कई समस्याओं का समाधान हैं मोटे अनाज, छोटे किसानों का आधार स्तंभ बनने में भी सक्षम

अभी हमारे देश में अनाज के रूप में गेहूं एवं चावल का अधिकाधिक सेवन किया जाता है और इसीलिए अब तक उनके उत्पादन पर ही फोकस रहा है। वहीं गेहूं एवं चावल की तुलना में मिलेट्स कहीं अधिक पोषक अनाज हैं।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Mon, 30 Jan 2023 10:09 PM (IST) Updated:Mon, 30 Jan 2023 10:09 PM (IST)
कई समस्याओं का समाधान हैं मोटे अनाज, छोटे किसानों का आधार स्तंभ बनने में भी सक्षम
मोटे अनाज पोषक आहार के साथ ही जलवायु परिवर्तन का सामना करने में भी सक्षम हैं।

नरेंद्र सिंह तोमर : खाद्यान्न के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता हमारी आहार संबंधी चुनौतियों से निपटने का पहला पड़ाव थी। इसमें कोई संशय नहीं है कि विगत साढ़े आठ वर्षों में हमने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन में भारत सरकार, किसानों एवं कृषि विज्ञानियों के प्रभावी प्रयासों के बल पर अनाज उत्पादन में अधिशेष यानी सरप्लस की स्थिति हासिल की है। आज हमारे अनाज भंडार भरे पड़े हैं। इस बीच हमने अपनी दूसरी आहार संबंधी चुनौती पर भी विजय प्राप्ति की दिशा में कार्य आरंभ कर दिया है। यह दूसरी आहार चुनौती प्रत्येक भारतवासी की थाली में पर्याप्त पोषण से युक्त आहार पहुंचाने से जुड़ी है।

पोषण के पर्याय मोटे अनाज (मिलेट्स) के उत्पादन एवं उपभोग को बढ़ावा देना इसी रणनीति का हिस्सा है कि हम प्रत्येक देशवासी को पर्याप्त पोषक आहार उपलब्ध कराने में सक्षम हो सकें। इसी कड़ी में भारत के नेतृत्व में वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष के रूप मनाने की तैयारी की गई है। इसके माध्यम से पोषक अनाज को वैश्विक मंच पर लाने की पहल हुई है। मिलेट्स ही हमारे भविष्य का आहार हैं, जो एक साथ कई समस्याओं का हल हैं। यह भी एक स्तुत्य तथ्य है कि प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर ही संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है। इसके माध्यम से भारत का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा और पोषण में मिलेट्स के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाना, मिलेट्स की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार के लिए सभी हितधारकों को प्रेरित करना तथा अनुसंधान एवं विकास के लिए निवेश को प्रोत्साहित करना है।

अभी हमारे देश में अनाज के रूप में गेहूं एवं चावल का अधिकाधिक सेवन किया जाता है और इसीलिए अब तक उनके उत्पादन पर ही फोकस रहा है। वहीं गेहूं एवं चावल की तुलना में मिलेट्स कहीं अधिक पोषक अनाज हैं। वास्तव में मिलेट्स एक ‘स्वदेशी सुपरफूड’ है, जो प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों से परिपूर्ण होते हैं। वर्ष 2018 में भारत सरकार द्वारा गेहूं और चावल जैसे प्रचलित खाद्यान्नों की तुलना में मिलेट्स को उनकी पोषण संबंधी श्रेष्ठता के कारण ‘पोषक-अनाज’ के रूप में अधिसूचित किया गया था। पोषक-अनाज को बढ़ावा देने और मांग सृजन के लिए 2018 को ‘राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष’ घोषित करते हुए मनाया गया था।

