Nanaji Deshmukh Death Anniversary: नानाजी देशमुख के विचारों की प्रासंगिकता आज भी कायम

Nanaji Deshmukh Death Anniversary देशमुख के विचारों की प्रासंगिकता आज भी कायम है। उनके विचार और लोक कल्याण की दिशा में किए गए उनके अनेक कार्य तो सदैव प्रासंगिक रहेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 27 Feb 2020 10:24 AM (IST) Updated:Thu, 27 Feb 2020 10:24 AM (IST)
Nanaji Deshmukh Death Anniversary: नानाजी देशमुख के विचारों की प्रासंगिकता आज भी कायम
Nanaji Deshmukh Death Anniversary: नानाजी देशमुख के विचारों की प्रासंगिकता आज भी कायम

आदर्श तिवारी। Nanaji Deshmukh Death Anniversary राष्ट्र के उत्थान के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वालों की चर्चा होते ही एक नाम हमारे सामने आता है ‘भारत रत्न’ नानाजी देखमुख का। नानाजी देशमुख आज भी प्रासंगिक हैं तो उसका सबसे बड़ा कारण है उनका सामाजिक जीवन में नैतिकता और राष्ट्र सेवा के लिए संकल्पबद्ध होकर कठिन परिश्रम करना। उनके राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन की शुरुआत संघ के स्वयं सेवक के रूप में हुई थी।

संघ के प्रचारक के साथ वह जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में थे। आपातकाल के बाद देश में हुए लोकसभा चुनाव के उपरांत नानाजी देशमुख उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से लोकसभा सदस्य चुने गए थे। बतौर सांसद उन्होंने अनेक उल्लेखनीय कार्यों को अंजाम दिया। नानाजी ने बिना किसी भेदभाव के ग्रामीण अंचलों में शिक्षा और स्वास्थ्य की बुनियादी समस्याओं को दूर करने का काम किया।

यह बात सर्वविदित है कि उन्होंने ग्रामीण विकास का एक ऐसा आदर्श मॉडल प्रस्तुत किया जिसमें ग्रामीण भारत स्वावलंबन की तरफ अग्रसर हुआ। जैसे नानाजी ने गोंडा और चित्रकूट के पास सैकड़ों गावों की तस्वीर को बदल दिया। बीती सदी के आठवें दशक में समुद्री तूफान से ओडिशा और आंध्र प्रदेश के बड़े इलाके में मची भयंकर तबाही के बीच वहां जाकर लोगों की मदद करने के साथ-साथ अनेक गावों का पुनर्निर्माण करने का कार्य उन्होंने सफलतापूर्वक किया। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नानाजी देशमुख के ग्रामीण विकास से प्रेरणा लेते हुए ऐसे अनेक कार्यों की शुरुआत की है जिसमें नानाजी के विचारों की गहरी छाप दिखती है। मोदी सरकार ने देश के सभी गांवों में बिजली की सुविधा पहुंचाई, खादी की बिक्री आज अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है, आयुष्मान योजना के माध्यम से पांच लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज लोगों का हो रहा है।

किसानों के लिए किसान सम्मान निधि योजना की बात हो अथवा ई-मंडी के माध्यम से किसानों की फसल की ऑनलाइन बिक्री, सरकार ग्रामीणों की हर छोटी से छोटी समस्या का निराकरण करने के लिए प्रयासरत दिख रही है। हाल ही में नई दिल्ली में इंडिया गेट के निकट हुनर हाट का आयोजन किया गया था। इसमें देश भर के हस्तशिल्प कलाकारों को बड़ा मंच मुहैया कराया गया ताकि इसके जरिये छोटे-छोटे कारीगरों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके। इस आयोजन की कामयाबी के लिए स्वयं प्रधानमंत्री भी वहां पहुंचे थे। नानाजी स्वदेशी के प्रखर पक्षधर थे। ग्राम विकास के साथ-साथ उनका दर्शन यह भी कहता है कि स्वदेशी को बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है भारत के पास जो हुनर है उसका सही इस्तेमाल हो। वर्तमान परिपेक्ष्य में नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार भारत के कौशल को निखारने का काम कर रही है।

राजनीतिक शुचिता : वर्तमान समय में जब राजनीति सुख और साधन का जरिया बन गई हो, ऐसे में समूचे राजनीतिक दलों को उनके जीवन चरित्र के बारे में अध्ययन करना चाहिए। ऐसा इसलिए भी क्योंकि नानाजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अंगीकृत करने से राजनीति में फैली वैमनस्यता खत्म होगी। आपातकाल के बाद जब देश में चुनाव हुए और जनता पार्टी की सरकार बनी उस वक्त नानाजी देशमुख को मोरारजी देसाई सरकार में सक्रिय भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी गई, किंतु उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। नानाजी ने स्पष्ट कहा था कि साठ साल से अधिक आयु के सांसदों को राजनीति से दूर रहकर संगठनात्मक एवं सामाजिक कार्य करना चाहिए। इसका पालन उन्होंने अपने जीवनकाल के अंतिम समय तक किया।

ग्रामीण विकास की ओर आकृष्ट किया सत्ता का ध्यान : वर्ष 1972 में नानाजी देखमुख ने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना करके उन्होंने ग्रामीण समस्याओं पर शोध के साथ स्वावलंबन के विभिन्न कार्यों को प्रारंभ किया। राजनीति छोड़ने के करीब दो दशक बाद उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि राजनीति छोड़ने का उनका एक बड़ा कारण सरकार द्वारा ग्रामीण विकास से ज्यादा शहरी विकास को तवज्जो देना था।

ऐसे कई किस्से हैं जिसमें नानाजी ने अपने अदम्य साहस से कई गावों की तस्वीर बदली। नानाजी ने कई ऐसे कार्य शुरू किए जिनका उद्देश्य ग्रामीण आबादी का उत्थान करना था। उन्होंने गरीबी दूर करने के लिए कृषि, ग्रामीण स्वास्थ्य, ग्रामीण शिक्षा के साथ कुटीर उद्योग को भी बढ़ावा देने की दिशा में भगीरथ प्रयास किया। किसानों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने एक योजना की शुरुआत की जिसका उद्देश्य था ‘हर हाथ को काम और हर खेत में पानी’। चित्रकूट परियोजना के अंतर्गत नानाजी ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के पांच सौ से अधिक गांवों के पुनर्निर्माण करके एक अमिट छाप छोड़ी।

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