India Nepal Relation: भारत और नेपाल के बीच कायम है गर्मजोशी की उम्मीदें

नेपाली प्रधानमंत्री ओली की भारत विरोधी बोली कोई नई बात नहीं है। ओली को जानने वाले इस बात को बेहतर जानते हैं कि ओली की चुनावी शुरुआत ही भारत विरोध के नाम पर हुई थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 25 Aug 2020 03:05 PM (IST) Updated:Tue, 25 Aug 2020 03:16 PM (IST)
India Nepal Relation: भारत और नेपाल के बीच कायम है गर्मजोशी की उम्मीदें
India Nepal Relation: भारत और नेपाल के बीच कायम है गर्मजोशी की उम्मीदें

अमिय भूषण। नेपाल में भारत विरोध की आंच अब धीमी होने लगी है। इसकी शुरुआत नेपाली प्रधानमंत्री केपी ओली की ओर से की गई पहल को माना जा रहा है। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केपी ओली द्वारा की गई टेलीफोन कॉल को इसका श्रेय दिया जा रहा है। उनकी इस बातचीत के बाद नेपाल में नवनियुक्त राजदूत विनय मोहन क्वात्र और नेपाली विदेश सचिव के बीच सौहार्दपूर्ण बैठक संपन्न हुई, जिसमें नेपाल में चल रहे विकास संबंधी परियोजनाओं को गति देने पर भी सहमति बनी। पर इसे भड़काए रखने की कोशिश भी जारी है। नफरत की इस आग में ईंधन की भूमिका एक खास कॉकटेल की है, जिसके एक हिस्से में ओली की भारत विरोधी सियासत और फैसले हैं, तो दूसरे हिस्से में नेपाल स्थित चीनी दूतावास की विशेष रणनीतिक सक्रियता और उसके बरक्स भारतीय दूतावास की कमतर सक्रियता है।

नेपाली प्रधानमंत्री ओली की भारत विरोधी बोली कोई नई बात नहीं है। ओली को जानने वाले इस बात को बेहतर जानते हैं कि ओली की चुनावी शुरुआत ही भारत विरोध के नाम पर हुई थी। भारत विरोधी एजेंडे का लाभ प्रधानमंत्री के तौर पर ओली को मिलता रहा है। यही वजह है कि ओली ने अपनी सियासत और सरकार के फैसलों में भारत विरोध के एजेंडे को संजीवनी की तरह उपयोग में लाना शुरू किया। ओली जिस नफरत के जहर को संजीवनी समझ रहे थे, वही अब उनकी सरकार और सियासत की सेहत बिगाड़ रही है। एक ओर जहां पुष्प कमल दहल के नेतृत्व में एक प्रचंड शक्ति ओली के विरुद्ध उठ खड़ी हो रही है, वहीं दूसरी ओर नेपाल का प्रबुद्ध तबका भी नेपाल के दीर्घकालिक हितों को चोटिल करने वाली ओली सियासत के विरुद्ध मुखर होने लगा है।

दुनिया को महामारी की चपेट में झोंकने वाले चीनी वायरस कोविड से निपटने के नेपाली शासन के तौर तरीकों को लेकर भी नेपाली जनमानस में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ने लगी है। इसी दौर में नेपाल चीन सीमा के कम से कम दस स्थानों पर करीब 33 हेक्टेयर नेपाली भूमि पर चीन ने कब्जा जमा लिया है। पिछले दिनों चीनी अतिक्रमण पर निरंतर रिपोर्टिंग करने और फिर इसका रहस्योद्घाटन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार बलराम बनिया की संदेहास्पद मृत्यु ने चीन पर सवालिया निशान खड़ा किया है। नेपाल के लोग इसे हत्या मान रहे हैं। इस पूरे मसले पर नेपाल सरकार की रहस्यमय चुप्पी आश्चर्यजनक और संदेहास्पद है।

घृणा और द्वेष की इस सियासत में मदमस्त नेपाल की मौजूदा सरकार भारत का अहित सोचते सोचते अब नेपाल के हितों पर भी चोट करने लगी है। हाल ही में बिहार स्थित सीतामढ़ी के भिट्ठामोड़ के पास बन रही सड़क को नो मेंस लैंड का हिस्सा बता कर इस सड़क के निर्माण कार्य को रोकना और खुली लंबी सीमा पर केवल कुछेक स्थानों से ही आवाजाही परेशानी का सबब बनने वाली है। वहीं दूसरी तरफ कई नदियों पर बने तटबंधों की मरम्मत का काम करने से बिहार सरकार को नेपाली शासन द्वारा बार बार रोका जा रहा है। बारिश के पहले इन तटबंधों की मरम्मत का काम हर साल होता था, पर इस बार नहीं हो सका।

वैसे समझा जा रहा है कि त्योहारों का मौसम शुरू होते ही रिश्तों में सुधार आने की पूरी उम्मीद है। दोनों देशों के लोग मिलकर त्योहार का आनंद लेने वाले हैं। कार्तिक पूर्णिमा में लोग गंगा स्नान करने भारत आएंगे तो वहीं अगहन माह में राम विवाह के अवसर पर जनकपुर जाएंगे। इस बीच अयोध्या में हुए श्रीराम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम से नेपाल में भी हर्ष व्याप्त है। वहीं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस कार्यक्रम में जयसियाराम के संबोधनों ने नेपाल भारत संबंधों में पुन: मिठास घोलना शुरू कर दिया है।

[भारत नेपाल मामलों के जानकार]

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