर मंदिर, नीचे सुदूर दक्षिण में बस्तर का रामपाल और सुकमा का रामारम यानी छत्तीसगढ़ का रामेश्वरम।

मध्य में राजधानी रायपुर के पास चंदखुरी गांव में राम का ननिहाल और राजिम में उनके इष्टदेव भगवान शिव का वास। ये कुछ ऐसे प्रमुख पौराणिक और प्रामाणिक स्थल हैं, जहां वनवास की अवधि में कुछ न कुछ महत्वपूर्ण घटित हुआ। शायद यही कारण है कि यहां के अवचेतन में राम को मानने, अपनाने, पूजने और उनमें समा जाने के अनंत सामाजिक उपक्रम और उपासना पद्धतियों ने एक स्थायित्व-सा ग्रहण कर लिया है। उदाहरण के तौर पर सरगुजा के रामनामी समुदाय को कभी मंदिरों में जाने और राम को पूजने से रोका गया तो उसने अपने पूरे तन-मन को ही राममय कर लिया। राम के प्रति भक्ति की यह पराकाष्ठा ही है कि इस समाज के लोग आज भी अपने शरीर पर राम नाम का अमिट गोदना गोदवाते हैं और सदा के लिए राम के हो जाते हैं। बस्तर संभाग के आदिवासी समाज की बात करें तो वह विकास की आधुनिक रोशनी से दूर घने जंगलों में बेशक रहा, लेकिन उसने राम को कभी नहीं बिसराया।

आज भी कई आदिवासी समुदायों के पुरुष अपने नाम के साथ किसी न किसी रूप में राम जरूर लगाते हैं। माता कौशल्या का मायका चंदखुरी जाइए तो यहां राम भगवान रूप में नहीं, बल्कि भांजे के रूप में मिलेंगे। मंदिर में मौजूद विग्रह भी कौशल्या की गोद में रामलला विराजमान का है। छत्तीसगढ़ के रज-चेतन में बसे राम के लिए यहां की प्रदेश सरकार ने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राम वनगमन पथ को विकसित करने की दिशा में गंभीरता से काम शुरू कर दिया है।

पिछले दिनों सपरिवार वह चंदखुरी गए थे और कौशल्या मंदिर में राम के लिए फिर से अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। एक शासक के लिए आप इसे राममय हो जाना कह सकते हैं। दरअसल राम की स्वीकार्यता इतनी विराट है कि उसने सांगठनिक प्रतिबद्धताओं की दीवारें भी ध्वस्त कर दी हैं। भूमिपूजन को लेकर यहां भाजपा से ज्यादा सक्रिय कांग्रेस के नेतागण नजर आ रहे हैं। दलीय सीमाओं से परे जाकर आज हर कोई यह कह रहा है कि राम तुम्हारे से ज्यादा हमारे हैं। प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने तो यहां तक कहा कि उनकी पार्टी के आरंभिक प्रयासों के चलते ही अयोध्या में भूमिपूजन संभव हो पाया है। वास्तविकता भी यही है कि आज अयोध्या में संपूर्ण भारतवर्ष की सांस्कृतिक चेतना का जो उत्सव हो रहा है, वह किसी एक व्यक्ति, पार्टी या संगठन का प्रयास है भी नहीं। इसमें हर एक का योगदान है। किसी का थोड़ा तो किसी का ज्यादा। आइए, ऐसे राम के नाम का एक दीया प्रकाशित करते हैं और देश में रामराज्य की स्थापना की ओर कदम बढ़ाते हैं।

[छत्तीसगढ, राज्य संपादक]

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