आरक्षण के वर्गीकरण पर सभी वर्गों से विचार-विमर्श कर आम राय बनाने की जरूरत और बढ़ गई है

आवश्यकता है कि आरक्षण पर सभी वर्गों से व्यापक विचार-विमर्श कर आम राय बनाने के प्रयास हों आरक्षण व्यवस्था विवाद का विषय बन सकती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 10 Sep 2020 06:20 AM (IST) Updated:Thu, 10 Sep 2020 06:20 AM (IST)
आरक्षण के वर्गीकरण पर सभी वर्गों से विचार-विमर्श कर आम राय बनाने की जरूरत और बढ़ गई है
आरक्षण के वर्गीकरण पर सभी वर्गों से विचार-विमर्श कर आम राय बनाने की जरूरत और बढ़ गई है

वक्त की मांग है आरक्षण के भीतर आरक्षण 

ओबीसी आरक्षण में भी आरक्षण के भीतर आरक्षण करने की जरूरत 

[ केसी त्यागी ]: सामाजिक एवं शैक्षणिक तौर पर पिछड़ गए वंचित वर्गों के आरक्षण पर बहस ने फिर से जोर पकड़ी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण का उपवर्गीकरण किया जा सकता है। ऐसा ही उपवर्गीकरण यानी आरक्षण के भीतर आरक्षण ओबीसी आरक्षण में भी करने की जरूरत जताई जा रही है। ओबीसी आरक्षण पर मंडल कमीशन की रिपोर्ट को वीपी सिंह सरकार द्वारा लागू किए जाने के बाद जब नवंबर 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने उसे हरी झंडी दी, तब आरक्षण विरोध की राजनीति कुछ थमी अवश्य, लेकिन उसका पटाक्षेप नहीं हुआ। समय-समय पर आरक्षित वर्गों के संगठन इस बात को लेकर चिंता जताते हैं कि उच्च श्रेणी की सरकारी नौकरियों में उनकी संख्या के मुताबिक आरक्षण प्राप्त नहीं हो रहा है।

कई दल निजी क्षेत्र में भी आरक्षण को लेकर लामबंद

चूंकि उदारीकरण और निजीकरण के दौर में निजी संस्थानों में आरक्षण की कोई सुविधा नहीं है, इसलिए कई दल एवं सामाजिक संगठन निजी क्षेत्र में भी इस सुविधा को मुहैया कराने को लेकर लामबंद हैं। उनकी ओर से अनुपातिक हिस्सेदारी की मांग करते हुए कहा जा रहा है कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ ने आरक्षण के भीतर आरक्षण को सही ठहराया। इस पीठ का कहना था कि आरक्षण का लाभ सभी तक समान रूप से पहुंचाने के लिए राज्य सरकारों को एसटी-एससी श्रेणी में उपवर्गीकरण का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- एससी-एसटी वर्ग में भी क्रीमीलेयर लागू किया जाए

ध्यान रहे कि 2004 में ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने इसके विपरीत फैसला देते हुए कहा था कि राज्यों को एसटी-एससी आरक्षण में वर्गीकरण का अधिकार नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 16 वर्ष पुराने फैसले में सुधार की जरूरत है, ताकि आरक्षण का लाभ समाज के निचले तबके को भी मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एससी-एसटी वर्ग में भी क्रीमीलेयर लागू की जाए, ताकि आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद तबकों तक पहुंच सके। उसके अनुसार राज्य आरक्षण देते समय अनुच्छेद 14, 15 और 16 की अवधारणा के आधार पर अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों में तर्कसंगत उपवर्गीकरण भी कर सकता है। यद्यपि सरकार आरक्षित जातियों की सूची में छेड़छाड़ नहीं कर सकती, लेकिन जब आरक्षण एक वर्ग के बीच असमानता पैदा करे तो उसका दायित्व है कि वह उपवर्गीकरण के जरिये उसे दूर करे और उसका बंटवारा इस तरह करे कि लाभ सिर्फ कुछ लोगों तक सीमित न रहे, बल्कि सभी को मिले।

