पृथ्वी को सुरक्षित बनाना होगा, ताकि पर्यावरण संरक्षण, मानव, वनस्पति, जीव-जंतुओं की सेहत सुधर सके

हमें एकजुट होकर पृथ्वी को सुरक्षित बनाना होगा जिसमें पर्यावरण संरक्षण के साथ ही मानव वनस्पति और जीव-जंतुओं सभी की सेहत सुधर सके।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 07 Apr 2020 12:03 AM (IST) Updated:Tue, 07 Apr 2020 12:07 AM (IST)
पृथ्वी को सुरक्षित बनाना होगा, ताकि पर्यावरण संरक्षण, मानव, वनस्पति, जीव-जंतुओं की सेहत सुधर सके
पृथ्वी को सुरक्षित बनाना होगा, ताकि पर्यावरण संरक्षण, मानव, वनस्पति, जीव-जंतुओं की सेहत सुधर सके

[ एम. वेंकैया नायडू ]: इस वर्ष विश्व आरोग्य दिवस का पड़ाव ऐसे वक्त पर आया है जब पूरी दुनिया उस कोविड-19 महामारी के खिलाफ संघर्ष कर रही है जो अब तक हजार्रों ंजदगियां लील चुकी है। यह समय मानव जाति को यह स्मरण कराने का है कि वह न केवल अपने स्तर पर स्वच्छता का ख्याल रखे, बल्कि प्रकृति और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के साथ कोई खिलवाड़ न करे। यह सभी स्वास्थ्यकर्मियों के योगदान को सम्मान देने का भी समय है जो कोविड-19 से जूझ रहे मरीजों की देखभाल में लगे हैं, खासतौर से नर्सें जिन पर इस वर्ष डब्ल्यूएचओ ने विशेष फोकस किया है।

कोरोना वायरस से उपजी महामारी ने मानव प्रजाति को असहाय कर दिया

स्वास्थ्य के मोर्चे पर खासी प्रगति के बावजूद कोरोना वायरस से उपजी महामारी ने मानव प्रजाति को असहाय कर दिया है। दुनिया भर के दिग्गज दिन-रात इस बीमारी की दवा तलाशने में जुटे हुए हैं। जानलेवा कोरोना वायरस राजा और रंक या किसी देश अथवा धर्म का लिहाज नहीं करता। एक देश के बाद दूसरे देश में पैठ बनाकर इसने पूरी दुनिया को थर्रा दिया है। इससे खौफजदा तमाम देश अपनी सीमाएं बंद करके लॉकडाउन का एलान कर रहे हैं ताकि इसका प्रसार रोका जा सके। यह किसी दु:स्वप्न से कम नहीं कि जहां वल्र्ड वाइड वेब यानी इंटरनेट ने दुनिया को खोलकर लोगों को आपस में जोड़ दिया था वहीं कोरोना वायरस ने देशों को सीमाएं बंद करने और अपनी जनता को शारीरिक दूरी का पालन करने पर मजबूर कर दिया है। 

इस आपदा से उबरकर आर्थिक मंदी और जीवन में उथल-पुथल से सामना करना पड़ेगा

जब इस आपदा से उबरकर आर्थिक मंदी और व्यक्तिगत जीवन में उथल-पुथल जैसी वास्तविकता से दो-चार होंगे तब कई सवाल उठेंगे जिनके केंद्र में यही होगा कि क्या ऐसी विपदाओं को रोका जा सकता है? विकास के हमारे प्रारूप पर भी प्रश्न उठेंगे। कुछ जानकार दलीलें भी दे रहे हैं कि अन्य प्रजातियों के पर्यावास को नष्ट करने की मानवीय तृष्णा ऐसी आपदाओं को आमंत्रण दे रही है। इस महामारी ने पारिस्थितिकीय असंतुलन के विषय को केंद्र में ला दिया है। पारिस्थितिकी में संतुलन की पुर्नस्थापना के लिए प्राचीन भारतीय दर्शन सबसे अहम कड़ी साबित हो सकता है।

प्राचीन वैदिक साहित्य में सभी को बराबर सम्मान देने के उदाहरण हैं

हमारे प्राचीन वैदिक साहित्य में सभी जीवित प्रजातियों को बराबर सम्मान देने के उदाहरण हैं। ऋग्वैदिक ऋचाओं में सभी के कल्याण की प्रार्थना की गई है। उनमें वनस्पति विशेषकर औषधीय गुणों वाले पौधों के बड़ी संख्या में उगने की कामना की गई है ताकि सभी बीमारियों की देखभाल के साथ हम स्वस्थ जीवन जी सकें। उनमें ईश्वर से विनती है कि सभी प्राणियों के हृदय में शांति का वास हो। उनमें प्रकृति को महत्ता एवं शांतिपूर्ण-सहअस्तित्व का प्राचीन भारतीय दर्शन प्रतिबिंबित होता है। पर्यावरण-पारिस्थितिकीय संतुलन का संरक्षण हमारी प्राचीन परंपरा रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उचित अनुभव किया था, ‘प्रकृति में सौंदर्यभाव और उसके लिए धार्मिक निहितार्थों को जोड़ने की दूरदर्शिता के लिए मैं अपने पूर्वजों के समक्ष शीश नवाता हूं।’

