विभूतियों के सम्मान का अद्भुत क्षण, एक साथ देश की पांच विभूतियों को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना अनूठा अवसर

चौधरी चरण सिंह भी भारत रत्न सम्मान के सच्चे हकदार थे। उनका लंबा समय कांग्रेस में गुजरा लेकिन जनहित के प्रश्नों पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। 1935 में कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने कृषि पुत्रों के लिए सरकारी सेवाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर सभी को चकित कर दिया था। 1952 में उनके द्वारा किए गए भूमि सुधार समूचे भारत के लिए नजीर बने।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya Publish:Fri, 29 Mar 2024 11:45 PM (IST) Updated:Fri, 29 Mar 2024 11:45 PM (IST)
विभूतियों के सम्मान का अद्भुत क्षण, एक साथ देश की पांच विभूतियों को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना अनूठा अवसर
विभूतियों के सम्मान का अद्भुत क्षण (Photo Jagran)

केसी त्यागी। आज देश की पांच विभूतियों को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जा रहा है। परंपरा रही है कि महापुरुषों को दिए गए इस सम्मान का सभी दलों, समूहों द्वारा स्वागत किया जाता है, लेकिन अब इस परंपरा की भी अनदेखी हो रही है और वह भी तब जब मोदी सरकार ने वैचारिक मान्यताओं से इतर जाकर भारत रत्न विजेताओं का चयन किया।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, नरसिंह राव, डॉ. एमएस स्वामीनाथन, लालकृष्ण आडवाणी के साथ-साथ सामाजिक न्याय के नायक कर्पूरी ठाकुर एक साथ भारत रत्न से सम्मानित होने जा रहे हैं। यह एक दुर्लभ अवसर है, जब एक साथ पांच विभूतियां भारत रत्न से सम्मानित होंगी। लालकृष्ण आडवाणी संघ प्रचारक के साथ-साथ, जनसंघ, जनता पार्टी, भाजपा और एनडीए के संस्थापक के साथ देश के गृहमंत्री एवं उप-प्रधानमंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं।

अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने उच्च आदर्शों का पालन करते हुए लोगों को कभी निराश नहीं किया। जैन हवाला कांड में नाम आने के बाद उन्होंने उच्च आदर्शों का पालन कर स्वच्छ राजनीतिक परंपरा को नई ऊंचाई दी। राजनीतिक शुचिता का पालन करने वाले उनके जैसे नेता दुर्लभ हैं। आज देश आर्थिक नीतियों में बदलाव कर विकास की जिन ऊंचाइयों को छू रहा है, उसका श्रेय नरसिंह राव को जाता है। वे दिन याद करें, जब हमारे खजाने का सोना भी कर्ज चुकाने में प्रयोग हो चुका था।

तब राव ने कांग्रेस की परंपरागत नीतियों को तिलांजलि देकर नव-उदारवाद की व्यवस्था स्थापित की। उसके चलते ही आज हम विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था हैं और वह दिन दूर नहीं जब तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनेंगे। यद्यपि नरसिंह राव का प्रधानमंत्री कार्यकाल कई चुनौतियों से भरा रहा। उनके गांधी परिवार से मतभेद जगजाहिर थे। इन मतभेदों से उपजी मुश्किलों के बाद भी एक स्वावलंबी राष्ट्र के निर्माण के लिए उन्होंने साहसिक फैसले लिए। अफसोस कि कांग्रेस उन्हें यथोचित सम्मान नहीं दे सकी।

डॉ. एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। मुझे वह दौर स्मरण आता है, जब गेहूं, चावल, चीनी आदि आयात करने पड़ते थे। कई अवसरों पर तो मालवाहक जहाजों की देरी भुखमरी का अंदेशा पैदा कर देती थी। ऐसे समय फसलों की नई प्रजातियों को विकसित कर कृषि को स्वावलंबी बनाने में स्वामीनाथन ने बड़ी भूमिका निभाई।

