डिजिटल क्रांति का लाभ उठाए हिंदी

अब भारतीय भाषाओं में एक भारतीय इंटरनेट का निर्माण करने की आवश्यकता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 14 Sep 2017 01:28 AM (IST) Updated:Thu, 14 Sep 2017 01:38 AM (IST)
डिजिटल क्रांति का लाभ उठाए हिंदी
डिजिटल क्रांति का लाभ उठाए हिंदी

अनुराग गौड़

हर देश और हर भाषा के जीवन में कुछ ऐसे क्षण आते हैं जो उन्हें चिर काल के लिए बदल देते हैं। औद्योगिक क्रांति ने विश्व का नक्शा बदलकर रख दिया था और यूरोप की भाषाओं को एक अलग स्तर पर ला खड़ा किया था। तीन सौ साल पहले भारत में अंग्रेज न के बराबर थे और 150 साल पहले तक देश में अंग्रेजी बमुश्किल बोली जाती थी। मैकाले के सौ साल और आजादी के सत्तर साल बाद भी मुश्किल से सात-आठ प्रतिशत भारतीय अंग्रेजी बोलते हैं, लेकिन इसके बावजूद अंग्रेजी आज प्रगति और विज्ञान की महत्वाकांक्षी भाषा बन गई है। भारत में बिना अंग्रेजी के न तो आप उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और न ही न्याय हासिल कर सकते हैैं। विभिन्न स्तर पर प्रयास चलते रहते हैं कि अंग्रेजी के हौवे को थोड़ा कम कर और इस भाषा की पकड़ को तनिक ढीलाकर भारतीय भाषाओं को आगे लाया जाए, लेकिन हिंदी दिवस जैसे आयोजन हमें इसका अहसास करते हैं कि चाह भले कुछ भी हो, प्रगति नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली ही है। उग्र राजनीति के इस युग में हिंदी के मसले पर राष्ट्रीय सहमति बन पाना लगभग असंभव दिखता है, लेकिन हिंदी और साथ ही अन्य सभी भारतीय भाषाओं के लिए डिजिटल क्रांति एक मौका है जिसे यदि पकड़ लिया जाए तो निश्चित रूप से एक बड़ी छलांग लगाई जा सकती है।
बहुत समय नहीं हुआ जब लोग अपने घर तक बीएसएनएल की लैंडलाइन आने का सालों इंतजार करते थे, लेकिन आज उन्हीं घरों में चार-चार मोबाइल फोन हैं। टेक्नोलॉजी वह चीज है जिसके दम पर पिछलग्गू भी एक क्षण में कतार में सबसे आगे आ खड़ा हो सकता है। तकनीक के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास और विस्तार हुआ है, लेकिन तकनीक के क्षेत्र में हिंदी की स्थिति कोई बहुत बेहतर नहीं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हिंदी की-बोर्ड का उचित मानकीकरण तक न हो पाना है। हालांकि आज कई एप्प अपने आप को हिंदी में ला रहे हैं। ये मुख्यत: बैंकिंग, यात्रा और ई-कॉमर्स से जुड़े हैं, परंतु इनका हिंदीकरण पहले एक-दो पन्ने का ही होता है और उसके बाद सारी सामग्री अंग्रेजी में होती है। समस्या यह है कि हम इंटरनेट को भारतीय बनाने का प्रयास कर रहे हैं और इस कोशिश में फिलहाल अनुवाद से ज्यादा कुछ खास नहीं हो पा रहा है।
इसका समाधान क्या है? अब भारतीय भाषाओं में एक भारतीय इंटरनेट का निर्माण करने की आवश्यकता है ताकि उसका स्वरूप भारत की भाषाओं की विशेषता के हिसाब से हो। आज आप भले ही हिंदी में कुछ वेबसाइट्स से टिकट लेने में सक्षम हों, लेकिन आइआरसीटीसी का मोबाइल एप्प आपको अंग्रेजी के सिवाय किसी और भाषा में टिकट नहीं खरीदने देता। आपको उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश अथवा अन्य हिंदी भाषी इलाके में होटल देखने हों तो आपको रिव्यू हिंदी में आसानी से नहीं मिलेंगे। इसका तोड़ नए सिरे से सिर्फ हिंदी में एप्प बनाना है। ऐसे उपायों से ही हिंदी का सही मायनों में विकास हो सकेगा और उसका दायरा और व्यापक हो सकेगा। इस मामले में सरकार एक सीमा से ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। स्पष्ट है कि हिंदी समाज को ही जिम्मेदारी लेनी होगी।
