जन-जन तक पहुंचे श्रीराम का संदेश, प्रभु राम की वंदना के साथ ही हमें उनके दिखाए मार्ग पर भी चलना होगा

Ram Navami 2024 प्रभु श्रीराम हमारी धार्मिक राजनीतिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर के प्रतीक हैं। हमारे लिए आज आवश्यक केवल यह नहीं है कि हम राम की वंदना करें। यह भी आवश्यक है कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलें और जन-जन तक उनका संदेश पहुंचे। ऐसा करके ही हम रामराज्य की स्थापना के स्वप्न को साकार कर पाएंगे।

By Narender Sanwariya Edited By: Narender Sanwariya Publish:Tue, 16 Apr 2024 11:55 PM (IST) Updated:Tue, 16 Apr 2024 11:55 PM (IST)
जन-जन तक पहुंचे श्रीराम का संदेश, प्रभु राम की वंदना के साथ ही हमें उनके दिखाए मार्ग पर भी चलना होगा
जन-जन तक पहुंचे श्रीराम का संदेश (File Photo)

प्रवीन लखेड़ा। सदियों बाद रामनवमी एक ऐसे अवसर पर मनाई जा रही है, जब रामलला अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर निर्मित भव्य मंदिर में विराजमान हैं। इसीलिए इस बार रामनवमी का विशेष महत्व है और देश के साथ विदेश में भी उसे लेकर अतिरिक्त उत्साह है। जन-जन के आराध्य भगवान राम अधर्म पर धर्म की जीत के प्रतीक और पर्याय हैं। होली, दीवाली, दुर्गा-पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी की तरह रामनवमी भी यही संदेश देती है कि अंत में धर्म की ही विजय होती है और इसलिए मनुष्य को सदैव धर्म के पथ पर चलना चाहिए। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने हमेशा धर्म, सत्य और ज्ञान को अपना आधार बनाया।

ज्ञान, जो हमें अज्ञान रूपी अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। उनके लिए धर्म वह है, जो सदाचरण के मार्ग पर चलना और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना सिखाता है। राम भारतीय संस्कृति में धर्म, सत्य, शौर्य, शील, संयम, विनम्रता आदि गुणों के प्रतीक हैं। इन गुणों के कारण ही हम उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में जानते हैं। रामनवमी का पर्व उस आराध्य के प्रति समर्पण है, जो स्वयं सदैव धर्म के मार्ग पर चले और जिन्होंने अन्य सभी को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इसी कारण रामकथा न सिर्फ भारत, बल्कि अन्य देशों, जैसे म्यांमार, कंबोडिया, नेपाल, थाइलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया आदि देशों में महत्व रखती है।

अपने आराध्य भगवान श्रीराम के जन्मस्थान अयोध्या में बने मंदिर को पुनः प्राप्त करने के लिए 500 वर्षों तक जो संघर्ष चला, उसमें असंख्य लोगों ने बलिदान दिया। यह भारतीय संस्कृति और उसकी सहिष्णुता की विशेषता ही है कि सब कुछ जानने के पश्चात भी हिंदू समाज ने अपने एक सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल की वापसी के लिए न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा की। ऐसी ही प्रतीक्षा वह मथुरा और काशी के अपने धार्मिक स्थलों को लेकर कर रहा है।

यदि स्वतंत्रता के उपरांत तत्कालीन सरकार चाहती तो सोमनाथ मंदिर की तरह अयोध्या, काशी और मथुरा के मंदिरों से जुड़े विवादों का भी समाधान कर सकती थी। ध्यान रहे कि पोलैंड की सरकार ने आजादी मिलने के बाद सबसे पहला काम रूस की गुलामी के समय बनाए गए आर्थोडाक्स चर्च को हटाकर किया था, किंतु छद्म पंथनिरपेक्षता और संकुचित सोच के कारण भारत में ऐसा नहीं हो सका।

