मोदी-शाह के ऐतिहासिक काम का आजाद भारत के इतिहास में दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है

गृह मंत्री ने संसद में और प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में यह कहा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विकास करके दिखाएंगे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 10 Aug 2019 12:36 AM (IST) Updated:Sat, 10 Aug 2019 12:37 AM (IST)
मोदी-शाह के ऐतिहासिक काम का आजाद भारत के इतिहास में दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है
मोदी-शाह के ऐतिहासिक काम का आजाद भारत के इतिहास में दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है

[ प्रदीप सिंह ]: कुशल और सफल नेतृत्व के बारे में चाणक्य ने कहा है, ‘जब किसी काम को करना शुरू करो तो असफलता से मत डरो और उसे छोड़ो मत। शासक के अंदर असफलता का डर नहीं होना चाहिए। काम करते रहो परिणाम की चिंता मत करो।’ जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाते समय शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह चाणक्य की इसी नीति पर चले। इस मुद्दे पर देश पिछले सात दशकों से एक ही रास्ते पर चलते-चलते बंद गली में पहुंच गया था। इस जोड़ी ने ऐसा ऐतिहासिक काम किया है जो पांच अगस्त से पहले अकल्पनीय माना जाता था। आजाद भारत के इतिहास में इसका कोई सानी नहीं है।

देश 70 साल से चक्रव्यूह में फंसा था

अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर देश सत्तर साल से एक चक्रव्यूह में फंसा हुआ था। इस चक्रव्यूह को तोड़ना तो दूर इसको तोड़ने के बारे में सोचने से भी देश की सरकार और सत्तारूढ़ दल कतराता था। इस अनुच्छेद से सूबे के गिने हुए लोगों का निहित स्वार्थ जुड़ा था। अभिनेता मनोज वाजपेयी की एक फिल्म आई थी ‘अय्यार’। इसमें उनका फौजी अफसर पूछता है कि जब सब लोग जानते हैं कि कश्मीर समस्या का हल क्या है तो इसे हल क्यों नहीं करते? मनोज वाजपेयी कहते हैं कि जिस समस्या से सबके स्वार्थ जुड़े हों, उसे कोई हल नहीं करना चाहता। मोदी और शाह ने संसद में एक संकल्प के जरिये इसे तोड़ दिया।

मोदी-शाह ने बनाया असंभव को संभव

मोदी और शाह ने जो काम किया उसका असर देशवासियों पर तारी होने में अभी वक्त लगेगा। उसकी वजह यह है कि पूरा देश मान चुका था कि यह काम करने का साहस कोई जुटा नहीं पाएगा। मोदी से इसकी अपेक्षा थी कि शायद वह कुछ करें, लेकिन अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने कुछ नहीं किया तो लोगों ने इसे प्रारब्ध समझकर स्वीकार कर लिया। दूसरे कार्यकाल के लिए उन्हें जनादेश देते समय मतदाता ने मान लिया था कि मोदी भी यह काम नहीं कर पाएंगे।

ऐतिहासिक फैसले पर भावना की अभिव्यक्ति होनी चाहिए

वास्तव में ऐसी दो-तीन पीढ़ियां हैं जिन्होंने मान लिया था कि अपने जीवनकाल में वे यह होते हुए नहीं देख पाएंगे। यही कारण है कि गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में लग रहे वंदेमातरम् और भारत माता की जय के नारे को रोका नहीं। वह सदन में खड़े हुए और कहा, ‘सत्तर साल की टीस जा रही है तो भावना की अभिव्यक्ति होनी चाहिए।’ प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का जो ऐतिहासिक काम किया उसका आजाद भारत के इतिहास में दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है। यह ऐसा सुखद आश्चर्य है जो ज्यादातर लोगों के लिए अकल्पनीय था और अब भी कई लोगों को यकीन नहीं हो रहा कि यह सचमुच हो गया।

फैसले के कदम की गोपनीयता पर सवाल

जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर पल रहे कुछ दल और बुद्धिजीवी इस कदम की गोपनीयता पर सवाल उठाकर इससे अलोकतांत्रिक बताने का प्रयास कर रहे हैं। सरकार के तरीके से एक बार फिर चाणक्य नीति याद आती है। चाणक्य ने मंत्र (नीति) गुप्ति का सिद्धांत दिया था। इसे मंत्र संरक्षण भी कहा गया है। इसके मुताबिक राजा को अपनी नीति का संरक्षण कछुए की तरह करना चाहिए। जैसे कछुआ अपने खोल से उतना ही अंग निकालता है जितने की जरूरत होती है उसी तरह जिसको जितना काम दिया गया है उसे उतना ही पता होना चाहिए।

कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा?