आज आवश्यकता इस बात की है कि मिलेट्स को अपनी थाली का अनिवार्य अंग बनाने की मुहिम को एक जनांदोलन का स्वरूप दिया जाए। भारत सरकार ने इस दिशा में सुनियोजित रणनीति बनाते हुए बाजार, उपभोक्ताओं और किसानों को मिलेट्स के प्रति जागरूक और प्रेरित करने के लिए ठोस कदम उठाने प्रारंभ कर दिए हैं। मिलेट्स न केवल हमारी पोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करते हैं, अपितु जलवायु परिवर्तन का शमन करने एवं आवश्यक अनुकूलन, शुष्क एवं दुर्गम क्षेत्रों, जहां विकास लक्ष्यों को हासिल कठिन है, वहां के लघु एवं सीमांत किसानों के विकास में योगदान करने में भी मदद कर सकते है। भारत मिलेट्स का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन में 18 प्रतिशत का योगदान देता है। अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष मनाने के माध्यम से हमारा उद्देश्य मिलेट्स की घरेलू एवं वैश्विक खपत को बढ़ाना है। इस संबंध में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय दूसरे केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और अन्य हितधारक संगठनों के सहयोग से मिलेट्स के उत्पादन एवं खपत को बढ़ाने के लिए मिशन मोड पर काम कर रहा है।

खाद्य प्रणालियों का भविष्य छोटे एवं सीमांत किसानों की भागीदारी पर बहुत निर्भर करता है। विशेषकर तब जब उत्पादन में विविधीकरण और खाद्य सुरक्षा का प्रश्न हो। भारत में लगभग 86 प्रतिशत छोटे किसानों के पास पांच एकड़ से भी कम भूमि है, जो कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 47 प्रतिशत है। सरकार ने छोटे किसानों को सशक्त बनाने के लिए कई अनुकरणीय पहल की हैं, जिनमें इनपुट समर्थन, एफपीओ हस्तक्षेप, डिजिटलीकरण और कृषि अवसंरचना कोष सहित बहुत कुछ शामिल हैं। ऐसे में फसल प्रणाली में पोषक अनाज को शामिल करना, किसानों को पौष्टिक भोजन में आत्मनिर्भरता, कम इनपुट के साथ रिटर्न में वृद्धि, बेहतर बाजार समर्थन और जलवायु प्रभाव में सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

सरकार ने मिलेट्स उत्पादन की क्षमता का दोहन करने और उच्च मूल्य वाले घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसके समन्वय के लिए 21 जिलों में ‘एक देश-एक उत्पाद’ और ‘एक जिला-एक उत्पाद’ के रूप में मिलेट्स को नामित किया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन कार्यक्रम के तहत 14 राज्यों के 212 जिलों में मिलेट्स के लिए एनएफएसएम-पोषक अनाज घटक लागू किया जा रहा है। आज 500 से अधिक स्टार्टअप मिलेट वैल्यू चेन के रूप में काम कर रहे हैं। कर्नाटक, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और असम सहित पूर्वोत्तर के राज्यों ने मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए महती प्रयास किए हैं। कई राज्यों में मिलेट मिशन लांच किया गया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा अन्य संबद्ध मंत्रालयों के साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, आइआइएमआर, इंटरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फार सेमी-एरिड ट्रापिक्स, राज्य कृषि विश्वविद्यालय और अन्य संस्थान देश में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस स्वर्णिम अवसर का उपयोग कर रहे हैं।

समय के साथ यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी आहार संबंधी आदतों में बदलाव करें। कार्बोहाइड्रेड से ज्यादा ध्यान प्रोटीन, खनिज तत्वों, विटामिंस और फाइबर पर केंद्रित करने की जरूरत है। बदलती जीवनशैली में स्वस्थ शरीर के लिए आहार में मिलेट्स को जोड़ना आवश्यक एवं अपरिहार्य हो गया है। आइए, भारत सरकार के इस मिशन को जन आंदोलन का स्वरूप दें। हर थाली में पोषक अनाज पहुंचाने की दिशा में कदम उठाने के लिए सक्रियता दिखाएं।

(लेखक केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री हैं)

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