देश के लिए बहुमूल्य संपदा हैं पूर्व सैनिक, कश्मीर समस्या हल करने में निभा सकते हैं महत्‍वपूर्ण भूमिका

कश्मीर में जब तक जनसांख्यिकी संतुलन नहीं होगा तब तक कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लक्ष्य में सफलता हासिल नहीं होगी। कश्मीर घाटी के इस पूर्वी सिरे से पूर्व सैनिकों की बिरादरी साथ लगकर कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

By TilakrajEdited By: Publish:Fri, 05 Nov 2021 09:29 AM (IST) Updated:Fri, 05 Nov 2021 09:29 AM (IST)
देश के लिए बहुमूल्य संपदा हैं पूर्व सैनिक, कश्मीर समस्या हल करने में निभा सकते हैं महत्‍वपूर्ण भूमिका
ऐसे रास्ते बनाए जाएं, जिनसे कश्मीर के अलावा अन्य हिस्सों में पूर्व सैनिकों की सक्षम जनशक्ति का उचित उपयोग हो

आर विक्रम सिंह। कश्मीर में कश्मीरी सिखों-हिंदुओं और प्रवासी मजदूरों की हत्या के बाद आतंकियों और उनके समर्थकों पर लगाम लगाने के लिए कई उपाय किए गए हैं। इन उपायों के बाद भी यह कहना कठिन है कि कश्मीरी पंडितों की वापसी हो सकेगी। उचित यह होगा कि इस काम को पूरा करने के लिए पूर्व सैनिकों का उपयोग किया जाए। करीब-करीब प्रत्येक पूर्व सैनिक का कश्मीर से एक रिश्ता है। अपनी सेवा के दौरान पूर्व सैनिक कभी न कभी कश्मीर की सीमाओं पर रहा होता है। इस पर संदेह है कि वर्तमान परिवेश में घाटी में नई कालोनियां बनाकर कश्मीरी पंडितों को बसाना स्थायी समाधान बन सकेगा। देश के पूर्व सैनिकों की कश्मीर के समाधान की राह में एक महत्वपूर्ण भूमिका बन सकती है। पूर्व सैनिकों को एक योजना के तहत साथ लेकर व्यवस्थित रूप से कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ बसाने की कार्ययोजना पर कार्य किया जाए, तो हम इस संकट के समाधान का मार्ग खोज सकते हैं। इस अभियान के लिए मुख्य नगरों का मोह छोड़कर उनसे अलग क्षेत्रों का रुख करना उचित होगा। उदाहरण के लिए हम जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग एन एच 44 के पूर्व में स्थित अनंतनाग जनपद और उसकी तहसीलों कोकरनाग, पहलगाम, काजीकुंड आदि को लें। यह इलाका सुरक्षित भी है और सड़कों से जुड़ा हुआ भी। यह क्षेत्र जम्मू राजमार्ग के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश के चंबा-मनाली से भी सड़क से जुड़ता है। सड़कें बेहतर हो रही हैं। सैनिकों-पूर्व सैनिकों की सुरक्षा में यह कश्मीर पंडितों के लिए नया आदर्श विकास क्षेत्र हो सकता है। यहां भविष्य की दृष्टि से संभावनाशील पर्यटन क्षेत्र भी हैं।

कश्मीर में जब तक जनसांख्यिकी संतुलन नहीं होगा, तब तक कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लक्ष्य में सफलता हासिल नहीं होगी। कश्मीर घाटी के इस पूर्वी सिरे से पूर्व सैनिकों की बिरादरी साथ लगकर कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। पूर्व सैनिकों में संगठन और अनुशासन की अद्भुत क्षमता होती है। कोरोना के दौर में अघोषित कोरोना योद्धा के तौर पर उन्होंने बहुत कुछ किया है। यदि हमें अपने सामाजिक परिवेश और प्रशासनिक मशीनरी को सुधारना है तो पूर्व सैनिकों को भूमिका देनी पड़ेगी। ये सबसे सक्षम अनुशासित संगठन से आए हैं। सीमित प्रशिक्षण से ये आदर्श पुलिसकर्मी, फारेस्ट गार्ड, ड्राइवर, वायरलेस आपरेटर, सुरक्षा कर्मी, होमगार्ड कमांडर, सिविल डिफेंस, एनफोर्समेंट संबंधी विभागों के सफल कर्मचारी हो सकते हैं। आपदा प्रबंधन इनसे अच्छा कोई नहीं कर सकता। दरअसल, हमारे विभाग उत्कृष्टता की खोज नहीं करते। अत: सरकारी सेवाओं के दरवाजे अक्सर बंद मिलते हैं। कई राज्यों में पूर्व सैनिकों का कोटा तय है, लेकिन तकनीकी कारणों से वह सरेंडर होता रहता है। बतौर उदाहरण उत्तर प्रदेश में राशन की दुकानों में पांच प्रतिशत का कोटा है, लेकिन गांव ही चिन्हित नहीं हुए। पूर्व सैनिकों को उनकी योग्यता क्षमता के अनुरूप भूमिकाएं और दायित्व नहीं मिल पाते।

