वैश्विक लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट, प्रवासियों से प्राप्त आमदनी पर प्रभाव

विश्व बैंक ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वर्तमान वैश्विक लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट बना हुआ है और बाहर से भेजे जाने वाले धन में लगभग 20 प्रतिशत तक गिरावट की आशंका है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 01 May 2020 12:10 PM (IST) Updated:Fri, 01 May 2020 12:10 PM (IST)
वैश्विक लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट, प्रवासियों से प्राप्त आमदनी पर प्रभाव
वैश्विक लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट, प्रवासियों से प्राप्त आमदनी पर प्रभाव

[विवेक ओझा]। कोरोना महामारी का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अनेक तरीकों से संभावित असर सामने आ रहा है। ऐसे में विश्व बैंक ने भी हाल ही में दक्षिण एशिया को विशेष रूप से रेखांकित करते हुए रेमिटेंस यानी बाहर से आने वाले धन के संबंध में चिंता जताई है। द माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ नामक फ्लैगशिप रिपोर्ट में विश्व बैंक ने इस आपदा की घड़ी में वैश्विक और क्षेत्रीय आर्थिक विकास की गतिशीलता के वाहक और एक महत्वपूर्ण उपकरण रेमिटेंस पर आ रहे नकारात्मक प्रभावों की पहचान की है।

दरअसल रेमिटेंस निम्न और मध्यम आय देशों में निर्धनता के उन्मूलन में मददगार होता है। इससे शिक्षा पर व्यय में वृद्धि होती है और लाखों वंचित घरों में बाल श्रम की समस्या को दूर करने में भी मददगार होता है। इसमें गिरावट से बहुत से परिवारों के व्यय करने की क्षमता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। विकासशील देशों में यह आय का एक प्रमुख जरिया है, लिहाजा इससे कई देशों के लोगों की व्यय करने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है। विश्व बैंक का कहना है कि दुनिया के तकरीबन अधिकांश इलाकों में रेमिटेंस में गिरावट की आशंका बढ़ गई है। यूरोप और मध्य एशिया में 27.5 प्रतिशत, सब सहारा अफ्रीका क्षेत्र में 23.1 प्रतिशत, दक्षिण एशिया में 22.1 प्रतिशत, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 19.6 प्रतिशत, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्रों में 19.3 प्रतिशत तथा पूर्वी एशिया और पैसिफिक क्षेत्र में 13 प्रतिशत की गिरावट का आकलन किया गया है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रेमिटेंस में इस भारी गिरावट के बावजूद भी इसका प्रवाह निम्न और मध्यम आय वाले देशों के बाह्य वित्तीय स्रोत के रूप में अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में इससे ज्यादा ही गिरावट का अनुमान है जो कि 35 प्रतिशत से अधिक हो सकता है। वर्ष 2019 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की तुलना में रेमिटेंस का प्रवाह निम्न और मध्य आय वाले देशों में अधिक था और इसने विकासशील देशों के संसाधनों के संबंध में एक मील का पत्थर निर्धारित किया था। वर्ष 2021 में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रेमिटेंस के प्रवाह में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।

विश्व बैंक में सोशल प्रोटेक्शन एंड जॉब्स ग्लोबल प्रैक्टिस प्रभाग के ग्लोबल डायरेक्टर माइकल रुटोवस्की का कहना है कि आर्थिक संकट की घड़ी में विकसित और विकासशील दोनों ही प्रकार के देशों को निर्धन वर्गों के संरक्षण के लिए प्रभावी सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मजबूती देनी होगी। इसके लिए मेजबान देश को अपने यहां के प्रवासी जनसंख्या को सामाजिक सुरक्षा के जरिये मदद करनी चाहिए।

