RBI Repo Rate Cut: दिखेगा सुधारों का असर, सरपट दौड़ेगी अर्थव्यवस्था

विभिन्न चुनौतियों से जूझ रही अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए आरबीआइ ने अपनी चौथी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती की है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 07 Oct 2019 08:55 AM (IST) Updated:Mon, 07 Oct 2019 09:40 AM (IST)
RBI Repo Rate Cut: दिखेगा सुधारों का असर, सरपट दौड़ेगी अर्थव्यवस्था
RBI Repo Rate Cut: दिखेगा सुधारों का असर, सरपट दौड़ेगी अर्थव्यवस्था

[राहुल लाल]। रेपो रेट में हालिया 0.25 प्रतिशत की कटौती समेत इस वर्ष रिजर्व बैंक रेपो रेट में अब तक कुल मिलाकर 1.35 फीसद की बड़ी कटौती कर चुका है। आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए ऐसा किया गया है। इस संपूर्ण मामले को विस्तार से समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि रेपो रेट क्या है? रेपो वह दर है जिस दर पर देश के व्यावसायिक बैंक आरबीआइ से उधार लेते हैं। रेपो रेट में इस वर्ष पहली बार कटौती फरवरी में की गई, तब 0.25 प्रतिशत कटौती के साथ रेपो रेट 6.25 प्रतिशत हुई। इसी तरह दूसरी बार कटौती अप्रैल में भी 0.25 प्रतिशत की हुई तथा रेपो दर छह प्रतिशत हो गया। जून में रेपो रेट में तीसरी बार पुन: 0.25 प्रतिशत कटौती के साथ यह 5.75 प्रतिशत हो गई। रेपो रेट में चौथी बार कटौती अगस्त में की गई।

अब तक रेपो दरों में कटौती 25 या 50 आधार अंकों के दर से हो रही थी, लेकिन आरबीआइ के इतिहास में पहली बार परंपरा से हटकर 35 आधार अंकों की कटौती की जिससे रेपो रेट 5.40 प्रतिशत हो गई। वहीं अक्टूबर में पांचवीं बार में पुन: 0.25 प्रतिशत अर्थात 25 आधार अंकों की कटौती हुई तथा अब रेपो रेट केवल 5.15 प्रतिशत रह गया है। रेपो रेट में इतनी कम दर इसके पहले दिसंबर 2010 में तब थी, जब यह पांच प्रतिशत के स्तर पर था। तब भी वैश्विक मंदी से निपटने के लिए आरबीआइ ने ब्याज दरों में भारी कटौती की थी। लेकिन इस बार की कटौती का मकसद घरेलू मांग में वृद्धि करते हुए आर्थिक सुस्ती को दूर करना है।

रिवर्स रेपो रेट में कटौती

आरबीआइ ने रिवर्स रेपो रेट में 0.25 फीसद कटौती कर 4.90 प्रतिशत कर दिया है, वहीं सीआरआर चार फीसद पर स्थिर है। नाम के मुताबिक ही रेपो दर के विपरीत रिवर्स रेपो रेट होता है। बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी है, तो वह रिवर्स रेपो रेट में वृद्धि कर देता है। लेकिन अभी बाजार में नकदी की कमी है, इसलिए रिजर्व बैंक लगातार इसमें भी कटौती कर रही है।

आरबीआइ ने विकास दर का अनुमान घटाया

आर्थिक सुस्ती को ध्यान में रखते हुए आरबीआइ ने वर्ष 2019-20 में आर्थिक विकास दर का अपना अनुमान घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है। यदि ऐसा है, तो चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वर्ष 2012-13 के बाद सबसे कम होगी। इससे अल्पावधि में रोजाना सृजन और आय वृद्धि रफ्तार प्रभावित हो सकती है। अगस्त में पिछली समीक्षा में इसके 6.9 फीसद रहने का अनुमान लगाया गया था। इस तरह अब अगस्त की बैठक में जताए अनुमान से वृद्धि दर 80 आधार अंक कम है। इन दो बैठकों के बीच की अवधि में यानी अगस्त से लेकर अब तक वाहन बिक्री घटी है, प्रमुख क्षेत्रों का उत्पादन कमजोर पड़ा है और सेवा क्षेत्र में कमी आई है। ज्ञात हो फरवरी में 2019-20 के लिए आरबीआइ का जीडीपी वृद्धि का अनुमान 7.4 प्रतिशत था। आरबीआइ का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही (अक्टूबर- मार्च) में 6.6 से 7.2 फीसद के बीच रह सकती है। केंद्रीय बैंक ने दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर के 5.3 फीसद रहने का अनुमान जताया है। आरबीआइ ने 2020-21 के लिए भी जीडीपी अनुमान को घटाकर 7.2 फीसद कर दिया है।

डेरिवेटिव की इजाजत

केंद्रीय बैंक ने प्रवासी भारतीयों के लिए किसी भी समय विदेशी मुद्रा विनिमय उपलब्ध कराने की सिफारिश को मंजूरी दे दी है। इसके अंतर्गत भारतीय बैंक प्रवासी भारतीयों को हर समय रुपये के बदले विदेशी मुद्रा उपलब्ध करा सकेंगे। रिजर्व बैंक ने कहा कि डेरिवेटिव में कारोबार की इजाजत दी जाएगी और इसका निपटान गुजरात स्थित गिफ्ट सिटी में विदेशी मुद्रा में हो सकेगा। ऊषा थोराट समिति ने कुछ समय पूर्व ही ऑफशोर रुपया बाजार के बारे में सिफारिशें दी थी, जिनमें से उपरोक्त दो को बड़ा माना जा रहा था। रिजर्व बैंक के इस कदम का मकसद विदेश में रुपये में होने वाले कारोबार को भारत लाना है।