सरकारी सहयोग के अभाव के बावजूद नई पीढ़ी की शैक्षणिक आवश्यकताओं की दृष्टि से पूर्व सैनिकगण अपने क्षेत्र में संस्थाएं गठित कर प्राइमरी सेकेंडरी विद्यालयों का संचालन कर रहे हैं। सेना और पुलिस में भर्ती के लिए मार्गदर्शन दे रहे हैं। सहकारी उद्यमों की स्थापना की दिशा में भी सोच बन रही है। समाज की नकारात्मकता के विरुद्ध वे खड़े हैं। पूर्व सैनिक स्वयं किसान हैं। किसान का संकट उनका संकट है। अत: कृषि को प्रगतिशील बनाने का लक्ष्य, स्वयं में एक बड़ा कार्य है। सरकारी योजनाओं की जानकारी देना, उनके लाभ ग्राम कस्बे तक पहुंचाना जनहित का एक बड़ा दायित्व है। इन बड़े दायित्वों के लिए आवश्यक है कि पूर्व सैनिकों को उनके राज्यों में एक मंच तो मिले। कुछ वर्ष पहले राज्यों और केंद्र सरकार के सम्मुख पूर्वसैन्यजन प्रबंधन मंत्रलय के गठन हेतु बतौर पूर्व सैनिक एक प्रस्ताव दिया गया था। प्रस्ताव की प्रशंसा तो हुई, लेकिन कुछ विशेष नहीं हो सका। सैनिक कल्याण अभी भी समाज कल्याण विभाग का एक हिस्सा होता है। मंत्रालय हो तो पूर्व सैनिकों की सार्थक भूमिका और योगदान का मार्ग प्रशस्त हो।

यह कार्य कई आयामों का है, लेकिन इसे प्राय: पूर्व सैनिकों के रोजगार स्वरोजगार तक सीमित मान लिया जाता है। पूर्व सैनिक और उनकी समस्याएं उनका सेवायोजन निश्चय ही महत्वपूर्ण है, लेकिन एक कर्मठ और अनुशासित सेवा से आने के बावजूद उन्हें आर्थिक-सामाजिक दायित्व देने की दृष्टि से कभी विचार ही नहीं किया गया। नवयुवकों को सेना एवं अर्धसैनिक बलों में प्रवेश की तैयारी एक महत्वपूर्ण कार्य है। फिलहाल इसका कोई संरक्षक विभाग नहीं है। भर्ती मेले लगवाना, उसकी व्यवस्था देखना एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक विषय है। सैनिक विद्यालय हैं, नए भी खुल रहे हैं। बहुत से विद्यालयों में एनसीसी की व्यवस्थाएं होनी हैं। एक स्वतंत्र मंत्रालय की महती आवश्यकता है। इसी के दृष्टिगत लगभग तीन वर्ष पूर्व मंत्रालय गठन हेतु एक संशोधित प्रस्ताव पुन: विचारार्थ प्रस्तुत किया गया।

आज के अराजक माहौल में पूर्व सैनिक कश्मीर समस्या के समाधान का हिस्सा बन सकें और जय जवान-जय किसान के लक्ष्य को जमीन पर उतार सकें, इसके लिए उन पर विश्वास करना, उन्हें सक्षम बनाना और उनकी सेवाएं लेना आवश्यक है। किसी रिटायर्ड जनरल की अध्यक्षता में कश्मीर पुनर्वास आयोग का अस्तित्व में आना, एक महत्वपूर्ण कदम होगा। वे रास्ते बनाए जाएं, जिनसे कश्मीर के साथ देश के अन्य हिस्सों में पूर्व सैनिकों की समर्थ सक्षम जनशक्ति का सार्थक उपयोग हो सके। एक पूर्व सैनिक मंत्रालय का गठन ऐसा ही एक रास्ता है। फौजियों को ये चुनौतियां स्वीकार हैं। जहां रास्ते नहीं होते, वहां भी वे रास्ते बनाने का हुनर जानते हैं। उन्हें बस लक्ष्य दिखाना है और हनुमानजी की तरह उनकी शक्ति का स्मरण दिलाना है। इस काम की शुरुआत कश्मीर से होनी चाहिए।

(लेखक पूर्व सैनिक एवं पूर्व प्रशासक हैं)

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