कांग्रेस के पतन की जो प्रक्रिया धीमी गति से चल रही थी उसे पार्टी नेता राहुल गांधी ने और तेज कर दिया है

कांग्रेस के लोगों को सोचना पड़ेगा कि क्यों हर बार यह धारणा बनती है कि जैसे उनका नेता दुश्मन देश के पाले में खड़ा हो।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 25 Jun 2020 01:14 AM (IST) Updated:Thu, 25 Jun 2020 01:14 AM (IST)
कांग्रेस के पतन की जो प्रक्रिया धीमी गति से चल रही थी उसे पार्टी नेता राहुल गांधी ने और तेज कर दिया है
कांग्रेस के पतन की जो प्रक्रिया धीमी गति से चल रही थी उसे पार्टी नेता राहुल गांधी ने और तेज कर दिया है

[ प्रदीप सिंह ]: आपको जब भी लगेगा कि कांग्रेस अब और नीचे नहीं गिर सकती उसी समय वह आपको गलत साबित कर देगी। यह एक लकवाग्रस्त, नेतृत्व विहीन और दिशाहीन पार्टी हो गई है जिसके नेता के साथ उसकी सहयोगी र्पािटयां तो छोड़िए, अपनी पार्टी के लोग भी खड़े होने को तैयार नहीं हैं। आजादी के बाद से यह पहला मौका है जब राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी पार्टी सरकार ही नहीं, बाकी विपक्ष से भी अलग-थलग दिख रही है। सोनिया और राहुल गांधी देश की सरकार के साथ खड़े होने को तैयार नहीं दिख रहे। ऐसी कांग्रेस आजादी के आंदोलन की वारिस तो नहीं हो सकती।

यह वह कांग्रेस नहीं हो सकती जिसने देश में राष्ट्रवाद को परिभाषित कर आजादी का आंदोलन चलाया

यह वह कांग्रेस नहीं हो सकती जिसने देश में राष्ट्रवाद को परिभाषित किया और उसी मुद्दे पर आजादी का आंदोलन चलाया। यह तो नेहरू और इंदिरा गांधी की भी कांग्रेस नहीं हो सकती। पिछले महीने भर से सोनिया और राहुल जैसे बयान दे रहे हैं वे चीन के लिए ही मददगार साबित हो रहे। यह पहली बार नहीं हो रहा है। पाकिस्तान के खिलाफ र्सिजकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के समय भी पार्टी का रवैया ऐसा ही था। यदि आपको लग रहा हो कि यह केवल प्रधानमंत्री मोदी के प्रति घृणा भाव के कारण हो रहा है तो आप पूरी तरह सही नहीं हैं।

करगिल युद्ध के समय भी कांग्रेस ऐसे आरोप लगा रही थी जिससे हमारी फौज का मनोबल गिरे

करगिल युद्ध के समय भी कांग्रेस का यही रवैया था। वह तब भी ऐसे ही प्रश्न पूछ रही थी और ऐसे आरोप लगा रही थी जिससे हमारी फौज का मनोबल गिरे और दुश्मन का हौसला बढ़े। दरअसल यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस का डीएनए ही बदल गया है। यह सोनिया और राहुल की कांग्रेस है। इसमें राष्ट्रहित प्राथमिकता में नहीं है।

कांग्रेस ने दलगत हित को भी दरकिनार कर दिया

आश्चर्य यह है कि दलगत हित को भी दरकिनार कर दिया गया है। भाजपा तो कांग्रेस की विरोधी है। इसलिए कांग्रेस के बारे में उसकी राय को किनारे रख दीजिए। प्रधानमंत्री के साथ सर्वदलीय बैठक में उसकी सहयोगी डीएमके और एनसीपी सहित बाकी विपक्षी दल पीएम और सरकार के साथ खड़े दिखे। यहां तक कि हर बात पर मोदी का विरोध करने वाली ममता बनर्जी ने भी दलगत राजनीति परे रखकर राष्ट्रहित के साथ खड़े होना बेहतर समझा। राजनीतिक रूप से सबसे परिपक्व रुख बसपा प्रमुख मायावती का रहा।

पंचशील नेहरू के समय शुरू हुआ और उनके जीते जी ही खत्म हो गया

शरद पवार ने तो परोक्ष रूप से राहुल को झिड़क ही दिया, पर इन बातों से कांग्रेस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वह इस मुद्दे पर जीवाश्म बन चुके वामदलों के साथ है। माकपा नेता सीताराम येचुरी उस पंचशील की बात कर रहे हैं जो नेहरू के समय शुरू हुआ और उनके जीते जी ही खत्म हो गया। भाकपा के डी राजा को सपने में भी अमेरिका सताता है। अमेरिका के साथ नागरिक परमाणु संधि का विरोध करके 2009 के चुनाव में मिट्टी में मिलने के बाद भी वामपंथियों को समझ में नहीं आ रहा है कि देश और दुनिया 21वीं सदी में है। नेहरू-गांधी परिवार कांग्रेस को वामदलों की स्थिति की ओर ले जा रहा है।

