फर्जी लोन एप्स से निपटना आवश्यक, लोगों को प्रताड़ित करने में लगे

आरबीआइ ने अनधिकृत ऋणदाताओं की धरपकड़ के लिए एप्स स्टोर संचालकों से भी संपर्क किया। असल में एप स्टोर्स नियमन को कड़ा करना भी कारगर रणनीति है। यदि फर्जी लोन एप्स पर शिकंजा नहीं कसा गया तो लोगों की परेशानियां जारी रहने के साथ ही वित्तीय समावेशन और डिजिटल इकोनमी की राह बाधित होगी। फर्जी लोन एप्स सुनियोजित ढंग से जाल फैलाते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Mon, 13 Nov 2023 11:16 PM (IST) Updated:Mon, 13 Nov 2023 11:16 PM (IST)
फर्जी लोन एप्स से निपटना आवश्यक, लोगों को प्रताड़ित करने में लगे
फर्जी लोन एप्स से निपटना आवश्यक (प्रतीकात्मक तस्वीर)

विवेक देवराय। इंटरनेट ने वित्तीय मोर्चे पर जीवन काफी सुगम बनाया है। इसके साथ ही इस मंच पर उभरे फर्जी एवं शरारती लोन एप्स लोगों की दुश्वारियां भी बढ़ा रहे हैं। ये इस कारण फर्जी एवं शरारती हैं, क्योंकि ये किसी सुनिश्चित नियामकीय दायरे में संचालित नहीं हो रहे हैं और कर्ज देने की आड़ में लोगों का आर्थिक, मानसिक एवं भावनात्मक शोषण कर उन्हें प्रताड़ित करने में लगे हैं। इनके चलते लोगों की निजी जानकारियों और अहम सूचनाओं के दुरुपयोग का जोखिम भी बढ़ा है। तात्कालिक वित्तीय जरूरत की पूर्ति के लिए लोग न तो कर्ज देने वाली की वैधता जांचते हैं और न ही उससे जुड़े नियम एवं शर्तों की कोई पड़ताल करते हैं। इसके चलते वे कर्ज की आड़ में ऐसी आफत मोल ले लेते हैं, जिससे उनका पीछा छूटना मुश्किल हो जाता है।

फर्जी लोन एप्स सुनियोजित ढंग से जाल फैलाते हैं। लोगों को लुभाने के लिए उनकी एक आकर्षक पेशकश तो यही होती है कि किसी विशेष कागजी कार्रवाई के बिना ही उनका कर्ज उपलब्ध है। कर्ज लेने की जल्दबाजी में लोग नियम एवं शर्तों को बहुत ध्यान से नहीं देखते। इस कारण कर्ज लेने के बाद ऊंची ब्याज दरों और गोपनीय या परोक्ष शुल्कों के फंदे में फंस जाते हैं। इससे भी अधिक विचलित करने वाली बात यह है कि वे सीधे-सीधे उत्पीड़न करने लगते हैं। कई बार लोगों के फोटोग्राफ के साथ छेड़छाड़ तो कभी उनकी निजी जानकारियों का गलत इस्तेमाल करते हैं।

कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां ऐसे एप्स ने कर्जदार के फोन की कांटेक्ट लिस्ट को एक्सेस कर उनके रिश्तेदारों एवं परिचितों को वसूली के लिए मैसेज या काल किए। इससे कई लोगों के रिश्ते भी खराब हुए। यह शोषणकारी रवैया न केवल लोगों की नाजुक वित्तीय स्थिति का अपने हित में लाभ उठाने वाला, बल्कि उनकी निजता और गरिमा पर भी आघात करता है।

ऐसे में डिजिटल वित्तीय सुरक्षा के लिए समाधान अपरिहार्य हो गया है। यह आवश्यकता इसलिए और अधिक महसूस होती है, क्योंकि फर्जी लोन एप्स का सबसे बड़ा शिकार गरीब तबका होता है। जिस तबके के पास पर्याप्त वित्तीय समझ नहीं है, वह पैसों की जरूरत की तत्काल पूर्ति के लिए आसानी से इन वित्तीय शिकारियों के चंगुल में फंस जाता है। इन पीड़ितों को न केवल वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है, बल्कि वे मानसिक प्रताड़ना भी झेलते हैं।

