जीवन से अधिक जरूरी नहीं परीक्षा, केवल मास्क व सैनिटाइजर के सहारे महामारी का मुकाबला असंभव

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने मास्क और सैनिटाइजर की पर्याप्त व्यवस्था करने की बात कही है लेकिन केवल मास्क और सैनिटाइजर के सहारे महामारी का मुकाबला हम नहीं कर सकते।

By TaniskEdited By: Publish:Sat, 29 Aug 2020 11:07 AM (IST) Updated:Sat, 29 Aug 2020 11:07 AM (IST)
जीवन से अधिक जरूरी नहीं परीक्षा, केवल मास्क व सैनिटाइजर के सहारे महामारी का मुकाबला असंभव
जीवन से अधिक जरूरी नहीं परीक्षा, केवल मास्क व सैनिटाइजर के सहारे महामारी का मुकाबला असंभव

 [नीरज कुमार सिंह]। महामारी जनित संकट के दौर में धीरे धीरे हालात सामान्य होने के संकेत लगातार मिल रहे हैं। हालांकि, यह सही है कि संक्रमितों का आंकड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन ठीक होने वालों का अनुपात भी बढ़ रहा है। ऐसे में करीब पांच माह से ठप पड़ी शैक्षणिक गतिविधियों को भी शुरू करने के लिए केंद्र सरकार प्रयासरत है। इसी संदर्भ में सरकार शैक्षणिक कैलेंडर को व्यवस्थित बनाए रखने के लिए नीट और जेईई की परीक्षा आयोजित करवाने जा रही है। परीक्षा के आयोजन से पहले हमें लाखों छात्रों के स्वास्थ्य का ध्यान भी रखना होगा। यह भी समझना होगा कि जब लॉकडाउन किया गया था, तब कहा गया कि नागरिकों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसा क्या हुआ कि अचानक से अकादमिक कैलेंडर जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है।

यह सही है कि ये परीक्षाएं आयोजित करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने मास्क और सैनिटाइजर की पर्याप्त व्यवस्था करने की बात कही है, लेकिन केवल मास्क और सैनिटाइजर के सहारे महामारी का मुकाबला हम नहीं कर सकते और इसका जीता जागता सबूत है देश में इस बीमारी के बढ़ते हुए मामले। दूसरी बात यह कि मास्क और सैनिटाइजर भी केवल परीक्षा भवन की व्यवस्थाएं हैं, रास्ते का क्या? यातायात की व्यवस्था नहीं के बराबर है, गिनती की ट्रेनें चल रही हैं, सड़क परिवहन लगभग ठप है, अलग अलग राज्यों में अनलॉक के विविध दिशानिर्देश हैं। ऐसे में इस बात की आशंका भी कायम है कि गांव-देहात के तमाम छात्रों को शहरों में स्थित परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। 

कोई छात्र संक्रमित हो जाता है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?

ग्रामीण परिवेश के कुछ होनहार छात्र महज परीक्षा केंद्र तक नहीं पहुंच पाने के कारण परीक्षा देने से वंचित रह सकते हैं। इसके अलावा, यदि कोई छात्र संक्रमित हो जाता है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? बिहार और उत्तर प्रदेश में जांच दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है, जबकि सबसे ज्यादा छात्र इन्हीं राज्यों में परीक्षा में उपस्थित होंगे। इन दोनों राज्यों में आबादी के हिसाब से केंद्रों की संख्या भी कम है, लिहाजा यहां भीड़ अधिक होगी।

किन तैयारियों के बलबूते परीक्षा करवाने पर आमादा है सरकार?

क्या हमारी सरकारी व्यवस्था इस भयंकर खतरे के लिए तैयार है? अब तक तो ऐसा नहीं लगता। हमने कोरोना काल में सरकार की तैयारियों को देखा भी है। हमने प्रवासी मजदूरों की दुर्गति देखी है। अनलॉक के दौर में आयोजित की गई अनेक परीक्षाओं में शारीरिक दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ते हुए देखी हैं और केरल में तो केईएम की परीक्षा के बाद कई छात्र कोरोना पॉजिटिव भी पाए गए। हमने देखी है अस्पताल की जर्जर व्यवस्थाएं और दम तोड़ते मरीज। फिर सरकार किन तैयारियों के बलबूते परीक्षा करवाने पर आमादा है?

महज 24 प्रतिशत बच्चे ही ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं

सरकार कह रही है कि छात्रों की मेहनत का ध्यान रखिये, उन्होंने जो रात-दिन कोरोना काल में पढ़ाई की है, उसका ध्यान रखते हुए मेहनतकश छात्रों को परिणाम मिलना चाहिए, मगर एक वास्तविकता यह भी है कि आज भले ही हम डिजिटल होने का दंभ भर रहे हों, लेकिन यूनिसेफ की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में महज 24 प्रतिशत बच्चे ही ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे में क्या सब बच्चे इस परीक्षा के लिए तैयार होंगे? क्या यह प्रतियोगिता परीक्षा बराबर की प्रतियोगिता होगी? यह सही है कि परीक्षा नहीं होने पर नुकसान है, परंतु परीक्षा होने पर नुकसान ज्यादा है। इतना ज्यादा कि 16-17 साल के छात्र सड़कों पर आने को मजबूर हो गए। सोशल मीडिया पर विरोध जताया, लेकिन सरकार पर उसका कुछ असर नहीं हुआ। परीक्षा महत्वपूर्ण है, मगर इतनी भी नहीं कि पिछले कई महीनों के संयम और तपस्या को कुर्बान कर दिया जाए। कोरोना पर प्राप्त किए गए नियंत्रण को गंवा दिया जाए। इसलिए इस निर्णय पर पुनर्विचार होना चाहिए।

[लेखक-जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अध्येता हैं]

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