एससी-एसटी वर्ग की जातियां समान नहीं हैं

एससी-एसटी वर्ग की जातियां समान नहीं हैं। आंध्र, पंजाब, तमिलनाडु और बिहार में वंचित समूहों के लिए विशेष आरक्षण का प्रावधान अमल में है। पिछड़े वर्गों के लिए बिहार में मुंगेरीलाल आयोग 1971 में गठित हुआ था। तब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे। आयोग ने 1975 में पिछड़ा वर्ग को दो भागों में विभाजित किया-ओबीसी और एमबीसी यानी पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग। कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में इस रिपोर्ट को लागू करने के आदेश दिए, जिसे समूचे देश में कर्पूरी फॉर्मूला नाम से जाना जाता है। इसके तहत सरकारी नौकरियों में यह फॉर्मूला बना-8 प्रतिशत ओबीसी, 12 प्रतिशत एमबीसी, 14 प्रतिशत एससी, 11 प्रतिशत एसटी, 3 प्रतिशत महिला, 3 प्रतिशत र्आिथक रूप से पिछड़े। नीतीश सरकार भी इसी फॉर्मूले के आधार पर अति पिछड़ों एवं महादलितों के सामाजिक सशक्तीकरण के लिए प्रयासरत है। बिहार की तरह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी राघवेंद्र कमेटी का गठन कर आरक्षण में आरक्षण का फॉर्मूला तय किया गया था। इससे पूर्व राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री काल में हुकुम सिंह कमेटी का गठन किया गया था, जिसने 79 पिछड़ी जातियों को तीन हिस्सों में बांटकर आरक्षण देने की पहल की थी, लेकिन दिसंबर 2001 में जब सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती मिली, तो वहां यह पहल खारिज हो गई। केंद्र सरकार आरक्षण के भीतर आरक्षण के मुद्दे को लंबे समय तक टालने के पक्ष में नहीं दिखती।

19 जातियों को 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का पूरा फायदा नहीं मिला

केंद्र की सूची में कुल 2633 ओबीसी जातियों में से 19 जातियों को 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का पूरा फायदा नहीं मिला है। इसमें 25 प्रतिशत जातियां ही 97 प्रतिशत आरक्षण का लाभ ले रही हैं और इसके अलावा 983 जातियां ऐसी हैं, जिन्हेंं आरक्षण से कोई लाभ नहीं हुआ है। यही स्थिति एससी-एसटी आरक्षण में भी है। इसकी लंबे समय तक अनदेखी नहीं की जा सकती।

क्रीमीलेयर का मूल्यांकन करते समय वेतन एवं कृषि आय को नजरअंदाज किया जाए

केंद्र सरकार ने जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन अक्टूबर 2017 में किया था, ताकि वह ओबीसी आरक्षण के उपवर्गीकरण की संभावनाएं तलाश सके। केंद्र सरकार सभी राज्यों के सरकारी नौकरियों के आंकड़े जुटाकर कोई निर्णायक फैसला करना चाहती है। केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनसंख्या का कार्य भी शुरू किया गया है, लेकिन उसकी धीमी गति आलोचना के दायरे में है। ध्यान रहे कि मंडल आयोग ने 1931 की जाति जनगणना के आधार पर ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव दिया था। इस कारण तमाम संगठन पहले जातिगत जनसंख्या की गिनती पूरी करने के पक्षधर हैं। वे आबादी के हिसाब से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा गठित संसदीय पिछड़ा वर्ग ने प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री को पत्र लिखकर क्रीमीलेयर को लेकर आपत्तियां दर्ज कराई हैं। इन सांसदों का कहना हैं कि क्रीमीलेयर का मूल्यांकन करते समय वेतन एवं कृषि आय को नजरअंदाज किया जाए।

सामाजिक समानता के लिए लड़ाई तेज होने के आसार

आने वाले दौर में सामाजिक समानता के लिए लड़ाई तेज होने के आसार हैं। ऐसे में आवश्यकता है कि आरक्षण पर सभी वर्गों से व्यापक विचार-विमर्श कर आम राय बनाने के प्रयास हों, वरना समता के उद्देश्य से बनाई गई आरक्षण व्यवस्था विवाद का विषय बन सकती है। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि उदारीकरण और निजीकरण के इस दौर में असमानता बढ़ रही है।

( लेखक जनता दल-यू के महासचिव एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )

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