अमरनाथ यात्रा रोकी गई तब से लोग कयास लगा रहे थे कि क्या होने वाला है? अब जब अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाकर और सूबे को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठित कर केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया गया तो कहा जा रहा है कि इससे राज्य की हालत बिगड़ जाएगी। ऐसे लोगों से कोई पूछे कि सत्तर साल में राज्य के हालात सुधरे कब थे। क्या तब जब एक तिहाई से ज्यादा कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में चला गया, जब साढ़े तीन लाख हिंदुओं को घाटी से निकाल दिया गया, जब मस्जिदों से एलान हुआ कि अपनी जायदाद और औरतों को छोड़कर चले जाओ तब या जब सैयद अली शाह गिलानी निजामे मुस्तफा लाने की बात कर रहे थे अथवा जब सूफी कश्मीर को जिहादी बना दिया गया या फिर जब नारे लग रहे थे कि कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा? पिछले तीन दशक में करीब 42 हजार लोग मारे गए। क्या इसे सुधरे हुए हालात का नतीजा कहें?

अनुच्छेद 370 और 35 ए पर तर्कपूर्ण बहस नहीं

दरअसल विरोधियों के पास कोई तर्क है नहीं। संसद के दोनों सदनों में दो दिन इस पर बहस हुई। एक भी वक्ता यह नहीं बता पाया कि अनुच्छेद 370 और 35 ए ने कश्मीर के लोगों को क्या दिया या इस अनुच्छेद को बनाए रखने का औचित्य क्या है? जो अस्थायी था उसे स्थायी क्यों बनाया जाए। पांच अगस्त को जब अमित शाह ने इस अनुच्छेद के एक को छोड़कर बाकी सभी प्रावधानों को हटाने का संकल्प और जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन का विधेयक संसद में पेश किया तो एक ऐतिहासिक गलती को सुधारने का ही शुभारंभ नहीं हुआ।

कांग्रेस में विघटन का बीजारोपण

जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और भारत के साथ वास्तविक मायने में एकीकरण और देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस में विघटन का बीजारोपण भी हो गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं जनार्दन द्विवेदी, भुवनेश्वर कलिता, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेंद्र हुडा, मिलिंद देवड़ा, रायबरेली की विधायक अदिति सिंह और कर्ण सिंह ने पार्टी के बजाय सरकार के समर्थन का विकल्प चुना।

अमित शाह का राजनीतिक कद कई गुना बढ़ा

इतिहास आपको इस बात के लिए याद नहीं रखता कि आपकी पैदाइश क्या है? इतिहास इस बात कोे याद रखता है कि आपने किया क्या? कश्मीर समस्या से निपटने के लिए सरकार ने जो कदम उठाया वह मोदी और शाह ही सोच सकते थे। संसद के दोनों सदनों में अमित शाह ने जिस तरह पूरी बहस का जवाब दिया उससे उनका राजनीतिक कद कई गुना बढ़ गया है। अभी तक देश ने उनके संगठन का कौशल देखा था। अब उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता का लोहा मनवा लिया है।

मोदी-शाह के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है शांति व्यवस्था की

अब इस जोड़ी के सामने दूसरी बड़ी चुनौती घाटी के लोगों को यह समझाने की है कि सरकार ने जो कदम उठाया है वह उनके हित में है। यह चुनौती इसलिए बड़ी है, क्योंकि घाटी और उसके बाहर के कुछ राजनीतिक तत्वों की मंशा और कोशिश है कि शांति व्यवस्था बिगड़े। इसमें उनका साथ देने के लिए लिबरल मीडिया भी लामबंद है। हर तरह की अफवाह फैलाने की कोशिश हो रही है। इन तत्वों की पूरी ताकत इसमें लगी है कि संसद में मिली कामयाबी सड़क पर नाकामी में बदल जाए। यह चुनौती सरकार के लिए एक अवसर है। इसकी सफलता में विकास की अहम भूमिका होगी। शायद इसीलिए गृह मंत्री ने संसद में और प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में यह कहा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विकास करके दिखाएंगे।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैैं )

अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप

chat bot
आपका साथी