आंकड़ों की बाजीगरी वाला बजट: हिसाब-किताब की जादूगरी से राजकोषीय घाटे को कम दिखाया

वास्तविक राजकोषीय घाटा 1000000 करोड़ रुपये का होगा न कि 800000 करोड़ रुपये का जैसा कि बजट में बताया गया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 03 Feb 2020 02:02 AM (IST) Updated:Mon, 03 Feb 2020 02:02 AM (IST)
आंकड़ों की बाजीगरी वाला बजट: हिसाब-किताब की जादूगरी से राजकोषीय घाटे को कम दिखाया
आंकड़ों की बाजीगरी वाला बजट: हिसाब-किताब की जादूगरी से राजकोषीय घाटे को कम दिखाया

[ विवेक कौल ]: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को जो बजट पेश किया उस बजट के अनुमान काफी कमजोर हैं। वित्त वर्ष 2019-20 की तरह यह सवाल भी उठेगा कि 2020-21 के लिए पेश बजट को लेकर कही गई बातें क्या वाकई धरातल पर उतर पाएंगी! इसे विंदुवार तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।

कर राजस्व में 12 फीसद इजाफे की उम्मीद, पिछले बजट में सरकार की कमाई काफी कम रही

पहला, बजट में आगामी वित्त वर्ष में सरकारी आमदनी और खर्चों की योजना का हिसाब-किताब है। सरकार को उम्मीद है कि वह वर्ष 2020-21 में लगभग 24.23 लाख करोड़ रुपये का कुल कर राजस्व जुटा लेगी। इसमें कॉरपोरेट कर, व्यक्तिगत आयकर, वस्तु एवं सेवा कर, आबकारी कर, सीमा शुल्क आदि तमाम तरह के कर शामिल होते हैं। केंद्र सरकार इस कमाई का दो-तिहाई हिस्सा अपने पास रखती है और बाकी राज्यों को बांट देती है। केंद्र को उम्मीद है कि वर्ष 2020-21 में उसके कुल कर राजस्व में 12 फीसद का इजाफा होगा। फरवरी 2019 में पेश अंतरिम बजट के तथ्यों के आईने में सरसरी तौर पर पूर्वानुमान ठीक-ठाक लगता है। उस समय सरकार ने कुल कर राजस्व में वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान 18.3 फीसद की वृद्धि का अनुमान लगाया था, लेकिन सरकार की कमाई उससे काफी कम रही है।

कर संग्रह में कमी कहीं सरकार की उम्मीदों पर पानी न फेरदे

इस बीच केंद्र सरकार उम्मीद कर रही है कि वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान उसे 21.63 लाख करोड़ रुपये के कुल कर राजस्व की कमाई होगी, लेकिन परेशानी यह है कि चालू वित्त वर्ष के शुरुआती नौ महीनों में महज 13.83 लाख करोड़ रुपये यानी कुल सालाना लक्ष्य के 63.9 फीसद की ही आमदनी हो पाई है। यही नहीं, समीक्षाधीन अवधि में जो कर संग्रह हुआ है, वह भी उससे एक साल पहले यानी अप्रैल से दिसंबर 2018 की तुलना में 2.9 फीसद कम है।

इस साल सरकार का कर संग्रह 21.63 लाख करोड़ रुपये से कम होने का अंदेशा

अगर हम इन्हें ध्यान में रखें तो बेहिचक कह सकते हैं कि इस साल सरकार का कर संग्रह 21.63 लाख करोड़ रुपये से कम होने का अंदेशा है। ऐसे हालात में अगले वित्त वर्ष में 24.23 लाख करोड़ रुपये का कर राजस्व अर्जित करने के लिए कर राजस्व जुटाने की वृद्धि दर बढ़ाने की दरकार होगी।

बैंकों का अस्तित्व बचाए रखने के लिए सरकार ने 2,61,443 करोड़ का निवेश करना पड़ा

दूसरा, एक अप्रैल, 2017 और 31 मार्च, 2020 के बीच सरकारी बैंकों के परिचालन के लिए सरकार 2,61,443 करोड़ रुपये झोंक चुकी होगी। इन बैंकों के सिर पर पहले से ही फंसे हुए कर्जों का भारी बोझ है। ये वे कर्ज होते हैं जिन्हें 90 या इससे अधिक दिनों तक नहीं चुकाया जाता। इस कारण सरकार को अपने बैंकों का अस्तित्व बचाए रखने के लिए लगातार निवेश करना पड़ रहा है।

सरकार को बैंकों को प्राणवायु देते रहना होगा और निवेश करते रहना होगा

सितंबर 2019 तक सरकारी बैंकों के 7,79,347 करोड़ रुपये ऐसे फंसे हुए कर्जों की भेंट चढ़े हुए थे। कहने का मतलब यही है कि सरकार को बैंकों को प्राणवायु देते रहना होगा और निवेश करते रहना होगा। मुसीबत यह भी है कि बैंकों की अपने फंसे हुए कर्जों की वसूली इतनी लचर है कि वे खुद अपने दम पर बचे नहीं रह सकते।