आज भारत गेहूं, धान, चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक है। उनके नेतृत्व में गठित स्वामीनाथन आयोग ने किसानों की किस्मत बदलने का ऐतिहासिक कार्य किया। फसलों के लाभकारी मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया उनके द्वारा ही प्रारंभ की गई। इसमें कृषि भूमि के किराए से लेकर मजदूरी के आकलन को लेकर मूल्य तय करने का प्रविधान है।

कुछ लोग चौधरी चरण सिंह एवं कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले को इसलिए राजनीति से प्रेरित मान रहे हैं, क्योंकि इसके बाद आइएनडीआइए का विघटन हुआ, लेकिन राजनीति के सरोकारों से अनभिज्ञ लोग ही नकारात्मक प्रतिक्रिया कर रहे हैं। वे इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि नीतीश कुमार पिछले तीन दशकों से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग कर रहे थे।

डॉ. आंबेडकर के बाद कर्पूरी ठाकुर सामाजिक बराबरी के आंदोलन के पर्याय बने। 24 जनवरी को जब उनका जन्मदिन समता और स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाया जाता है, तब उसमें वे नेता भी शामिल होते हैं, जो उनके जीवन काल में उनके विचारों के विरोधी रहे। समताक स्थापना और स्वाभिमान से जीने के सपने को सच में बदलने का काम कर्पूरी ठाकुर ने ही किया। उन्होंने दुर्बल एवं साधनहीन लोगों में चेतना लाने का काम किया। कर्पूरी जी जिन विचारों को जमीन पर उतारने के लिए समर्पित रहे, वे डॉ. लोहिया द्वारा प्रतिपादित थे।

लोहिया ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि योग्यता अवसर से आती है। चूंकि जाति भेद के चलते सैकड़ों वर्षों तक शूद्रों और पिछड़ों को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिला, इसलिए उनकी योग्यता एवं क्षमता का विकास नहीं हो पाया। इसीलिए कर्पूरी जी इन वर्गों को विशेष अवसर देना चाहते थे। कुछ लोग अभी भी अज्ञानतावश बहस चलाते हैं कि 75 वर्ष बाद भी आरक्षण और विशेष अवसर की क्या आवश्यकता है? उन्हें वे आंकड़े देखने चाहिए, जो यह बताते हैं कि इन वर्गों का कोटा न सिर्फ अधूरा है, बल्कि उच्च पदों पर उनकी नियुक्तियां भी न के बराबर हैं।

केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण पद अभी भी उनकी पहुंच से बाहर हैं। ऐसी स्थितियों को देखते हुए कर्पूरी ठाकुर नवंबर 1978 में बिहार विधानसभा में पिछड़ी जातियों के आरक्षण का प्रस्ताव लाए थे। इस पर बिहार समेत देश के अन्य हिस्सों में भूचाल सा आ गया और जनता पार्टी दोफाड़ हो गई। इस प्रस्ताव में अति पिछड़ी जातियों के लिए 12, सामान्य पिछड़ों के लिए 8, महिलाओं और सामान्य क्षेत्र के दुर्बल वर्गों के लिए 3-3 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान था। महिला एवं सामान्य वर्ग के आरक्षण का यह पहला प्रयास था। सामाजिक न्याय के इस संघर्ष में कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री पद खोना पड़ा, लेकिन आज उनके ही आरक्षण फार्मूले पर अमल हो रहा है। जस्टिस रोहिणी कमीशन का गठन इसका प्रमाण है।

चौधरी चरण सिंह भी भारत रत्न सम्मान के सच्चे हकदार थे। उनका लंबा समय कांग्रेस में गुजरा, लेकिन जनहित के प्रश्नों पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। 1935 में कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने कृषि पुत्रों के लिए सरकारी सेवाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर सभी को चकित कर दिया था। 1952 में उनके द्वारा किए गए भूमि सुधार समूचे भारत के लिए नजीर बने। उन्होंने किसान हितों को राजनीति के केंद्र में लाने का काम किया और गैर-कांग्रेसवाद की राजनीति को बल दिया।

(लेखक जनता दल-यू के महासचिव हैं)

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