धर्म की राजनीति का विकृत स्वरूप, धर्म के जरिये समाज को प्रभावित करने की साजिश

धर्म की गंदी राजनीति से सिर्फ खुद को बचाने से ही काम नहीं चलेगा, समाज और राष्ट्र को भी बचाना होगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 07 Aug 2018 11:51 PM (IST) Updated:Wed, 08 Aug 2018 09:16 AM (IST)
धर्म की राजनीति का विकृत स्वरूप, धर्म के जरिये समाज को प्रभावित करने की साजिश
धर्म की राजनीति का विकृत स्वरूप, धर्म के जरिये समाज को प्रभावित करने की साजिश

[ तसलीमा नसरीन ]: कुछ दिन पहले कोलकाता की एकेडमी ऑफ फाइन आट्र्स के परिसर में एक पेड़ के नीचे जाने कौन दो पत्थर रखकर चला गया। चंद दिनों बाद न जाने किसने उन दोनों पत्थरों पर सिंदूर लगा दिया, माला पहना दिया और फूल-पत्ते छिड़क दिए। जल्द ही उन पत्थरों की पूजा-अर्चना शुरू हो गई। इसका मतलब यह हुआ कि उन पत्थरों को भगवान मान लिया गया। सिंदूर लगे पत्थरों को कोई इस भय से हटा नहीं पा रहा था कि कहीं धर्मानुयायी आकर मार-पीट न करने लगें।

किसी ने उन पत्थरों को हटाना भी चाहा तो उस पर एक समूह चढ़ गया और उसे ऐसी बातें सुननी पड़ीं कि भगवान का निरादर कर रहे हो? तुम्हारी इतनी हिम्मत? इस पत्थर पूजन पर कुछ लोगों का कहना था कि प्रगतिशील व्यक्तियों के सांस्कृतिक आंगन में और मुक्त चिंतन के आदान-प्रदान वाली जगह पर मंदिर के निर्माण की साजिश चल रही है। अगर यहां मंदिर बन जाता है तो मुश्किल होगी और परिसर में सांस्कृतिक परिचर्चा के बदले धार्मिक परिचर्चा को प्राथमिकता मिलेगी। ऐसे भी सवाल उठे कि आखिर मंदिर के निर्माण के लिए अकादमी परिसर की जरूरत क्यों? कोलकाता में क्या पूजा करने की जगह की कमी है? पूजा करने के लिए सैकड़ों मंदिर तो हैं ही कोलकाता में! अंधविश्वास के खिलाफ जहां से जुलूस निकलता है क्या वहां पत्थर रख देने से प्रतिवाद की आवाज को दबाया जा सकता है?

धर्मानुयायी धर्म को संस्कृति बनाना चाहते हैं, संस्कृति को धर्म नहीं बनाना चाहते। आखिरकार एक दिन पुलिस पेड़ के नीचे से दोनों पत्थरों को ले गई। सांस्कृतिक कर्मियों ने राहत की सांस ली। परिसर में एक मंदिर बनने जा रहा था, उसे मंदिर बनने नहीं दिया गया। इसे लेकर कोई दंगा या हंगामा नहीं हुआ। पूजा-अर्चना जब हो रही थी उस समय कोई उसे एक छोटा सा मंदिर भी कह सकता था। परिसर से मंदिर हटाने का फैसला सही था। जनहित धर्म से बड़ा है। एकेडमी आफ फाइन आटर््स परिसर में मंदिर का निर्माण किसी भी तरह से उचित नहीं था। परिसर को फाइन आटर््स के लिए दिया गया था, मंदिर के लिए नहीं।

किसी भी मंदिर परिसर में कोई अकादमी का निर्माण नहीं कर सकता। इसी तरह अकादमी परिसर में मंदिर बनाना उचित नहीं है। दोनों के पास-पास होने के लिए जो न्यूनतम मेल होना चाहिए वह नजर नहीं आता था। मेडिकल कॉलेज के पास अस्पताल बन सकता है, नाटक के मंच के पास नाट्य अकादमी बन सकती है, मंदिर के पास धार्मिक शिक्षा प्रतिष्ठान हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे मस्जिद के पास मदरसा हो सकता है। ऐसे उदाहरण इसलिए कि कोलकाता एयरपोर्ट के दूसरे रनवे के पास से मस्जिद हटाने का मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। यहां से मस्जिद हटाने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के नेताओं ने समय-समय पर मुस्लिम संगठन दारूल-उलूम के नेताओं से बातचीत की। राज्य सरकार, केंद्र सरकार और मस्जिद कमेटी के बीच बैठक भी हुई, लेकिन बताते हैैं कि उसका कोई फायदा नहीं हुआ। यह सब जानते हैैं कि यात्रियों की सुरक्षा के लिए रनवे के सामने से मस्जिद को हटाया जाना चाहिए, लेकिन उसे हटाना संभव नहीं हो पा रहा है। कारण यह है कि मुस्लिम नेता मस्जिद हटाने के पक्ष में नहीं हैं।

