Agriculture Reforms Bill 2020: खुशहाली की राह खुलने की जगी उम्मीद

नए कृषि कानूनों से गिनती के ही कुछ राज्यों में किसानों की एक खास लॉबी खफा है क्योंकि मंडी व्यवस्था के तहत सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले गेहूं और धान का करीब 80 फीसद हिस्सा यही लॉबी बेचती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 08:57 AM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 08:59 AM (IST)
Agriculture Reforms Bill 2020: खुशहाली की राह खुलने की जगी उम्मीद
ये कानून वास्तव में क्रांतिकारी हैं और आने वाले वर्षो में इनका बेहतर परिणाम देश को देखने को मिलेगा।

लोकमित्र। किसानों के प्रति सहानुभूति रखने वाले अधिकांश नेताओं, कृषि अर्थशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों की ओर से अक्सर यह प्रतिक्रिया मिलती रही है कि एक छोटे से छोटे उद्योगपति को भी अपने उत्पादों की कीमत तय करने का हक होता है, लेकिन हमारे देश में किसान को यह हक नहीं है। देखा जाए तो हाल में तीन कृषि कानून इसी आकांक्षा की पूíत करते हैं। इन कानूनों के चलते अब किसान न केवल अपने उत्पादों को मंडी में या मंडी के बाहर कहीं भी बेच सकता है, बल्कि वह अपने उत्पादों की कीमत भी खुद ही तय कर सकता है।

किसान को अब तक के इतिहास में पहली बार यह आजादी मिली है कि वह अपने उत्पाद की कीमत खुद तय करे और साथ ही उस जहां मन करे या अधिक मूल्य मिले, उसे बेच सके। पूरा देश उसके उत्पादों के लिए बाजार बना दिया गया है, कोई चुंगी नहीं, कोई सरहद नहीं, कोई बाधा नहीं। बावजूद इसके इन कानूनों का विरोध करने वाले महज विरोध करने के लिए वही पुराना राग अलापे जा रहे हैं कि ये किसानों को कॉरपोरेट का गुलाम बना देंगे। जबकि हैरानी की बात यह है कि न तो पहले से चली आ रही मंडी व्यवस्था खत्म हुई है और न ही खत्म किए जाने का कोई इन कानूनों के चलते भविष्य में प्रावधान है। फिर भी यह भ्रम बनाया जा रहा है कि इन कानूनों के बाद मंडियां खत्म हो जाएंगी और किसानों को अपने उत्पाद मजबूर होकर औने पौने दामों में कॉरपोरेट के हवाले करना होगा।

दरअसल इन नए कृषि कानूनों से गिनती के ही कुछ राज्यों में किसानों की एक खास लॉबी खफा है, क्योंकि मंडी व्यवस्था के तहत सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले गेहूं और धान का करीब 80 फीसद हिस्सा यही लॉबी बेचती है। इसी लॉबी को यह लग रहा है कि इन कानूनों के अमल में आने के बाद बाद देशभर के किसानों के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध हो जाएगा, तो कहीं उन्हें अब तक जो सुविधा मिली हुई थी, उसमें किसी किस्म की बाधा न आ जाए। वास्तव में इस विरोध में सारी ताकत इन्हीं लाभान्वित लोगों की है। जबकि देश में किसानों की संख्या करीब 16 करोड़ है और कृषि मंडियों में किसानों का महज चार प्रतिशत अनाज ही बिकता है। बावजूद इसके मंडी व्यवस्था को मंडियों से अधिकाधिक लाभान्वित होने वाले किसान यह माहौल बनाने में तुले हैं कि मौजूदा कानून किसानों के विरोध में है।

दरअसल आज की तारीख में जितनी भी राजनीतिक पार्टयिां कृषि सुधारों के क्रम में मौजूदा बने कृषि कानूनों का विरोध कर रही हैं, कहीं न कहीं वे सभी पार्टयिां इसी तरह के कानूनों को अपने प्रस्तावित कृषि सुधार योजना में शामिल करती रही हैं और देश को आश्वसान देती रही हैं कि खुद की सरकार बनने पर इसी तरह के कृषि सुधार वे करेंगे। खुद कांग्रेस ने 2019 के अपने लोकसभा चुनाव घोषणा पत्र में इस बात का विस्तार से जिक्र किया है कि अगर उसकी सरकार बनती है तो किसानों को उनके उत्पादों का बेहतर मूल्य दिलाने के लिए उन्हें बाजार में अपने उत्पाद बेचने की पूरी सहूलियत दी जाएगी।

वास्तव में नए बने कृषि कानूनों के पहले तक किसानों की यह मजबूरी थी कि उन्हें अपने सभी उत्पादों को मंडी में ही बेचना होता था। मंडी से बाहर बेचने पर न केवल उन पर कानूनी कार्रवाई हो सकती थी, बल्कि एक प्रांत से दूसरे प्रांत तक अपने उत्पाद ले जाने पर उनसे अच्छा खासा टैक्स वसूला जाता था। अब ये सभी बाधाएं खत्म कर दी गई हैं। इन कानूनों के बाद कृषि उत्पादों के बाजार से एक झटके में उन बिचौलियों व आढ़तियों का सफाया हो जाएगा जो किसान का शोषण करते रहे हैं। इसलिए ये कानून वास्तव में क्रांतिकारी हैं और आने वाले वर्षो में इनका बेहतर परिणाम भी देश को देखने को मिलेगा।

[वरिष्ठ पत्रकार]

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