श्रम का महत्व

प्राय: जो हमारे अत्यधिक नजदीक होता है या जो हमसे अत्यधिक दूर होता है उसकी हम उपेक्षा कर देते हैं। हमारा जीवन हमारे अति निकट है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 16 Jun 2017 12:49 AM (IST) Updated:Fri, 16 Jun 2017 12:49 AM (IST)
श्रम का महत्व
श्रम का महत्व

जीवन प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष है। इसे जानने, समझने व हस्तगत करने के अलावा और किसी भी चीज की जरूरत नहीं। प्राय: जो हमारे अत्यधिक नजदीक होता है या जो हमसे अत्यधिक दूर होता है उसकी हम उपेक्षा कर देते हैं। हमारा जीवन हमारे अति निकट है और यही वजह है कि वह हमसे उपेक्षित होता है। हम इसे जानने और समझने की कोशिश नहीं करते। हम इसके लिए थोड़ा भी समय नहीं निकाल पाते। यदि हमें स्वयं को समझना और जानना है तो सबसे पहले हमें अपने जीवन के नजदीक आना होगा और इसके लिए उपासना, आत्मबोध और तत्वबोध को जानने का प्रयास करना होगा। थोड़ा समय अपने बारे में सोचें कि हम क्या हैं? हम ऐसे क्यों हैं? हम क्या कर सकते हैं? हमारे भीतर क्या संभावनाएं हैं? उन्हें किस तरह से निखारना है? इन सवालों का जवाब पाने के लिए एक आदर्श विधि-व्यवस्था है जिसमें चार बातें हैं-श्रम, सेवा, सदाचार और स्वाध्याय। श्रम से हमें यह अहसास होता है कि हम जीवित हैं। जो श्रम नहीं करता वह मृत के समान है। जिस दिन व्यक्ति पूरे दिन श्रम करता है उस दिन शाम को वह आत्मगौरव का अनुभव करता है। स्वयं से उसका परिचय होता है। श्रम चाहें छोटा हो या बड़ा, महत्वपूर्ण है।
जब हम श्रम करने के बारे में सोचते हैं कि जब हम अमुक काम करेंगे तो हमारा श्रम सार्थक होगा, लेकिन जीवन हमारे समक्ष जो भी परिस्थितियां और चुनौतियां प्रस्तुत करे उनसे हमें घबराकर श्रम करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। ऐसा करने पर ही हमारा जीवन उन्नति का द्वार बनता है। जहां पर हम खड़े हैं वही दरवाजा हमारे लिए प्रगति का द्वार बन जाता है। श्रम ऐसी कुदाल है जिसके माध्यम से हम अपने व्यक्तित्व की विभूतियों को खोद सकते हैं। श्रम के संदर्भ में एक सहज प्रश्न उठता है कि श्रम तो तमाम लोग करते हैं, लेकिन उन्हें कोई हीरे-जवाहरात नहीं मिलते। इसका कारण है श्रम के साथ उनकी भावना और मनोयोग नहीं जुड़ता है। उस श्रम के साथ उनकी बुद्धि और विवेक नहीं जुड़ता है। श्रम तब और भी व्यापक और आध्यात्मिक बन जाता है और व्यक्तित्व में प्रगति के द्वार खोलता है जब श्रम सेवा में तब्दील हो जाता है। जब हम सेवा के माध्यम से श्रम करते हैं तो हम निजी जीवन को समृद्ध बनाते हैं और अपने व्यक्तित्व को व्यापक बनाते हैं।
[ डॉ. सुरचना त्रिवेदी ]

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