भारत की जनसंख्या का जो सात-आठ प्रतिशत अंग्रेजी बोलता है वह ऑनलाइन हो चुका है। शेष जो ऑनलाइन हो रहे हैं वे भारतीय भाषा भाषी हैं। शायद इनके लिए कोई एप्प विकसित करना एक व्यावसायिक विफलता हो। ऐसे में यह जिम्मेदारी उन हिंदी भाषियों की है जो पहले से ऑनलाइन हैं और अंग्रेजी में सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं। उन्हें नए उत्पादों की मांग करनी चाहिए। इसमें केंद्र सरकार से ज्यादा जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है जो हिंदी में बाजार खड़ा करने का एक वातावरण तैयार कर सकती हैं। सबसे पहले सभी छात्रों को हिंदी टाइपिंग अनिवार्य रूप से कक्षा 10 के पहले सिखाई जानी चाहिए। अंग्रेजी में टाइप करना तो बच्चे आज जल्दी ही सीख लेते हैं, पर हिंदी अगर मजबूरी न हो तो कभी नहीं सीखेंगे। हिंदी में सॉफ्टवेयर निर्माण के लिए थोड़ा जोर लगाने की जरूरत है। सरकार की भूमिका सिर्फ प्रोत्साहन देने तक की हो सकती है। हिंदी में सॉफ्टवेयर बनाने के लिए थोड़े से वित्तीय संसाधन और कुछ हिंदी प्रेमी तकनीकी दक्ष युवा पर्याप्त हैं। ध्यान रहे कि आज ऐसे दक्ष युवाओं की कोई कमी नहीं है।
आज हिंदी की एक ही समस्या है कि हिंदी वालों के लिए निजी क्षेत्र में ज्यादा पैसे वाली नौकरियां नहीं हैं। इसका एक मुख्य कारण ऐसी नौकरियों का बड़े शहरों में केंद्रित होना है। हिंदी को आगे बढ़ना है तो पहले हिंदी में चलने वाले उद्योगों जैसे-मनोरंजन, कला, समाचार, धारावाहिक और रेडियो का संपूर्ण हिंदीकरण करना होगा। आज इनमें से किसी के लिए भी आपको किसी खास जगह होने की आवश्यकता नहीं है। आज मनोरंजन, समाचार, धारावाहिक आदि यू-ट्यूब पर ज्यादा देखे जाते हैं। छोटे शहरों के हमारे होनहार यू-ट्यूब पर सेलिब्रिटी बन चुके हैं, लेकिन प्रसिद्ध होने के बाद कूल होने के लिए वे अंग्रेजी के पीछे भागते हैं। यू-ट्यूब उनसे हिंदी में बात नहीं करता। वहां टिप्पणी भी रोमन हिंदी में ही आती है। इसका जवाब यू-ट्यूब का हिंदीकरण नहीं, बल्कि हिंदी का अपना यू-ट्यूब होना है जहां हिंदी में लिखा जाना ही कूल समझा जाए। बस एक तकनीकी सफलता चाहिए और फिर हिंदी छलांग लगाती दिखेगी। वैश्वीकरण के जमाने में सरकार से यह उम्मीद करना ठीक नहीं कि वह फेसबुक, यू-ट्यूब ट्विटर की अनदेखी कर दे या फिर चीन की तरह रवैया अपनाए प रंतु सरकार तकनीक के क्षेत्र में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रोत्साहन को प्राथमिकता तो दे ही सकती है।
एक बार नौकरियां मिलने लग जाएं तो शिक्षा के क्षेत्र में मशीन लर्निंग द्वारा संसार का सारा ज्ञान हमारी भाषा में आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है और अच्छे शिक्षक एक जगह पर होते हुए भी लाखों छात्रों द्वारा देखे-सुने जा सकते हैं। यदि यह मौका छूटा तो हिंदी हमेशा उपयोग-उपभोग की भाषा बनने के लिए अभिशप्त होगी, जैसे कि आज का बॉलीवुड, जहां बस बोलने के लिए ही हिंदी है। तेजी से बदल रहे संदर्भों में हमें अपने कान, आंख और दिमाग की खिड़कियां खुली रखनी होंगी तभी युवाओं की अभिलाषा को पूर्ण करने में हिंदी एक सेतु का काम कर सकेगी।
[ लेखक सोशल नेटवर्किंग साइट ‘मूषक’ के संस्थापक एवं सीईओ हैैं ]

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