एकता-अखंडता के स्मरण का उत्सव, हैदराबाद की मुक्ति अनसुनी संघर्ष गाथा सुनाना भी जरूरी

तुष्टीकरण की यह राजनीति इतनी मजबूत है कि लोग भूल जाते हैं कि एक पत्रकार शोयाबुल्लाह खान ने निजाम की सेना के अत्याचारों पर लिखा तो निजाम ने उनके दोनों हाथ काट दिए। इसलिए यह हिंदू-मुस्लिम को तोड़ने का नहीं बल्कि देश की एकता-अखंडता और स्वतंत्रता का उत्सव है।

By Praveen Prasad SinghEdited By: Publish:Thu, 15 Sep 2022 11:25 PM (IST) Updated:Thu, 15 Sep 2022 11:25 PM (IST)
एकता-अखंडता के स्मरण का उत्सव, हैदराबाद की मुक्ति अनसुनी संघर्ष गाथा सुनाना भी जरूरी
हैदराबाद की मुक्ति हमारे इतिहास की ऐसी अनसुनी संघर्ष गाथा है, जिसे सुनाना आवश्यक है।

जी. किशन रेड्डी : भारत ने पिछले महीने ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आजादी के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित किया और ‘पंच प्रण’ की बात की। पांच प्रणों में से एक प्रण है कि हमें गुलामी के किसी भी अंश को अब रहने नहीं देना है। उन्होंने ‘स्व’ का भाव प्रेरित करते हुए अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व करने की बात भी कही। प्रधानमंत्री ने महसूस किया कि यह औपनिवेशिक मानसिकता हमें एक राष्ट्र के रूप में अपनी सामर्थ्य का संपूर्ण उपयोग करने से रोक रही है। आजादी के इतने लंबे समय के बाद भी देश में ऐसी कई घटनाओं को छुपाया गया, जिनके सभी पहलुओं पर सभ्यतागत लोकाचार या वास्तव में एक खुली चर्चा और सही बातचीत की आवश्यकता थी। भारत के इतिहास में हैदराबाद की मुक्ति भी एक ऐसी ही घटना है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘हैदराबाद मुक्ति स्मरणोत्सव’ जैसी पहल गुलामी की मानसिकता से मुक्ति की दिशा में एक सार्थक कदम है। केंद्र सरकार ने इस स्मरणोत्सव को वर्ष भर मनाने का निर्णय किया है। इस अवसर पर 17 सितंबर को गृहमंत्री अमित शाह हैदराबाद में राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे और वर्ष भर चलने वाले समारोहों का शुभारंभ करेंगे। यह स्मरणोत्सव हैदराबाद मुक्ति के लिए संघर्षरत नेताओं और बलिदान हुए वीरों के लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। कोंडा लक्ष्मण बापूजी, शोएब उल्लाह खान, नारायण राव पवार, स्वामी रामानंद तीर्थ, कोमाराम भीम, सुरवरम प्रतापरेड्डी, वंदेमातरम् रामचंद्र राव, रामजी गोंड, भाग्य रेड्डी वर्मा और चकली इलम्मा जैसे अनेक वीरों के बलिदान हमारी सामूहिक स्मृति से धुंधले होते दिखाई दे रहे हैं। यदि इन महापुरुषों के महान कार्यों और अभूतपूर्व त्यागों को पुस्तकों, स्मारकों और हमारी सामूहिक स्मृतियों में अमर नहीं रखा गया तो इनके योगदान पूरी तरह से भुला दिए जाएंगे। इस दृष्टि से इस स्मरणोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।

15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब 562 रियासतों के भारतीय संघ में विलय होने की घोषणा हुई। उस समय गुजरात के जूनागढ़, कश्मीर और हैदराबाद में इसका विरोध हुआ। हैदराबाद में सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान के क्रूर शासन से जनता त्रस्त थी। निजाम की रजाकार सेना उसके निर्देशों पर दिनोंदिन उग्र हो रही थी और उसने जन विद्रोह को कुचलने के लिए हरसंभव प्रयास किया। लोगों को लूटा, डराया, मारा और महिलाओं का यौन शोषण किया।

स्थानीय लोगों की इच्छा के विरुद्ध निजाम हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ से बाहर रखना चाहता था। वह हैदराबाद रियासत को एक स्वतंत्र देश बनाना चाहता था या पाकिस्तान में विलय करना चाहता था। निजाम के अनुसार हैदराबाद रियासत में वर्तमान तेलंगाना, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के औरंगाबाद, बीड़, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद एवं परभणी और वर्तमान कर्नाटक के उत्तर-पूर्वी जिले बीदर, कालाबुरागी, कोप्पल, विजयनगर, यादगीर और रायचूर भी शामिल थे। इसलिए हैदराबाद की मुक्ति आधुनिक भारत के इतिहास में न केवल तेलंगाना, बल्कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के लोगों के लिए भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है।

उस दौरान रजाकारों द्वारा की जा रही हिंसा के निशाने पर राज्य के आम नागरिक थे। वारंगल में एक छोटे से गांव भैरणपल्ली के हजारों लोगों ने रजाकारों की गोलियां खा कर अपने प्राणों की आहुति दी। इस प्रकार की घटना करीमनगर, पार्कल शहर, रंगपुरम गांव और लक्ष्मीपुरम आदि गांवों में भी हुई। ये अत्याचार इतने दर्दनाक थे कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने रंगपुरम और लक्ष्मीपुरम गांवों की घटनाओं को दक्षिण भारत का ‘जलियांवाला बाग’ बताया। मगर इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि कुछ राजनीतिक दल 17 सितंबर के इस स्मरणोत्सव को निजाम का अपमान करने और मुस्लिम समुदाय को नाराज करने के साथ जोड़ रहे हैं।

तुष्टीकरण की यह राजनीति इतनी मजबूत है कि लोग भूल जाते हैं कि एक पत्रकार शोयाबुल्लाह खान ने निजाम की सेना के अत्याचारों पर लिखा तो निजाम ने उनके दोनों हाथ काट दिए। इसलिए यह हिंदू-मुस्लिम को तोड़ने का नहीं, बल्कि देश की एकता-अखंडता और स्वतंत्रता का उत्सव है। यह निजाम के आततायी शासन से मुक्ति का उत्सव है। यह गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का उत्सव है, लेकिन इस स्मरणोत्सव से तेलंगाना के वर्तमान मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की सरकार खुश दिखाई नहीं दे रही। इस तरह से वह अपनी सहयोगी मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआइएम) और उसके शर्मनाक अतीत की ही रक्षा कर रही है।

दरअसल भारत की स्वतंत्रता के समय एमआइएम के तत्कालीन नेता कासिम रिजवी हैदराबाद डेक्कन को एक स्वतंत्र इस्लामी राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपने लगभग 1,50,000 कार्यकर्ताओं को निजाम की नियमित सेना में शामिल कराया था। रजाकार बनने के बाद उन्होंने हैदराबाद रियासत में नरसंहार किया था।

वास्तव में हैदराबाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का ऋणी है। उस समय यदि वह भारतीय सेना को ‘आपरेशन पोलो’ का आदेश नहीं देते तो शायद आज हैदराबाद पाकिस्तान का हिस्सा होता या फिर अलग देश होता। इसलिए इस ऐतिहासिक संघर्ष की गाथा को देश की जनता को बताना जरूरी है, ताकि ये आदर्श आज के युवाओं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक प्रेरणा पुंज के रूप में काम करें।

(लेखक केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री हैं)

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