आतंकी अजहर पर मेहरबान चीन: भारत को अपनी चीन नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए

अगर प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने के नाम पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उलटे-सीधे ट्वीट करेंगे तो उसका लाभ चीन और पाकिस्तान ही उठाएंगे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 17 Mar 2019 12:23 AM (IST) Updated:Sun, 17 Mar 2019 05:55 AM (IST)
आतंकी अजहर  पर मेहरबान चीन: भारत को अपनी चीन नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए
आतंकी अजहर पर मेहरबान चीन: भारत को अपनी चीन नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए

[ संजय गुप्त ]: पाकिस्तान में पोषित और संरक्षित आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र की पाबंदी लगाने के लिए आए प्रस्ताव पर चीन ने एक बार फिर अड़ंगा लगा दिया। यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के तीन स्थाई सदस्यों फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ सभी अस्थाई सदस्यों की ओर से पेश किया गया था। चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चौथी बार मसूद अजहर का बचाव करके न केवल भारत को नीचा दिखाया, बल्कि विश्व समुदाय को ठेंगा दिखाते हुए आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई को कमजोर करने का भी काम किया। वह इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाले जैश ने ही भारतीय संसद और पठानकोट एयरबेस पर हमला कराया था।

वीटो पावर

चीन ने मसूद अजहर पर पाबंदी के प्रस्ताव को तकनीकी आधार पर रोका और यह दलील दी कि इस मामले में सभी पक्षों को स्वीकार्य समाधान पर पहुंचा जाना चाहिए। बाद में उसने यह सफाई दी कि वह मसूद अजहर के खिलाफ सुबूतों की जांच के लिए कुछ समय चाहता है। यह बहानेबाजी के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि चीन बीते दस सालों से मसूद अजहर का बचाव कर रहा है और वह भी तब जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस आतंकी सरगना के संगठन पर पाबंदी लगा रखी है। वह एक कुख्यात आतंकी का साथ इसीलिए दे रहा है ताकि पाकिस्तान को अपने पाले में रखा जा सके और उसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके। पाकिस्तान को अपना मोहरा बनाने के फेर में वह वहां के आतंकी सरगना का बचाव यह जानते हुए भी कर रहा है कि सारी दुनिया में यह देश आतंकवाद के गढ़ के रूप में बदनाम है।

आतंकवाद पर दोहरा मापदंड

आतंकवाद पर दोहरा मापदंड अपनाकर चीन न केवल दक्षिण एशिया में अशांति को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि अपने गैर जिम्मेदाराना रवैये का प्रदर्शन भी कर रहा है। आज इस पर विचार होना ही चाहिए कि आखिर आतंकवाद की पैरवी करने वाले ऐसे गैर जिम्मेदार देश को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य क्यों होना चाहिए? दुर्भाग्य से चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता भारत के ढुलमुलपन के कारण ही मिली थी। विश्व के कई देश यह नहीं चाहते थे कि विस्तारवादी प्रवृत्ति वाला चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बने और वीटो पावर से लैस हो, लेकिन भारत ने इन देशों का साथ देना जरूरी नहीं समझा।

विस्तारवादी मानसिकता

चीन आज भी अपनी विस्तारवादी और एकाधिकारवादी मानसिकता का परिचय दे रहा है। एक ओर वह दक्षिण चीन सागर में मनमानी कर रहा है तो दूसरी ओर गरीब एशियाई और अफ्रीकी देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसा रहा है। श्रीलंका और मालदीव इसके हालिया उदाहरण हैं कि चीन कैसे छोटे देशों को कर्ज देकर उनका शोषण करने में जुटा है। पाकिस्तान में बन रहा आर्थिक गलियारा भी चीन की विस्तारवादी नीति का ही एक नमूना है। चीन मसूद अजहर का कवच इसीलिए बन रहा है ताकि इस गलियारे के निर्माण के खिलाफ पाकिस्तान के अंदर से कोई आवाज न उठ सके।

मसूद अजहर का बचाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आने के बाद से ही चीन को साधने की कोशिश करते आए हैं। बीच में चीन के साथ दोस्ताना माहौल भी बना और उसके साथ कुछ अहम समझौते भी हुए, लेकिन डोकलाम विवाद के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में तल्खी आ गई। डोकलाम में चीनी सेना की ओर से सड़क निर्माण पर भारत ने सख्ती दिखाकर चीन के मंसूबों को विफल कर दिया। चीन की ओर से डोकलाम से अपने कदम पीछे खींचने के बाद वुहान में दोनों देशों के नेतृत्व के बीच जो समझबूझ बनी उसे चीन ने मसूद अजहर का बचाव करके ताक पर ही रखने का काम किया है।