कांग्रेस अमर है, वह मर नहीं सकती, उसके दोष बने रहेंगे, गुण लौट-लौट कर आएंगे : शरद जोशी

व्यंगकार शरद जोशी ने चार दशक पहले लिखा था, ‘कांग्रेस अमर है। वह मर नहीं सकती। उसके दोष बने रहेंगे और गुण लौट-लौट कर आएंगे। जब तक पक्षपात, निर्णयहीनता, ढीलापन, दोमुंहापन, पूर्वाग्रह, ढोंग, दिखावा, सस्ती आकांक्षा और लालच कायम है, इस देश से कांग्रेस को कोई समाप्त नहीं कर सकता। कांग्रेस कायम रहेगी। जो कळ्छ होना है आखिर में उसे कांग्रेस होना है। तीस नहीं तीन सौ साल बीत जाएंगे, कांग्रेस इस देश का पीछा नहीं छोड़ने वाली।’ आज वह होते तो पता नहीं क्या लिखते, पर एक बात तो दिखाई दे रही कि नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया कि जो कुछ होना है आखिर में उसे कांग्रेस नहीं होना है। मोदी काल में भाजपा कांग्रेस नहीं हुई, यही कांग्रेस के पतन का कारण बन गया है। पतन की जो प्रक्रिया धीमी गति से चल रही थी उसे राहुल गांधी ने तेज कर दिया है।

राहुल ने राफेल पर राजनीति और सार्वजनिक जीवन की सारी मर्यादा तोड़ दी थी

चीन से सीमा विवाद और कोरोना काल में राहुल के राफेल अवतार की वापसी हुई है। राफेल पर उन्होंने राजनीति और सार्वजनिक जीवन की सारी मर्यादा तोड़ दी थी। अब फिर वह अपने उसी रूप में मैदान में हैं। उस समय उन्हेंं सत्ता में पहुंचाने का सपना दिखाकर उनके विद्वान सलाहकारों ने कहा कि डटे रहो, बस मोदी गिरने ही वाले हैं।

नतीजा यह हुआ कि मोदी पहले से ज्यादा ताकतवर हो गए

नतीजा यह हुआ कि मोदी पहले से ज्यादा ताकतवर हो गए। इस बार यह धतकरम इसलिए हो रहा है कि कम से कम पार्टी के सिंहासन पर तो वापसी हो। राफेल अवतार में भी उन्हेंं अपनी पार्टी के नेताओं से शिकायत थी कि वह उनकी तरह चुनावी सभाओं में ‘चौकीदार चोर है’ का नारा नहीं लगाते। गत दिवस कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में फिर वही शिकायत की गई कि मोदी के खिलाफ पार्टी के दूसरे नेता नहीं बोल रहे। इस बार उनका साथ देने के लिए बहन प्रियंका भी थीं।

राहुल की विरोधी बातें: बाहर बोलते हैं मोदी कायर हैं, अंदर बोलते हैं उनकी पार्टी के नेता मोदी से डरते हैं

राहुल परस्पर विरोधी बातें एक साथ कर रहे हैं। बाहर बोलते हैं मोदी कायर हैं। अंदर बोलते हैं उनकी पार्टी के नेता मोदी से डरते हैं। आलम यह है कि पार्टी साथ नहीं दे रही, सहयोगी दल साथ नहीं दे रहे और बाकी विपक्ष साथ आने को तैयार नहीं। फिर भी उन्हेंं समझ में नहीं आ रहा।

जब पूरे देश में चीन विरोधी माहौल है तो राहुल प्रधानमंत्री के विरोध में खड़े हैं

जब पूरे देश में चीन विरोधी माहौल है तो राहुल प्रधानमंत्री के विरोध में खड़े हैं। वह और कुछ नहीं तो शहीदों के र्पािथव शरीर उनके घर पहुंचने पर जो हुजूम उमड़ रहा है, उसे ही देख लेते। यह हुजूम देखकर कोई भी जमीनी नेता समझ जाएगा कि देश की भावना क्या है? तो क्या विपक्ष को सरकार से सवाल नहीं पूछना चाहिए। जरूर पूछना चाहिए।

राहुल के बोलने का समय और लहजा दोनों गलत है

विपक्ष का यह संवैधानिक दायित्व है, पर यह याद रखना चाहिए कि राजनीति में कुछ बोलते समय तीन बातें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। पहली, किस समय। दूसरी, किस तरह यानी किस नीयत से। तीसरी, कौन यानी बोलने वाले की विश्वसनीयता। राहुल के बोलने का समय और लहजा दोनों गलत है यह नसीहत उन्हेंं शरद पवार ने दी। रही बात विश्वसनीयता की तो जिस नेता की बात उसकी पार्टी के लोग ही मानने को तैयार न हों और उसे इसकी बार-बार शिकायत करनी पड़े, उसकी कौन सुनेगा? कांग्रेस के लोगों को सोचना पड़ेगा कि क्यों हर बार यह धारणा बनती है कि जैसे उनका नेता दुश्मन देश के पाले में खड़ा हो। राजनीति में धारणा बहुत महत्वपूर्ण होती है।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

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