India China Trade News: फिलहाल कुछ हद तक चीन से व्यापार जारी रखना हमारी मजबूरी

India China Trade News विनिमय दर एक दोधारी तलवार है सस्ता रुपया हमारे निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक बनाएगा जबकि मजबूत रुपया मध्यवर्ती आयात को सस्ता करेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 11 Jul 2020 10:52 AM (IST) Updated:Sat, 11 Jul 2020 10:54 AM (IST)
India China Trade News: फिलहाल कुछ हद तक चीन से व्यापार जारी रखना हमारी मजबूरी
India China Trade News: फिलहाल कुछ हद तक चीन से व्यापार जारी रखना हमारी मजबूरी

डॉ. विकास सिंह। India China Trade News वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू होने के करीब एक दशक बाद उसके कुछ सार्थक नतीजे दिखने लगे और कुछ खुशहाली आई तो लोग उसके प्रति मोहित दिखे, लेकिन इसी दौर में चीन ने एक बड़ी तस्वीर की कल्पना की, जो नवाचार, उत्पादकता, अनुसंधान और विकास पर आधारित थी। इसी बूते उसने खुद को दुनिया की कार्यशाला के रूप में स्थापित किया और वहां भरपूर समृद्धि आई। दूसरी ओर हमने देश में बाजार तो बड़ा खड़ा किया, लेकिन वह आयातित सामग्री पर ही निर्भर है, लिहाजा फिलहाल कुछ हद तक चीन से व्यापार जारी रखना हमारी मजबूरी भी है

दुनिया में विनिर्माण क्षेत्र सबसे तेजी से बदला: भारत से दुनिया के देशों का व्यापार अनंत काल से चल रहा है। उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में हम दुनिया में अग्रणी रह चुके हैं। लेकिन बीते कुछ दशकों के दौरान दुनिया में उद्योग और व्यापार के नियम बदले जिससे भारत समेत अधिकांश देशों में बहुत कुछ बदलता गया। दुनिया में विनिर्माण क्षेत्र सबसे तेजी से बदला। इसकी भूमिका भी बदल गई है। दरअसल विनिर्माण क्षेत्र प्रगति को कई गुणा बढ़ाती है, रोजगार सृजित करती है और विकास को संचालित करती है। इसके और भी कई योगदान हैं। यह उत्पादकता, नवाचार और व्यापार को बढ़ावा देती है। सेवा क्षेत्र को पोषित करती है और धन सृजित करती है। निर्माताओं के पास पर्याप्त नए अवसर होंगे, तो निश्चित तौर पर वे नवाचार से ऊर्जान्वित होंगे और एक नए वैश्विक उपभोक्ता वर्ग का उदय होगा।

भारत और चीन दोनों इंजन हैं तथा विकास के संचालक हैं: इस बीच वैश्विक कारोबार के दौर में बहुत कुछ बदल गया है। आज दुनिया के अधिकांश देशों के लोग चीनी वस्तुओं के बहिष्कार पर अड़े हैं। कई लोगों ने इस दिशा में कदम भी उठाया है। पूरी दुनिया इस पर चिंतित है। आज विश्व अर्थव्यवस्था का पांचवां हिस्सा जो दुनिया भर में 40 प्रतिशत सामग्रियों की आपूर्ति करता है, उसका बहुत कुछ संदेह के घेरे में है। लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं आपस में जुड़ी हुई हैं। भारत और चीन दोनों इंजन हैं तथा विकास के संचालक हैं व दोनों देश अगले 50 वर्षों तक आगे बढ़ने की क्षमता रखते हैं।

क्या करना चाहिए हमें : बहिष्कार के आवेश से प्रेरित हमारे नीति-निर्माता आसान और लोकप्रिय उपाय चुन सकते हैं यानी चीनी उत्पादों को प्रतिबंधित करने और भारतीय उत्पादों को अपनाने पर जोर दे सकते हैं। चीन में बने उत्पादों के –बहिष्कार- से एक भावनात्मक उत्साह पैदा हुआ है। लेकिन अधिकांश लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि ये सस्ते आयात हमारे निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाते हैं। हमें कड़वे तथ्यों का सामना करना चाहिए। ऐसा क्यों है कि वैश्विक व्यापार में हमारा हिस्सा महज दो प्रतिशत ही है?

