बीते चार वर्षों में काफी कुछ बदल गया जेएनयू, विरोध करना सही लेकिन हिंसा गलत

जेएनयू की न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में एक अलग पहचान रही है। यहां से पढ़ाई करने वाले छात्र आज देश और दुनिया में कई उच्‍च पदों पर बैठे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Mon, 13 Jan 2020 10:43 AM (IST) Updated:Mon, 13 Jan 2020 10:43 AM (IST)
बीते चार वर्षों में काफी कुछ बदल गया जेएनयू, विरोध करना सही लेकिन हिंसा गलत
बीते चार वर्षों में काफी कुछ बदल गया जेएनयू, विरोध करना सही लेकिन हिंसा गलत

डॉ. खुशबू गुप्ता। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एक ऐसा शैक्षणिक संस्थान है जो उच्च अकादमिक गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। यहां प्रवेश पाना बहुत मुश्किल माना जाता है। एक ऐसी जगह जहां हर किसी को अपना मत रखने तथा विरोध करने, वाद-विवाद और विचारों के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से किया जाता रहा है। एक ऐसा परिवेश जहां अध्ययन के लिए मध्यरात्रि में भी छात्राएं पुस्तकालय जाने में सुरक्षित महसूस करती हैं। इस जगह से ही शिक्षा ग्रहण करके निकले छात्र आज देश के उच्च पदों पर कार्यरत हैं।

इसी संदर्भ में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट किया, ‘हमारे समय में यह विश्वविद्यालय ऐसा नहीं था। यह बहस और विचारों के लिए जाना जाता था, हिंसा के लिए नहीं।’ पिछले करीब चार वर्षो से यह विश्वविद्यालय विवादित स्थान बना हुआ है। आखिर ऐसी गतिविधियां इस शैक्षणिक संस्थान में क्यों घटित हो रही हैं? अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी नारे लग रहे हैं, हिंसात्मक घटनाएं हो रही हैं। ऐसी स्थिति को देख बहुत दुख होता है। संयोगवश मुझे भी वहां पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ है। जेएनयू के बारे में यही जाना कि ऐसा गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक संस्थान, ऐसा वातावरण भारत में कहीं नहीं है। हमें गर्व होता था कि हम ऐसे संस्थान से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

बीते कुछ समय से वहां फीस बढ़ोतरी के विरोध में छात्रों द्वारा धरना प्रदर्शन किया जा रहा था जिसके चलते सभी प्रशासनिक अकादमिक कार्य ठप है। चूंकि वहां सेमेस्टर सत्र चलता है जिसके लिए हर छह महीने में छात्रों को पंजीकरण करना पड़ता है ताकि वो अगले सेमेस्टर के लिए पंजीकृत हो सकें। धरना-प्रदर्शन के दौरान छात्रों द्वारा यह भी कहा गया कि हम सड़कों पर इसलिए उतरे हैं, क्योंकि शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार सभी वर्गो को है और अगर फीस बढ़ा दी जाएगी तो ऐसे लोग शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो जाएंगे, जो बढ़ी हुई फीस देने में सक्षम नहीं हैं और जब आम छात्र आगे की पढ़ाई के लिए पंजीकरण करने के लिए अकादमिक बिल्डिंग गए तो वामपंथी छात्रों द्वारा उन्हीं छात्रों को मारा-पीटा गया जिनके लिए वो धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। इस घटना के दो दिन पहले से इंटरनेट सुविधा को भी बाधित किया गया ताकि पंजीकरण न हो सके और प्रशासनिक कार्य ठप रहे। असहिष्णुता और इस तरह की तानाशाही से पूरे कैंपस का वातावरण खराब किया जा रहा है और शिक्षा ग्रहण करने आए छात्रों को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है।

जो भी हिंसात्मक और बर्बरतापूर्ण घटना कैंपस में बीते दिनों हुईं, उसे नहीं होना चाहिए था। अपने हितों के लिए आवाज उठाना अच्छी बात है, लेकिन हिंसा का सहारा लेकर अपनी बात मनवाना अक्षम्य है। ऐसी घटनाएं देश के अन्य विश्वविद्यालयों को टारगेट करके विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक रोटियां सेकीं जा रही हैं। मामला जेएनयू में बढ़े फीस का था, लेकिन इस घटना के बाद देश के अन्य इलाकों में छात्रों द्वारा देश विरोधी पोस्टर लगाए गए हैं। ये मुद्दे कहां से आ गए? क्या वे अलगाववादियों को अवसर प्रदान कर रहे हैं?

जहां भारत को वैश्विक पटल पर एक महान शक्ति के रूप में जाना जाने लगा, विकास के पथ पर लाया जा रहा, वहीं अन्य राजनीतिक दलों द्वारा राष्ट्रीय राजनीति की दिशा बदलने का प्रयास किया जा रहा है। राजनीति में पक्ष-विपक्ष, सहमति-असहमति, विरोध में बयानबाजी सही है, लेकिन हिंसा को बढ़ावा देना या शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों को बरगलाना, ये किस स्तर की राजनीति है? देश की राजनीति को किस तरफ ले जाया जा रहा है? राष्ट्रीय हितों जैसे मुद्दों जिससे भारत का विकास हो सके, उनसे ध्यान हटाया जा रहा है, देश निर्माण के बजाय देश को तोड़ने का कार्य किया जा रहा है जो दुखद और निंदनीय है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय मेंअसिसटेंट प्रोफेसर हैं)

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