श्रीराम हजारों वर्ष बाद भी भारतीय संस्कृति का आधार बने हुए हैं तो इसीलिए कि वह हमारी चेतना में समाए हैं। राम जन्मस्थान पर बने मंदिर की तरह विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारे अन्य अनेक मंदिरों को तोड़ा, लेकिन वे हमारे मनोबल और धार्मिक विश्वासों को नहीं तोड़ सके, क्योंकि हमारे आराध्य हमें संबल देते रहे। राम केवल इसलिए हमारे आराध्य नहीं हैं कि वनवासी जीवन व्यतीत करते हुए उन्होंने शक्तिशाली रावण को पराजित किया। वह इसलिए भी पूजनीय हैं, क्योंकि वह विनम्र और मर्यादित रहे और उन्होंने सदैव धर्म का अनुसरण किया। वैदिक संस्कृति के अनुसार सत्य के मार्ग का अनुसरण करते हुए उचित-अनुचित का ध्यान रखकर अपने कर्तव्यों का पालन करना ही धर्म है।

राम ने अपने जीवन में छात्र-धर्म, पुत्र-धर्म, भ्रातृ-धर्म, पति-धर्म, मित्र-धर्म, राज-धर्म का आदर्श रूप में पालन कर एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। राम के चरित्र को जानकर ही हम समझ सकते हैं कि भारतीय दर्शन में कर्तव्य-पालन का क्या महत्व है। राम ने धर्म के मार्ग पर चलकर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जो आदर्श स्थापित किया, वह आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। राम अपने पिता दशरथ के बाद अयोध्या की राजगद्दी संभालते, किंतु माता कैकेयी ने अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए वनवास की मांग कर दी।

कैकेयी को दिए गए वचन की प्रतिज्ञा में बंधे राजा दशरथ को जब यह सूझ नहीं रहा था कि वह कैसे राम को वन जाने के लिए कहें, तब राम को जैसे ही पिता की समस्या का भान हुआ, उन्होंने राजसी वैभव त्यागने में संकोच नहीं किया। जहां इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा है कि राजगद्दी के लिए पुत्रों ने पिता और भाई ने भाई को खत्म किया, वहां राम ने पिता के वचन की रक्षा के लिए अनुज भरत के लिए राजगद्दी त्याग दी।

विश्व ऐसे उदाहरणों से भी भरा पड़ा है कि राजाओं ने दूसरे राज्यों को विजित कर उन्हें अपने अधीन कर वहां शासन किया, लेकिन राम विभीषण को लंका का शासन सौंपकर अयोध्या लौट आए। वनवास की अवधि में जब राम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन की ओर गए, तब निषादराज ने उन्हें अपने यहां रुकने का आग्रह किया। यदि वह वहां रुक जाते, तब भी अपने पिता की आज्ञा का पालन करते, लेकिन उन्होंने निषादराज के अनुरोध को अस्वीकार कर कैकेयी की इच्छा का अक्षरशः पालन करने के लिए वन प्रस्थान करना पसंद किया।

वनवास की अवधि में जब शबरी ने राम को आमंत्रित किया तो उन्होंने उनका आतिथ्य स्वीकार कर यह स्पष्ट संदेश दिया कि न कोई छोटा है-न बड़ा और न कोई ऊंचा है और न नीचा। यदि हमें जातिगत भेदभाव से पूर्ण रूप से मुक्त होना है तो श्रीराम के आदर्शों पर चलना ही होगा। आज चुनावों के अवसर पर हम इस कटु सत्य से मुंह नहीं मोड़ सकते कि कैसे कुछ लोग नागरिक-धर्म एवं मानव-धर्म की अनदेखी कर जातीय स्वाभिमान और गौरव के नाम पर समाज को विभाजित करने का प्रयत्न कर रहे हैं।

प्रभु श्रीराम हमारी धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर के प्रतीक हैं। हमारे लिए आज आवश्यक केवल यह नहीं है कि हम राम की वंदना करें। यह भी आवश्यक है कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलें और जन-जन तक उनका संदेश पहुंचे। ऐसा करके ही हम रामराज्य की स्थापना के स्वप्न को साकार कर पाएंगे।

(लेखक इतिहासकार हैं)

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