देश के सबसे पिछड़े 115 जिलों की स्थिति में बदलाव लाए बिना उच्च विकास दर बनाए रखना संभव नहीं

आने वाले दिनों में आकांक्षी जिला कार्यक्रम से जिलों की तस्वीर बदल जाएगी। इस योजना ने आम लोगों के जीवन को प्रभावित किया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 04 Jul 2019 01:17 AM (IST) Updated:Thu, 04 Jul 2019 01:17 AM (IST)
देश के सबसे पिछड़े 115 जिलों की स्थिति में बदलाव लाए बिना उच्च विकास दर बनाए रखना संभव नहीं
देश के सबसे पिछड़े 115 जिलों की स्थिति में बदलाव लाए बिना उच्च विकास दर बनाए रखना संभव नहीं

[ अमिताभ कांत ]: एक लोकसेवक के रूप में लगभग चार दशकों की सेवा के दौरान मैंने कई योजनाओं और नीतियों को आते-जाते देखा है, लेकिन उनमें बहुत कम ऐसी रही हैं जिन्होंने आम लोगों के जीवन को इतना प्रभावित किया हो, जितना कि आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी) ने किया है। 49 संकेतकों पर भारत के सबसे कम विकसित जिलों का रूपांतरण करने के लिए ताजा आंकड़ों के आधार पर उन जिलों में प्रतिस्पर्धी भावना पैदा करना और जिलों के प्रदर्शन के मुताबिक उनकी रैंकिंग करना इस कार्यक्रम के पीछे का विचार है। ये वे जिले हैं जो भारत के सबसे पिछड़े जिले हैं, लेकिन इस कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने इन्हें भारत के आकांक्षी जिले नाम दिया है। इन जिलों की स्थिति में बदलाव लाए बिना लंबे समय तक निरंतर उच्च विकास दर बनाए रखना भारत के लिए संभव नहीं है।

आकांक्षी जिलों का विकास

एडीपी के लिए हमने 27 राज्यों में 115 जिलों की पहचान की है जिनमें व्यापक परिवर्तन के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। इनमें से 35 जिले नक्सल से पीड़ित हैं। एडीपी ने उन पांच आधार स्तंभों की पहचान की है जिनके सहारे यह परिवर्तन किया जाना है। ये हैं-स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि एवं जल संसाधन, बुनियादी ढांचा और वित्तीय समावेशन एवं कौशल विकास। उद्देश्य यह है कि इन जिलों को तीन साल के भीतर राज्य के सर्वश्रेष्ठ जिले के स्तर पर लाना और पांच साल में देश के सर्वश्रेष्ठ जिले की बराबरी पर लाना है। पिछले एक साल के दौरान आकांक्षी जिलों के लिए किए गए उपायों के परिणाम आश्चर्यजनक रूप से उत्साहवर्धक रहे हैं।

अच्छे और खराब जिलों की पहचान

प्रत्येक संकेतक के लिए हमने पांच सबसे अच्छे और पांच सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले जिलों की पहचान की है। स्वास्थ्य के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले पांच जिलों में पहली तिमाही में पंजीकृत गर्भवती महिलाओं की हिस्सेदारी 35-40 प्रतिशत के औसत से बढ़कर 80 प्रतिशत हो गई। अस्पताल में प्रसव 50 प्रतिशत के औसत से बढ़कर 93 प्रतिशत हो गया। जन्म के एक घंटे के भीतर नवजात शिशुओं का स्तनपान 45-50 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 100 प्रतिशत हो गया। पूरी तरह से टीकाकरण वाले शिशुओं का अनुपात 20-50 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 90 प्रतिशत हो गया।

बिहार का बांका जिला देश में पहले स्थान पर

इसके अलावा विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कई जिलों ने नए समाधान भी प्रस्तुत किए हैं। जैसे बिहार के बांका जिले को लीजिए, जहां स्नेह कार्यक्रम के माध्यम से मातृ और शिशु स्वास्थ्य में काफी सुधार हो रहा है। आशा, आंगनबाड़ी और एएनएम जैसे सामुदायिक स्तर के कार्यकर्ताओं के जरिये लागू किए गए इस कार्यक्रम से प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत जिले में टीकाकरण कवरेज बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया है जो 70 प्रतिशत से भी कम था। इस प्रकार दूसरी और तीसरी तिमाही के पंजीकरण में यह जिला भारत में पहले स्थान पर रहा।