दक्षिण एशिया में वर्ष 2020 में रेमिटेंस में 22 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है और कुल रेमिटेंस की प्राप्ति 109 बिलियन डॉलर की हो सकती है। वहीं वर्ष 2019 में इस मामले में दक्षिण एशिया में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। दक्षिण एशिया में रेमिटेंस प्राप्ति में आ रही इस गिरावट की मुख्य वजह कोरोना महामारी के चलते आई वैश्विक आर्थिक मंदी और तेल की कीमतों में अप्रत्याशित कमी को माना जा रहा है। यह आर्थिक मंदी अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के देशों की तरफ से दक्षिण एशिया में आने वाले रेमिटेंस को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी। इसके साथ ही तेल की कीमतों में तेजी से आ रही गिरावट दक्षिण एशिया में गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल देशों और मलेशिया से आने वाले रेमिटेंस आउटफ्लो को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी। दुनिया के किसी भी क्षेत्र में औसत रेमिटेंस लागत दक्षिण एशिया में सबसे कम है और यह 4.95 प्रतिशत है।

भारत विश्व में सर्वाधिक रेमिटेंस की प्राप्ति वाला देश है। वर्ष 2019 में 83 बिलियन डॉलर के रेमिटेंस प्राप्ति के साथ भारत वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक रेमिटेंस प्राप्तकर्ता देश था, लेकिन वर्ष 2020 में स्थिति ऐसी नहीं है। वर्ष 2020 में भारत को प्राप्त रेमिटेंस में 23 प्रतिशत की गिरावट की आशंका है और इस वर्ष केवल 64 बिलियन डॉलर की प्राप्ति का अनुमान है। इससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा। ये रेमिटेंस कई अवसरों पर भारत को चालू खाता संकट से बचाने के लिए तात्कालिक उपाय जैसा काम करते हैं। कोविड-19 के चलते हुए लॉकडाउन की वजह से भारत में करीब चार करोड़ प्रवासी प्रभावित हुए हैं। प्रवासी कामगारों के सामने रोजगार छिनने का संकट बढ़ गया है। आंतरिक प्रवासी संकट में हैं।

लैटिन अमेरिका के भी कई देशों में आंतरिक प्रवास की चुनौतियां देखी गई हैं। लॉकडाउन के चलते लैटिन अमेरिका के कई देशों में बड़े पैमाने पर आंतरिक प्रवासियों को वापस लौटना पड़ा है। सरकारों को नकदी हस्तांतरण तथा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के जरिये इन तमाम प्रवासियों की मदद करनी चाहिए। भारत में वर्ष 2019 में ऐसे अकुशल प्रवासी जो अनिवार्य मंजूरी की तलाश में थे उनकी संख्या में आठ प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह आंकड़ा 3,68,048 था। वर्ष 2019 में लगभग 27.2 करोड़ अंतरराष्ट्रीय प्रवासी थे।

विश्व बैंक ने राष्ट्रीय सरकारों से अनुरोध किया है कि वह फंसे हुए प्रवासियों, रेमिटेंस अवसंरचना, आजीविका और आमदनी के नुकसान, स्वास्थ्य सुविधाओं, आवास, शिक्षा, मेजबान देश में प्रवासी कामगारों के रोजगार आदि के संदर्भ में लघु, मध्यम और दीर्घकालिक रणनीति तैयार करते हुए सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को और मजबूती देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करें। इस महामारी के चलते वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य प्रोफेशनल्स की कमी आई है, जो आज सर्वाधिक चिंता का विषय है। इसलिए वैश्विक स्वास्थ्य अवसंरचना, स्वास्थ्य निवेश और स्वास्थ्य प्रशिक्षण के क्षेत्रों में राष्ट्रों के मध्य आपसी सहयोग को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

विश्व बैंक ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वर्तमान वैश्विक लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट बना हुआ है और ग्लोबल रेमिटेंस यानी बाहर से भेजे जाने वाले धन में लगभग 20 प्रतिशत तक गिरावट की आशंका है। प्रवासी मजदूरों के रोजगार और मजदूरी या वेतन में तेज गिरावट से ऐसा हुआ है। अल्प और मध्यम आय वाले देशों में रेमिटेंस में 19.7 प्रतिशत तक की गिरावट यानी 445 बिलियन डॉलर तक की ही प्राप्ति की संभावना है। इसका व्यापक असर भारत में भी परिलक्षित होगा।

[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]

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