फर्जी लोन एप्स तमाम तिकड़मों से लोगों का जीना दूभर कर देते हैं। इसके व्यापक सामाजिक प्रभाव को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। इससे अन्य भरोसेमंद एवं वैध वित्तीय संस्थानों के प्रति भरोसा भी घटता है, जिससे वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया बाधित होती है, जबकि भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय समावेशन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन एप्स से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति बनानी होगी। इसका मुख्य जिम्मा भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआइ के पास है। एक कड़ा नियामकीय ढांचा इसके लिए सबसे जरूरी है।

डिजिटल ऋणदाता इकाइयों के परिचालन के लिए रिजर्व बैंक को कड़े मानक बनाने होंगे। नियमित निगरानी करनी होगी। वित्तीय लेनदेन में पारदर्शिता के लिए व्यापक आडिट जरूरी है। अमेरिका में कंज्यूमर फाइनेंशियल प्रोटेक्शन ब्यूरो ऐसे ढांचे का बढ़िया उदाहरण है। यह तंत्र वित्तीय क्षेत्र में समानता एवं स्पष्टता सुनिश्चित करता है। जहां तक भारत की बात है तो पूर्व में रिजर्व बैंक के कार्यसमूह ने डिजिटल इंडिया ट्रस्ट एजेंसी नाम से एक विशेष निगरानी एजेंसी बनाने की अनुशंसा की थी। इस इकाई की परिकल्पना ऋणप्रदाता एप्स को प्रमाणित करने और अनुमति प्राप्त एप्स की पारदर्शी रजिस्ट्री के संकलन के साथ ही उनके परिचालन लाइसेंस की निगरानी और किसी स्थिति में लाइसेंस को रद करने की शक्ति प्रदान करने के साथ की गई थी। हालांकि यह प्रस्ताव मूर्त रूप नहीं ले पाया, पर आरबीआइ ने कार्यसमूह की अन्य सिफारिशों के आधार पर नियमावली जारी की।

आरबीआइ ने अनधिकृत ऋणदाताओं की धरपकड़ के लिए एप्स स्टोर संचालकों से भी संपर्क किया। असल में एप स्टोर्स नियमन को कड़ा करना भी कारगर रणनीति है। गूगल प्ले और एपल के एप स्टोर के साथ मिलकर रिजर्व बैंक सुनिश्चित कर सकता है कि संबंधित एप्स एक निर्धारित प्रक्रिया की कसौटी पर खरे उतरें। इस प्रक्रिया में संबंधित एप्स की विश्वसनीयता को परखने के साथ यह भी देखा जाए कि क्या वे भारतीय वित्तीय कानूनों का अनुपालन करते भी हैं या नहीं। दक्षिण कोरिया में यही रणनीति अपनाई जाती है। वहां वित्तीय एप्स को फाइनेंशियल सुपरवाइजरी सर्विस द्वारा प्रमाणित किया जाता है। इस रणनीति की सफलता के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी महत्वपूर्ण होगा। इस मामले में भारत यूरोपीय संघ से भी सीख ले सकता है, जहां खुफिया जानकारियां साझा करके अवैध वित्तीय गतिविधियों के विरुद्ध अभियान चलाया जाता है।

उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए गूगल ने भी अपनी ओर से एक बड़ी पहल की है। उसने फिनटेक एसोसिएशन फार कंज्यूमर एंपावरमेंट यानी फेस के साथ हाथ मिलाया है। इस साझेदारी के अंतर्गत फेस गूगल को बाजार से जुड़ी अहम जानकारियां उपलब्ध कराएगा। इससे शरारती एप्स पर शिकंजा कसने में मदद मिलेगी। उपभोक्ताओं के लिए एक सुरक्षित परिवेश तैयार होगा। इन उपायों के अतिरिक्त लोगों को जागरूक करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि वे तकनीक, निगरानी, कानूनी कार्रवाई और शिकायत समाधान प्रणाली से भलीभांति अवगत हों। इस मामले में आस्ट्रेलिया जैसा जागरूकता अभियान लोगों को शरारती लोन एप्स से जुड़े जोखिमों के प्रति सचेत कर सकता है। तकनीक भी इस राह में बहुत उपयोगी है।

शरारती लोन एप्स पर नियंत्रण के लिए सिंगापुर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का सहारा लिया जाता है। एक प्रभावी शिकायत निपटान तंत्र की स्थापना भी अहम होगी, ताकि लोगों को उनकी परेशानियों का उचित रूप से समाधान मिल सके। यदि ये कदम नहीं उठाए गए तो शरारती एप्स का फर्जीवाड़ा जारी रहेगा। लोगों का शोषण होता रहेगा और वित्तीय समावेशन के साथ ही डिजिटल इकोनमी के विकास में अवरोध आएगा।

(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं)

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