विपत्ति

विपत्तियों का जीवन में अपना एक अलग स्थान है। दुख का घाव समय ही भर पाने में समर्थ है। यदि संसार में कष्ट न होते, तो मनुष्य का विचार इसके विपरीत पहलू पूर्ण शांति की ओर कभी नहीं जाता।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 17 Nov 2015 12:47 AM (IST) Updated:Tue, 17 Nov 2015 12:49 AM (IST)
विपत्ति

विपत्तियों का जीवन में अपना एक अलग स्थान है। दुख का घाव समय ही भर पाने में समर्थ है। यदि संसार में कष्ट न होते, तो मनुष्य का विचार इसके विपरीत पहलू पूर्ण शांति की ओर कभी नहीं जाता। इस प्रकार विपत्तियां ही मुक्ति पाने के उपायों की ओर प्रेरित करती हैं। कोयले को हीरे में परिवर्तित किया जा सकता है। विन्यास सही होने पर कोई वस्तु उपयोगी, नई और आनंददायी बन जाती है और गलत होने पर कुरूप और दुखदायी होती है। यही बात कष्टों के संबंध में भी है। हमारी बुद्धि और विवेक पर मन के भटकाव के कारण बुरी छाया पडऩे से जीवन मूल्यों का पतन होता है। वास्तव में जीवन की हर चीज हमारे हित के लिए बनी है। हमें केवल यही सीखना है कि हम उसका सम्यक उपयोग कैसे करें और कैसे हम उसे अपने उपयोग के योग्य बनाएं। घर सहनशीलता का प्रशिक्षण स्थल है। जीवन में प्रतिदिन घट रही घटनाओं को शांति से सहन करना उच्चतम कोटि की तपस्या और त्याग है। संसार दुखों से भरा है। इसका कहीं अंत नहीं है।

एक दिन पर्वत शिखर पर बने मंदिर की प्रतिमा ने सामने वाली पगडंडी से सहानुभूति दिखाते हुए कहा-भद्रे तुम कितना कष्ट सहती हो, यहां आने वाले कितने लोगों का बोझ उठाती हो। यह देखकर हमारा जी भर आता है। पगडंडी मुस्कुराती हुई बोली-भक्त को भगवान से मिलाने का अर्थ भगवान से मिलना ही तो है देवी। हमें स्थूल रूप ही दिखाई पड़ता है, जो मन की अधोमुख वृत्ति से मिलता है। वास्तविकता के बिना जाग्रति असंभव है। आमतौर पर विपत्तियों को आनंद का उल्टा समझा जाता है, परंतु वास्तव में यही हमारे हृदय में परमतत्व की चेतना जाग्रत करके प्रगतिपथ पर अग्रसर करती हैं। हर व्यक्ति के पास उसकी विपत्तियां हैं। अपने दुखों पर हर घड़ी सोचने से चिंताएं बढ़ती हैं। इस संसार में कोई भी चिंतामुक्त नहीं है। विपत्तियों की उपस्थिति ही मनुष्य के अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण है। चिंताएं उस असंतुलित क्रिया का परिणाम हैं, जिनसे आरंभ में मनुष्य का उद्भव हुआ। यदि हम शक्तियों के विस्तार और संकोच से उत्पन्न सीमाओं को दूर करने पर ध्यान दें तो हमारे लक्ष्य स्वत: सिद्ध हो जाएंगे। हम जितना ही इन कष्टों की ओर ध्यान देते हैं, ये हमसे शक्ति पाकर हमारी विचार शक्ति के बल से और मजबूत होती चली जाती हैं। ईश्वरीय शक्ति प्रवाह इनसे बचाता है। कष्ट छिपे रूप में ईश्वर का वरदान है।

[डॉ. हरिप्रसाद दुबे]

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