गुजरात से यूपी-बिहार के लोगों के पलायन के पीछे राजनीति का राक्षसी चेहरा सामने आया

राजनीति की गंदी प्रवृत्ति का नतीजा है गुजरात से हजारों उत्तर भारतीयों का पलायन।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 10 Oct 2018 12:02 AM (IST) Updated:Wed, 10 Oct 2018 05:00 AM (IST)
गुजरात से यूपी-बिहार के लोगों के पलायन के पीछे राजनीति का राक्षसी चेहरा सामने आया
गुजरात से यूपी-बिहार के लोगों के पलायन के पीछे राजनीति का राक्षसी चेहरा सामने आया

[ राजीव सचान ]: गुजरात से उत्तर भारतीयों और खासकर यूपी-बिहार के लोगों के पलायन ने कुछ वर्ष पहले दक्षिण भारत से पूर्वोत्तर के लोगों के पलायन की याद ताजा कर दी है। 2012 में असम में बोडो और मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच हिंसक टकराव के बाद दक्षिण भारत और खासकर बेंगलुरु एवं हैदराबाद में इस तरह की अफवाह फैलाई गई कि अगर असम के लोगों ने अमुक दिन तक शहर नहीं छोड़ा तो उन पर हमले होंगे। इसके बाद से पूर्वोत्तर के लोग दहशत में आ गए और वे दक्षिण भारत के शहरों से पलायन करने लगे। जब तक दक्षिण भारत की सरकारें सक्रिय होतीं तब तक पूर्वोत्तर के हजारों लोग वापसी के लिए ट्रेन पकड़ चुके थे। कुछ ऐसी ही स्थिति आज गुजरात की है, लेकिन गुजरात से यूपी-बिहार के लोगों के पलायन के पीछे महज अफवाह नहीं, बल्कि उन्हें दी जाने वाली खुली धमकियां भी हैैं।

यूपी-बिहार के लोगों और खासकर यहां के कामगारों को धमकाने के आरोप में सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। साबरकांठा जिले के हिम्मत नगर में एक बच्ची से दुष्कर्म में बिहार के एक युवक की गिरफ्तारी के बाद गुजरात में यूपी-बिहार के लोगों के खिलाफ सुनियोजित अभियान छेड़ा गया। इस अभियान के पीछे कांग्रेसी विधायक अल्पेश ठाकोर का हाथ माना जा रहा है। उनके कुछ ऐसे वीडियो सामने आए हैैं जिसमें वह बाहरी लोगों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देते दिखाई-सुनाई दे रहे हैैं। उनके पास ठाकोर सेना के नाम से अपनी एक सेना भी है। चौतरफा आरोपों से घिरने के बाद वह खुद को शांति और मैत्री के सबसे बड़े समर्थक के तौर पर पेश कर रहे हैैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनकी तथाकथित सेना के लोग उत्तर भारतीयों को धमकाने में शामिल रहे हैैं। अल्पेश जाति विशेष की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैैं। वह गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस में शामिल हुए थे। वह राहुल गांधी के खास हैैं और कुछ ही समय पहले उन्हें कांग्रेस सचिव और बिहार का सह प्रभारी बनाया गया।

अल्पेश ठाकोर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे की याद दिला रहे हैैं। दोनों में अंतर है तो बस इतना कि जहां राज ठाकरे डंके की चोट पर उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग उगलते हैैं वहीं अल्पेश ठाकोर उत्तर भारतीयों को धमकाने के आरोपों से घिरने के बाद खुद को शरीफ बताने की कोशिश कर रहे हैैं। जब राज ठाकरे के समर्थक मुंबई में गुंडागर्दी करते थे और पुलिस की कार्रवाई से बचे भी रहते थे तब यह माना जाता था कि उस समय की कांग्रेस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार उन्हें इसलिए बढ़ावा दे रही ताकि शिवसेना को कमजोर किया जा सके। सच्चाई जो भी हो, तथ्य यही है कि राज ठाकरे के समर्थक अपनी तमाम गुंडागर्दी के बाद भी कभी दंडित नहीं किए जा सके।