शिक्षा पर जोर

शिक्षा के मोर्चे पर जोर इस बात पर रहा कि शिक्षण परिणाम बेहतर हों। हालांकि इस दिशा में अभी एक लंबा रास्ता तय किया जाना है, लेकिन कक्षा तीन में छात्रों के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ है जो प्राथमिक स्तर पर सुधार का ही परिणाम है। कक्षा तीन, पांच और आठ में भाषा और गणित विषयों में मिलने वाले औसत अंक में भी काफी वृद्धि हुई है। यह इसलिए संभव हो पाया कि तीसरे पक्षों ने हर तीन महीने में औचक परीक्षाएं लीं। इससे शिक्षक और अभिभावक इसके लिए प्रेरित हुए कि वे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लें।

स्कूलों में शौचालय और बिजली

हमारे पास 53 जिलों में माध्यमिक स्तर के स्कूलों में लगभग सभी जगहों पर लड़कियों के लिए शौचालय हैं और 66 जिलों के माध्यमिक विद्यालयों में बिजली उपलब्ध है। जहां तक कृषि और जल संसाधन क्षेत्र की बात है, मनरेगा और सूक्ष्म सिंचाई के तहत जीर्णोद्धार किए गए जलाशयों की संख्या तेजी से बढ़ी है।

अटल पेंशन योजना

इसी तरह वित्तीय समावेशन के लिए मुद्रा ऋण पाने वालों और अटल पेंशन योजना के लाभार्थियों की संख्या दोगुनी हो गई है। बुनियादी ढांचा सृजन को देखें तो आज लगभग सभी जिलों में घरेलू बिजली कनेक्शन उपलब्ध हैं, 100 से अधिक जिलों में पारिवारिक शौचालय हैं और 40 जिलों में पेयजल की उपलब्धता 100 प्रतिशत है।

ग्राम स्वराज अभियान

आकांक्षी जिलों में दो महीने के लिए शुरू किए गए ग्राम स्वराज अभियान के माध्यम से कई योजनाओं के लाभ सभी परिवारों को उपलब्ध कराए जाने से वित्तीय समावेशन, स्वास्थ्य और रसोई गैस कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी प्रमुख योजनाओं की स्थिति काफी सुधरी है।

जीवन की गुणवत्ता में सुधार

इसे समझना होगा कि यह योजना इतने कम समय में इतना अधिक कैसे हासिल कर पाई और यह पिछली योजना से कैसे अलग है? सबसे पहले, एडीपी के तहत जिला प्रशासन से उन कार्यकलापों के संबंध में चर्चा की गई जो आम नागरिक के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं और जिनसे उनकी आर्थिक उत्पादकता भी बढ़ती है। दूसरा, वास्तविक समय में ट्रैक किए गए परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। एक लाइव डैशबोर्ड है जो डाटा रिकॉर्ड करता है और यह सही मायने में नीति निर्माण और प्रशासन में सहायता करता है।

निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी

हमारे पास वाट्सएप समूह भी हैं जिनमें जिला प्रशासन अक्सर प्रमुख कार्यों की जानकारी देते हैं। इसके चलते सार्वजनिक सेवाओं की उपलब्धता में कुशलता बढ़ रही है। तीसरा, यह सही मायने में सहयोग वाला काम है। इस पहल से केंद्रीय प्रशासन, राज्य तंत्र और जिला प्रशासन को साथ लाने में मदद मिली है। इसके अलावा हमें निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी भी मिल रही है जो अपनी पसंद के जिलों में कार्य कर रहा है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम इन जिलों में स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में अपने कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व संबंधी संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं।

प्रतिस्पर्धा की भावना

चौथा, सबसे अच्छा और सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले जिलों का नाम सार्वजनिक करने से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा हुई है। सबसे अच्छी बात यह है कि प्रतिस्पर्धा प्रशासनिक प्रभारियों के बीच है। ये वे लोग हैं जो जमीनी स्तर पर बदलाव ला सकते हैं। पांचवां, प्रभाव का आकलन घरेलू स्तर पर किया जाता है और इसकी सूचना सरकारी स्नोतों से एकत्र नहीं की जाती है। तीसरे पक्ष के सत्यापन से जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रदर्शन में सुधार होता है। इस सत्यापन के संबंध में हमारे साथ काम करने वाले कई धर्मार्थ संगठन हैं।

युवाओं को रोजगार

छठी बात, हम बदलाव लाने के लिए उद्यमी युवा आबादी को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं। स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में एडीपी से इन जिलों की तस्वीर बदल जाएगी। चूंकि ये भारत के अल्प-विकसित क्षेत्र हैं इसलिए इनकी सफलता भारत के समावेशी विकास की सफलता की कहानी है।

( लेखक नीति आयोग के सीईओ हैं )

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