चीन ने हमारे घरेलू उत्पादन के लगभग 500 श्रेणियों और 3,000 उत्पादों को बदल दिया है, जिसमें मोबाइल फोन, खिलौने और कई घरेलू सामान शामिल हैं। इन वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने से हमें कोई नुकसान नहीं होगा। यदि हमने फार्मा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकम्यूनिकेशन से संबंधित वस्तुओं पर पाबंदी लगाई तो नतीजा हमारे पक्ष में नहीं होगा और ये उद्योग बुरी तरह से प्रभावित होंगे। इतना ही नहीं, लाभ अर्जित करने वाले करीब 15 प्रतिशत तक एमएसएमई खत्म हो जाएंगे जिससे लाखों लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है। इससे उपभोक्ताओं को भी नुकसान होगा। सस्ते आयात पर प्रतिबंध लगाने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है जिससे मध्यम वर्ग को नुकसान हो सकता है और गरीब सस्ती वस्तुओं से वंचित हो सकते हैं।

हमारी अर्थव्यवस्था नीति परिवर्तन के मोड़ पर खड़ी: मजबूत अर्थव्यवस्था और सक्षम नेतृत्व को बनने में समय लगता है। चीन ने दशकों पहले इसकी योजना बनाई और फिर उसे बेहतर तरीके से लागू भी किया। यह सौभाग्य की बात है कि चीन ने ऐसे समय में वैश्विक वर्चस्व की योजना बनाई है, जब भारत उससे बेहतर स्थिति में है। हमारी अर्थव्यवस्था नीति परिवर्तन के मोड़ पर खड़ी है। हम उपभोक्ता आधारित और घरेलू रूप से निर्भर हैं। जनसांख्यिकी हमारे अनुकूल है और लोकतंत्र मजबूत है। हालांकि -मेक इन इंडिया- की स्थिति हमारे लिए एक बड़ा सबक होना चाहिए। आधुनिक विनिर्माण को विशेष और अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता है। हमारे श्रम कानून पुराने और अव्यावहारिक हैं। कर संरचना काफी जटिल है। भूमि अधिग्रहण राजनीतिक प्रभाव और जटिलताओं से घिरा हुआ है। व्यापारिक बातचीत के प्रति सरकार की सोच उदासीनता व संकोच से भरी है और कई बार यह आक्रामक तो दिखती है, लेकिन उसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकल पाता है।

हमारे उद्योग जोखिमपूर्ण तरीके से लाभ उठाते हैं। सेवा के सर्वश्रेष्ठ विकल्प के साथ कौशल पारिस्थितिक तंत्र समय से दो दशक पीछे है और बाकी अमेरिकी बाजार के अनुरूप काम कर रहे हैं। यहां तक कि सबसे पसंदीदा –वाइट कॉलर- और -कॉल सेंटर्स- के साथ वैश्विक तालमेल कायम कर सकने लायक –प्रशिक्षण और तकनीक- का भी अभाव है। हमें लगभग 10 क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल है और इन पर ही ध्यान देना चाहिए। एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि मात्र छह क्षेत्रों में ही यदि हम बेहतर तरीके से काम करें, तो पर्याप्त सरकारी सहायता के बूते कम से कम चालीस लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकेगा और चीनी आयात पर 70 प्रतिशत तक निर्भरता कम होगी। हमें यह जानना होगा कि उद्योग क्षेत्र में प्रभावी सहयोगियों और आपूर्तिकर्ताओं की कमी प्रतिस्पर्धा को कम करती है, मूल्य घटाती है और विकास की संभावना को क्षीण करती है। इसी तरह से वे विनियामक बाधाओं का सामना करते हैं और व्यवस्था में परिवर्तन के साथ नीतियों में भी बदलाव लाने के वाहक बनते हैं।

आज रुपया कहीं अधिक कीमती है और हमें उचित कदम उठाने की जरूरत है। विनिमय दर एक दोधारी तलवार है, सस्ता रुपया हमारे निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक बनाएगा, जबकि मजबूत रुपया मध्यवर्ती आयात को सस्ता करेगा। यह एक नाजुक संतुलन है। हमारा लक्ष्य भारत को विनिर्माण, डिजाइन और नवाचार के क्षेत्र में एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना होना चाहिए। इसके लिए हमने प्रयास भी किया है और कई बार चीजों को पटरी पर लाने में सफल भी हुए हैं। इसे और अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए हमारे नेतृत्व को नई राह तैयार करने की जरूरत है। ऐसे में जब प्रधानमंत्री – प्रारंभ से निर्माण- शुरू करने की बात कहते हैं तो उन्हें इस बात पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए कि इसका समाधान मूल रूप से किस तरह से किया जा सकता है। ऐसा होने पर भारत निश्चित रूप से विकसित देशों की श्रेणी में आ सकता है। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। देश का नेतृत्व अकेले ऐसा नहीं कर सकता है। इसके लिए साहस, कौशल तथा ज्ञान और हर कोने से भारी समर्थन की आवश्यकता होगी। दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है और अगर नेतृत्व चाहे तो इसे हासिल करना बहुत मुश्किल भी नहीं है।

[मैनेजमेंट गुरु तथा वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ]

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