चीन से सीमा विवाद

चीन से सीमा विवाद के बावजूद भारत ने चीनी कंपनियों को भारत में व्यापार करने की एक तरह से खुली छूट दे रखी है। उसकी तमाम कंपनियां भारत में सड़क, पुल आदि बनाने का काम कर रही हैैं। इसी तरह वे भारत में मोबाइल फोन भी बना रही हैैं। इसके चलते मोबाइल फोन के बाजार में चीनी कंपनियों का दबदबा सा है। व्यापार संतुलन भी पूरी तौर पर चीन के पक्ष में है। वह भारत से आयात कम कर रहा है और निर्यात अधिक। चीन यह अच्छी तरह जानता है कि भारत उसके लिए एक बड़ा बाजार है और उसकी कंपनियों को भारतीय बाजार की जरूरत है। वे इस जरूरत का लाभ भी उठा रही हैैं, लेकिन इस सबके बावजूद वह पाकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने में लगा हुआ है। चीन को यह जो अहंकार है कि वह अपनी आर्थिक ताकत के बल पर हर तरह की मनमानी कर सकता है उसे दूर करने के लिए भारत को कुछ उपाय करने ही होंगे। इस क्रम में चीनी आयात पर अंकुश लगाने के बारे में सोचा जाना चाहिए।

एयर स्ट्राइक

पुलवामा के हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर जो एयर स्ट्राइक की उससे मोदी सरकार की विदेश नीति का एक नया आयाम सामने आया, लेकिन मसूद अजहर को लेकर चीन के रवैये को देखते हुए यही कहा जाएगा कि उसे साधने की नीति कारगर साबित नहीं हो रही है। यह ठीक है कि चीन के पास भारत से बड़ी सेना और आर्थिक मजबूती है, लेकिन चीन को यह पता होना चाहिए कि वास्तविक विश्व शक्ति बनने का उसका सपना भारत के सहयोग के बिना पूरा नहीं होने वाला। अब जब यह और साफ हो गया है कि चीन ने फिर से भारत विरोधी रवैया अपना लिया है और वह पाकिस्तान का अनुचित तरीके से संरक्षण करने पर आमादा है तब फिर भारत को अपनी चीन नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए।

ऐतिहासिक भूलें

यह ठीक है कि भारत में इस समय लोकसभा चुनाव हो रहे हैं और राजनीतिक दल आरोप-प्रत्यारोप में तमाम लक्ष्मण रेखाओं का भी उल्लंघन कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह तो समझना ही चाहिए कि चीन और पाकिस्तान को लेकर उनके अंतरविरोध कुल मिलाकर भारत के हितों को ही नुकसान पहुंचाने का काम करेंगे। कांग्रेस मोदी सरकार की चीन और पाकिस्तान संबंधी नीति को लेकर कुछ ज्यादा ही हमलावर है, जबकि सच्चाई यह है कि इन दोनों देशों के मामले में पहले की कांग्रेस सरकारों ने ऐतिहासिक भूलें की हैं।

 चुनावी लाभ

अगर प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने के नाम पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उलटे-सीधे ट्वीट करेंगे तो उसका लाभ चीन और पाकिस्तान ही उठाएंगे। राहुल गांधी ने चुनावी लाभ लेने के लिए नरेंद्र मोदी के चीनी राष्ट्रपति के प्रति दोस्ताना व्यवहार को जिस ओछे ढंग से मुद्दा बनाया उसकी कहीं कोई आवश्यकता नहीं थी। चुनाव के उपरांत नई दिल्ली में जो भी सरकार बने उसे अब चीन को उसके कमजोर पहलुओं पर घेरना होगा। चीन तिब्बत और ताइवान के मामले पर अत्यधिक संवेदनशील है। इसी तरह वह उइगर मुसलमानों के साथ अमानवीय व्यवहार को लेकर भी कठघरे में है। भारत अब तक इन सब मसलों पर एक नरम रवैया रखता आया है। अब समय आ गया है कि चीन को उसी की भाषा में जवाब देते हुए उसकी करतूतों के खिलाफ आवाज उठाई जाए।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]

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