मौद्रिक नीति समिति के अनुसार, थोराट समिति की अन्य सिफारिशों पर केंद्रीय बैंक विचार कर रहा है। मसला यह है कि अहस्तांतरणीय फॉरवर्ड मार्केट यानी नॉन डिलीवरिएबल फॉरवर्ड मार्केट यानी एनडीएफ में रुपया कारोबार की मात्रा में इजाफा हुआ है और यह घरेलू बाजार से काफी ज्यादा है। भारत से बाहर होने वाले इस कारोबार पर केंद्रीय बैंक का कोई नियंत्रण नहीं है। बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (बीआइएस) के अनुसार एनडीएफ छह मुद्राओं में होता है- कोरिया की वॉन, भारतीय रुपया, चीन की रेम्बिनी, ब्राजील की रियाल, ताइवानी डॉलर और रूसी रूबल। इन सभी का वैश्विक स्तर पर एनडीएफ के कुल कारोबार में हिस्सेदारी दो तिहाई है। बीआइएस के सर्वे के मुताबिक एनडीएफ बाजार में कुल रोजाना औसत कारोबार करीब 200 अरब डॉलर पर था, जिसमें भारत की हिस्सेदारी करीब 18.22 प्रतिशत थी।

एनबीएफसी- एमएफआइ के लिए रिजर्व बैंक ने उधारी सीमा में वृद्धि की

दूरदराज वाले ग्रामीण इलाकों में कर्ज की उपलब्धता में सुधार के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने गैर बैंकिंग वित्तीय सेवा- माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन (एनबीएफसी- एमएफआइ) के लिए उधारी से संबंधित पाबंदी को उदार बनाया है। केंद्रीय बैंक ने एनबीएफसी- एमएफआइ से उधार लेने वालों के लिए आय की सीमा ग्रामीण

इलाकों में एक लाख रुपये से बढ़ाकर 1.60 लाख रुपये कर दी है, जबकि शहरी और अर्ध शहरी इलाकों के लिए 1.25 लाख से बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दी है। इसके अलावा प्रति ग्राहक के लिए उधारी सीमा एक लाख से बढ़ाकर 1.25 लाख रुपये कर दी है। मौजूदा कर्ज और आय की सीमा में पिछली बार वर्ष 2015 में संशोधन किया गया था।

आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार माइक्रो फाइनेंस संस्थान आर्थिक पायदान के निचले स्तर वालों को उधार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन कदमों से आर्थिक पायदान के निचले स्तर पर मौजूद लोगों को एमएफआइ की उधारी में मजबूती की संभावना है। आरबीआइ के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2019 में 95 एनबीएफसीएमएफआइ थे। माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन नेटवर्क यानी एमएफआइएन के माइक्रो मीटर रिपोर्ट में जून 2019 की 1.9 लाख करोड़ रुपये की कुल माइक्रो फाइनेंस क्रेडिट में एनबीएफसी- एमएफआइ की हिस्सेदारी करीब 30 फीसद बताई गई है।

एमएफआइएन भारत में एनबीएफसी- एमएफआइ की औद्योगिक निकाय है। आरबीआइ की यह घोषणा ग्रामीण इलाकों के लिए बेहद सकारात्मक है। वर्तमान आर्थिक सुस्ती का एक प्रमुख कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग की भारी कमी है। ऐसे में एनबीएफसी- एमएफआइ की बढ़ी उधारी सीमा से ग्रामीण इलाकों में मांग में वृद्धि करने और कुछ हद तक ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने में मदद मिलने की उम्मीद है।

रेपो रेट में कमी को उपभोक्ता तक पहुंचने की चुनौती

आरबीआइ द्वारा रेपो रेट में कटौती के बाद कर्ज प्रवाह में वृद्धि की संभावना जताई जा रही है। लेकिन रिजर्व बैंक के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ब्याज दरों में कटौती का लाभ सामान्य ग्राहकों तक कैसे पहुंचे? रिजर्व बैंक का कहना है कि फरवरी और अप्रैल में कुल मिलाकर 0.50 फीसद की कटौती कर चुका था, लेकिन स्वयं आरबीआइ मानती है कि 0.50 आधार अंक की इस कटौती में से केवल 21 आधार अंक की कटौती का लाभ ही सामान्य ग्राहकों तक पहुंच पाया है। रेपो रेट में अब तक 1.35 फीसद कटौती हुई, लेकिन ग्राहकों की ईएमआइ पर असर महज 0.40 से 0.45 फीसद तक ही देखा गया है। हालांकि एक अक्टूबर से कई बैंकों ने लोन को रेपो रेट से जोड़ा है जिससे पिछले वर्ष की तुलना में उपभोक्ताओं को यह लाभ जल्द मिलेगा।

निष्कर्ष

आरबीआइ द्वारा रेपो रेट घटाने से जहां कर्ज सस्ता हो रहा है, वहीं इसका एक दूसरा पक्ष भी है। बैंक सस्ती दरों पर कर्ज देंगे, तो वे अपनी बचत योजनाओं पर मिलने वाली ब्याज को भी कम करेंगे। इसके चपेट में आरडी, एफडी इत्यादि सभी आएंगे। इसका उन लोगों पर प्रभाव पड़ेगा, जो अपनी बचतों पर ही निर्भर होते हैं, जैसे रिटायर्ड कर्मचारी। इसके साथ ही बचत पर कम रिटर्न के कारण भी खपत घट सकती है। भारत में बचत वृद्धि दर पिछले एक दशक में सबसे नीचे चल रही है। ऐसे में बचत की ब्याज दर घटी तो, बैंकिंग सेक्टर के लिए भी चिंता की बात होगी, क्योंकि उसकी आमदनी का सबसे बड़ा जरिया यही है।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]

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