राज ठाकरे पर तो कभी कोई आंच ही आई नहीं आई और इसका कारण यह रहा कि महाराष्ट्र की सरकारों को इसका भय सताता रहा कि कहीं उनके खिलाफ कार्रवाई करने से वह राजनीतिक तौर पर और मजबूत न हो जाएं। आश्चर्य नहीं कि गुजरात सरकार भी इसी कारण अल्पेश ठाकोर के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से बचे। वैसे भी अपने देश र्में ंहसा के लिए अपने समर्थकों को भड़काने वाले नेताओं के खिलाफ मुश्किल से ही कोई कार्रवाई होती है। कभी होती भी है तो विरोधी दल यह विलाप करने लगते हैैं कि बदले की कार्रवाई की जा रही है।

जैसे इसकी उम्मीद कम है कि गुजरात सरकार अल्पेश ठाकोर के खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी वैसे ही इसकी भी कि राहुल गांधी अपने इस नए सिपहसालार के खिलाफ कुछ करेंगे, क्योंकि अल्पेश ने तो मोदी विरोध की उनकी राजनीति को धार देने का ही काम कर दिखाया है। राज ठाकरे और अल्पेश ठाकोर जैसे तथाकथित नेताओं का उभार भारतीय राजनीति के कुरुप चेहरे को उजागर करता है। ऐसे तत्व इसलिए मनमानी करने में सफल होते रहते हैैं, क्योंकि कोई उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।

अगर कल को गुजरात सरकार अल्पेश के खिलाफ कोई कार्रवाई करे भी तो यह शोर मचते देर नहीं लगेगी कि भाजपा अपने राजनीतिक विरोधियों का दमन करने में जुट गई है। यह भी स्मरण रखें कि जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता खत्म करने की एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी तो उसने खुद कोई फैसला करने के बजाय याचिकाकर्ता को उस चुनाव आयोग के पास जाने को कहा जिसके पास यह अधिकार ही नहीं कि किसी दल की मान्यता खत्म की जा सके। कायदे से अल्पेश ठाकोर और राज ठाकरे जैसे तत्वों के लिए राजनीति में कोई जगह ही नहीं चाहिए, लेकिन आज ऐसे लोग ही राजनीति में खूब दिख रहे हैैं।

समस्या केवल यह नहीं है कि ऐसे तथाकथित नेता अपने समर्थक जुटा लेते हैैं, बल्कि यह भी है कि कुछ राजनीतिक दल उन्हें संरक्षण देने के लिए सदैव तत्पर नजर आते हैैं। वैसे तो इस काम में कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं, लेकिन कांग्रेस कुछ ज्यादा ही आगे दिखती है। गुजरात की घटना पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का ट्वीट यही इंगित करता है कि उन्हें इसकी परवाह नहीं कि इस राज्य में उत्तर भारतीयों के खिलाफ दहशत किसने फैलाई। उन्होंने चतुराई दिखाते हुए वहां की घटनाओं को बेरोजगारी का नतीजा बता दिया। यह तय है कि कांग्रेस को इससे खुशी ही होगी कि गुजरात अथवा अन्य भाजपा शासित राज्यों में ऐसी घटनाएं हों जिनसे मोदी की बदनामी हो और उन्हें कठघरे में खड़ा करने में आसानी हो।

भले ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में पक्ष-विपक्ष को लोकतंत्र रूपी रथ के पहियों की तरह देखा जाता हो, लेकिन सच यही है कि दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैैं और एक-दूजे की नाकामी में ही अपना हित देखते हैैं, भले ही इससे समाज और देश का नुकसान हो। इसी कारण लोकतांत्रिक व्यवस्था का मौजूदा स्वरूप लोक हितों की बलि लेता रहता है। भारतीय लोकतंत्र की बेहतरी इसी में है कि उसके गुण गाते समय इस यथार्थ को भी देखा जाए कि भारत के राजनीतिक दल अपने संकीर्ण स्वार्थों को पूरा करने के लिए किसी भी सीमा तक गिरने और इस क्रम में अपने ही लोगों के हितों से खिलवाड़ करने को तैयार रहते हैैं। राजनीति की इसी गंदी प्रवृत्ति का नतीजा है गुजरात से हजारों उत्तर भारतीयों का पलायन।

[ लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैैं ]

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