कोलकाता एयरपोर्ट के निर्माण के समय से ही उक्त मस्जिद रनवे के सामने है। प्रतिदिन 30-40 लोग एयरपोर्ट से होकर मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते हैैं। शुक्रवार को उनकी संख्या करीब 100 हो जाती है। जब एयरपोर्ट के सुरक्षित क्षेत्र में बाहर से इस तरह से लोगों के प्रवेश करने पर सवाल उठे तो गेट से मस्जिद तक आवाजाही के रास्ते को कांटेदार तार से घेर दिया गया। एयरपोर्ट सूत्रों का कहना है कि मस्जिद के कारण विमानों के उतरने और उड़ान भरने में भी समस्या होती है। कोलकाता एयरपोर्ट पर दो समानांतर रनवे उत्तर से दक्षिण में हैं। मुख्य रनवे की लंबाई 3 हजार 627 मीटर है, लेकिन दूसरे रनवे के उत्तर में मस्जिद होने के कारण उसे 2 हजार 839 मीटर से अधिक बढ़ाना संभव नहीं हो पाया। उस तरफ से जब विमान उतरता है तो दुर्घटना के डर से रनवे के बड़े हिस्से का इस्तेमाल करना संभव नहीं हो पाता।

एयरपोर्ट सूत्रों के मुताबिक, मुख्य रनवे के बीच-बीच में बंद रहने के कारण दूसरे रनवे से विमान आवागमन करते हैं, लेकिन उसकी लंबाई कम होने के कारण एयरबस 330, बोइंग 747 जैसे बड़े विमान इस रनवे से टेकऑफ और लैंडिंग नहीं कर पाते। मस्जिद हटाकर रनवे की लंबाई बढ़ाने से यह समस्या नहीं रहेगी। दोनों रनवे की लंबाई समान होने पर दोनों से समान तरीके से बड़े विमान आवागमन कर सकेंगे।

एयरपोर्ट के अधिकारियों के मुताबिक अगर मस्जिद को हटा दिया जाए तो दूसरे रनवे को बढ़ाया जा सकेगा। इसी के साथ एक महत्वपूर्ण टैक्सी-वे (रनवे के पीछे का रास्ता) की लंबाई भी बढ़ाई जा सकेगी। तब दोनों ही रनवे से प्रति घंटे अधिक विमान टेकऑफ और लैंडिंग कर सकेंगे। अगले कुछ वर्षों में इस एयरपोर्ट में यात्रियों और विमानों की संख्या बढ़ेगी, यह मानकर ही नए टर्मिनल का निर्माण हो रहा है। दूसरे रनवे विमानों के टेकऑफ और लैंडिंग के समय एयरपोर्ट प्रशासन को अतिरिक्त नजर रखनी पड़ती है। कुल मिलाकर तमाम समस्याओं के बावजूद कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है। मस्जिद रनवे के सामने खड़ी है और आम लोगों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। जरूरत पड़ने पर गिरजाघर, सिनेगॉग, पैगोडा, मंदिर आदि को हटाया जा सकता है, लेकिन पता नहीं क्यों किसी मस्जिद हटाए जाने का सवाल उठते ही झमेला होने लगता है।

धर्म और धर्म स्थलों को लेकर राजनीति करने वाले आम लोगों के बारे में जरा भी नहीं सोचते। वे धर्म के नाम पर राजनीति करने और अपने राजनीतिक मकसद को पूरा करने में ही खुश रहते हैैं। कोलकाता एयरपोर्ट के अधिकारियों ने मस्जिद को अन्यत्र स्थानांतरित करने और उसके लिए जगह देने के साथ उसी तरह की मस्जिद बनवाने के सुझाव रखे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया।

धर्मानुयायियों के साथ समस्या यह है कि वे दुनिया में सारी जगह पर कब्जा कर लेना चाहते हैं, सभी सरकारों को अपना प्रचारक बनाना चाहते हैं, सभी प्रतिष्ठानों को अपना समर्थक बनाना चाहते हैं, सभी लोगों को उन्हीं कहानियों में यकीन कराना चाहते हैं, जिनमें वे खुद यकीन करते हैं। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि बांग्लादेश के र्रोंहग्या शिविरों में करीब ढाई हजार मस्जिद-मदरसे बना दिए गए हैं। वहां रात को मौलवी उन्हें पाठ पढ़ाते हैं कि म्यामांर उन्हें वापस लेना चाहे तो भी वे वापस नहीं लौटें। यह एक साजिश है, धर्म के जरिये समाज को प्रभावित करने की साजिश। र्रोंहग्या बच्चों का ब्रेनवाश किया जा रहा है। धर्म की गंदी राजनीति से सिर्फ खुद को बचाने से ही काम नहीं चलेगा, समाज और राष्ट्र को भी बचाना होगा।

[ लेखिका जानी-मानी साहित्यकार एवं स्तंभकार हैैं ]

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