प्रकृति संरक्षण के सक्रिय योद्धा बनें

यह समय सभी भारतीयों और प्रत्येक वैश्विक नागरिक के लिए प्रकृति संरक्षण का सक्रिय योद्धा बनने का है ताकि पृथ्वी पर मनुष्य और सभी जीव-जंतु स्वस्थ रहकर सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व का आनंद ले सकें। हम जिस हवा में सांस लेते हैं और जो पानी पीते हैं, वे साफ होने चाहिए। हमें मिट्टी, पौधे और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को सहेजना चाहिए। लॉकडाउन के चलते हवा की गुणवत्ता में चमत्कारिक सुधार और शहरी इलाकों में वन्यजीवों के विचरण की खबरें यही दर्शाती हैं कि मानव ने प्रकृति में किस हद तक हस्तक्षेप किया है। हमारे ग्रंथों में उल्लिखित मंत्रों में पृथ्वी, आकाश एवं अंतरिक्ष के अलावा जल, वनस्पति, देवताओं, अवचेतन एवं बाहरी संसार यानी सभी के लिए शांति की कामना की गई है।

भारत ने स्वास्थ्य से जुड़े कई सूचकांकों में खासी प्रगति की 

स्वतंत्रता के बाद से भारत ने स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न सूचकांकों में खासी प्रगति की है। इस दौरान हमें स्मॉल पॉक्स जैसी कई संक्रामक बीमारियों के अलावा पोलियो के उन्मूलन में सफलता मिली। भारत में औसत जीवन प्रत्याशा बढ़कर 69 वर्ष हो गई है। 1990 से 2016 के दौरान संक्रामक, मातृ, नवजात शिशु और पोषण संबंधी बीमारियों में भारत का बोझ 61 प्रतिशत से हल्का होकर 33 प्रतिशत रह गया है।

स्वस्थ जीवनचर्या को प्रोत्साहन देने वाला राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाया जाए

हालांकि बीते कुछ समय से जीवनशैली में हुए परिवर्तन के कारण गैर-संक्रामक रोगों में भारी बढ़ोतरी हुई है। कुछ साल पहले डब्ल्यूएचओ ने भारत में होने वाली मौतों में 61 प्रतिशत के लिए हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह आदि को जिम्मेदार बताया था। इस खतरनाक रुझान को पलटने की दरकार है। इसके लिए खानपान में बदलाव लाकर स्वस्थ जीवनचर्या अपनाने को प्रोत्साहन देने वाला राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाया जाए। युवावस्था से ही स्वस्थ खानपान, योग और ध्यान की आदतें डलवानी होंगी। ये पहलू स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाएं। इसके साथ ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और अन्य संस्थानों को जागरूकता का प्रसार करना चाहिए। मीडिया को भी जन-जन तक सूचनाएं पहुंचाने में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। एक और अहम मसला है वृद्धों की खास देखभाल की आवश्यकता का।

बीमारी की रोकथाम और उसके उपचार पर ध्यान देना होगा

देश के शहरी-ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे में भारी अंतर को देखते हुए कोविड-19 ने इसमें निवेश की आवश्यकता को पुन: रेखांकित किया है। हालांकि आयुष्मान भारत जैसी योजना ने इस समस्या को कुछ हद सुलझाया है जिसके तहत पचास करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा के साथ ही 1.5 लाख स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से व्यापक स्वास्थ्य सेवाएं दी जा रही हैं। फिर भी हमें बीमारी की रोकथाम और उसके उपचार जैसे स्वास्थ्य के दोनों पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। हमें जीवनशैली से जुड़े मसलों को साधकर व्यापक समाधान तलाशने की दिशा में जुटना होगा।

‘वन हेल्थ’- मनुष्य, प्राणी, वनस्पति और पर्यावरण की सेहत

यह समझना भी आवश्यक है कि हम पृथ्वी को वनस्पति और पशु-पक्षियों के साथ साझा करते हैं। इस जुड़ाव को समझने के साथ ही डब्ल्यूएचओ की ‘वन हेल्थ’ की उस अवधारणा को भी आत्मसात करने की दरकार है जिसमें मनुष्य, प्राणी, वनस्पति और पर्यावरण की सेहत के लिए बहुस्तरीय दृष्टिकोण अपनाने की बात है। इसे संभव बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों को साथ लाने के साथ ही विविध विशेषज्ञों को एकजुट कर नीतियां और कार्यक्रम तैयार करने होंगे।

एकजुट होकर पृथ्वी को सुरक्षित बनाना होगा

हमारी दुनिया परस्पर निर्भर है। हमें इसे संतुलित करना ही होगा ताकि हम स्वस्थ जीवन जी सकें। हमें एकजुट होकर पृथ्वी को सुरक्षित बनाना होगा जिसमें पर्यावरण संरक्षण के साथ ही मानव, वनस्पति और जीव-जंतुओं सभी की सेहत सुधर सके।

( लेखक भारत के उप-राष्ट्रपति हैं )

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