बैंक अपने फंसे हुए कर्जों को वसूलने में ढीली

वर्ष 2018-19 में बैंक अपने फंसे हुए कर्जों मे से 15.5 प्रतिशत ही वापस हासिल कर पाए, लेकिन सरकार को यह लगता है कि इन बैंकों में सब ठीक-ठाक है। इसलिए वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में केवल दो लाख रुपये (जी हां, केवल दो लाख रुपये) निवेश करने का प्रावधान किया है, जो कि नहीं के बराबर है। पूर्वानुमान है कि यह कहीं ज्यादा ही होगा।

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचकर सरकार को मोटी रकम हासिल होगी

तीसरा, केंद्र सरकार 2020-21 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचकर मोटी कमाई करने का दांव लगा रही है। उसे आशा है कि इस तरीके से 2,10,000 करोड़ रुपये हाथ में आ सकते हैं। आशा है कि इस रकम में से 90,000 करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के विनिवेश यानी बिक्री से आएंगे। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार आइडीबीआइ बैंक में अपनी बाकी हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है।

एलआइसी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराने की तैयारी 

इसके साथ ही भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआइसी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराने की तैयारी है। इससे काफी मोटी रकम हासिल होगी। यहां अच्छी बात यह है कि भारतीय जीवन बीमा निगम को सूचीबद्ध करने से बीमा निगम की पारदर्शिता बढ़ेगी। यहां सरकारी कदम पर अंगुली उठाना शायद किसी के लिए संभव नहीं है, पर पूर्व में इस मोर्चे पर सरकारी प्रदर्शन का हिसाब-किताब भी देखना होगा।

सरकार जमीन की बिक्री की योजना बजट में पेश करने से चूक गई

वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचकर एक लाख पांच हजार करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई थी, लेकिन इसमें संशोधन कर इसे 65,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। आखिरकार चालू वित्त वर्ष के शुरुआती नौ महीनों में कुल कमाई 18,100 करोड़ रुपये ही हो पाई। समस्या यह है कि इस ओर सरकार का ध्यान वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में ही जा सका। जाहिर है कि इसमें बदलाव की जरूरत है। यही नहीं सरकार को एक विनिवेश कैलेंडर बनाना चाहिए और जहां तक संभव हो उसे इस पर अमल भी करना चाहिए। इस बार बजट में सरकार अपने पास पड़ी भारी-भरकम जमीन की बिक्री की योजना पेश करने से भी चूक गई।

बजट में एफसीआइ को 1,15,000 करोड़ रुपये की खाद्य सब्सिडी की व्यवस्था

चौथा, 2020-21 के लिए सरकार ने 1,15,000 करोड़ रुपये की खाद्य सब्सिडी की व्यवस्था की है। इसका मतलब है कि भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआइ को एक बार फिर फिसड्डी साबित कर दिया गया है। खाद्य निगम को वास्तव में 3,08,680 करोड़ रुपये की सब्सिडी की जरूरत है। इसे लगभग 2,00,00 करोड़ रुपये की कमी का सामना करना पड़ेगा। खाद्य निगम चावल और गेहूं सीधे किसानों से खरीद कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत एकदम सस्ती दरों पर बेचता है। सरकार को इसकी भरपाई के लिए सब्सिडी देने की जरूरत है, ताकि एफसीआइ का कामकाज चलता रहे। इस सरकारी रकम की कमी को पूरा करने के लिए खाद्य निगम को वित्तीय प्रणाली से उधार लेना पड़ेगा।

1,36,600 करोड़ रुपये राष्ट्रीय लघु बचत कोष देगा, बाकी पैसा बैंकों से उधार लेना होगा

बजट के अनुसार 1,36,600 करोड़ रुपये राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) मुहैया कराएगा। राष्ट्रीय बचत स्कीमों में लगाया गया सारा पैसा इसी के पास जाता है। बाकी पैसा बैंकों से उधार लेना होगा। देखा जाए तो यह पैसा खाद्य निगम को नहीं, बल्कि भारत सरकार को उधार लेना चाहिए।

वास्तविक राजकोषीय घाटा 10,00,000 करोड़ रुपये का होगा, न कि 8,00,000 करोड़ रुपये का

हिसाब-किताब की इस जादूगरी के जरिये सरकार राजकोषीय घाटे को 2,00,000 करोड़ रुपये कम करने में सफल हुई है। अगर इसको हिसाब में लिया जाए तो वास्तविक राजकोषीय घाटा 10,00,000 करोड़ रुपये का होगा, न कि 8,00,000 करोड़ रुपये का, जैसा कि बजट में बताया गया है। तो फिर इसके मायने ये हुए कि वास्तविक वित्तीय घाटा बताए गए घाटे से कम से कम लगभग 25 प्रतिशत ज्यादा है।

कुल मिलाकर यह बजट भी पहले जैसा ही रहा जिसमें भाषण लंबा था, तत्व कम थे।

( स्तंभकार अर्थशास्त्री एवं ईजी मनी ट्राइलॉजी के लेखक हैं )

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